अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत पर अमेरिका द्वारा लगाए गए भारी टैरिफ का बचाव करते हुए एक अजीबो-गरीब बयान दिया। हाल ही में उन्होंने कहा था कि रूस से तेल में खरीद से भारत के ब्राह्मणों को मुनाफा हो रहा है। देश में हर तरफ इस बयान की आलोचना हो रही है। यहां देश के 5 सबसे अमीर लोगों की लिस्ट दी गई है। इस लिस्ट में कोई भी ब्राह्मण परिवार से नहीं है।
कौन है भारत के 5 सबसे अमीर व्यक्ति?
फोर्ब्स के रियलटाइम डेटा के मुताबिक, भारत के 5 सबसे अमीर व्यक्ति में मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, सावित्री जिंदल और उनका परिवार, शिव नादर और दिलीप सांघवी का नाम शामिल है।
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मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani)
रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी की कुल संपत्ति लगभग 101.9 अरब डॉलर है, वे गुजरात के बनिया (वैश्य समुदाय) से आते हैं।
गौतम अडानी (Gautam Adani)
अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी की नेटवर्थ 60.6 अरब डॉलर है, वह भी एक बनिया (वैश्य समुदाय) से आते हैं।
सावित्री जिंदल और उनका परिवार (Savitri Jindal & family )
इनकी नेटवर्थ 35.5 अरब डॉलर है, वे एक मारवाड़ी समुदाय से हैं।
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शिव नादर (Shiv Nadar)
एचसीएल टेक्नोलॉजीज के फाउंडर शिव नादर की नेटवर्थ 32.3 अरब डॉलर है, तमिलनाडु के नादर समुदाय से हैं।
दिलीप सांघवी (Dilip Sanghvi)
दिलीप सांघवी सन फार्मा के फाउंडर है। उनकी नेटवर्थ 23.9 अरब डॉलर है। वे एक गुजराती जैन परिवार से हैं।
अगर ऐतिहासिक रूप से देखें तो ब्राह्मण कारोबार के बजाय पुरोहिती और विद्वानों की भूमिकाओं से जुड़े रहे हैं, अभी वे भारत के 5 सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में नहीं है।
Navarro का विवादित बयान
फॉक्स न्यूज से बात करते हुए, नवारो ने कहा ब्राह्मण रियायती रूसी तेल को रिफाइन करके और उसे विदेशों में बेचकर भारी मुनाफा कमा रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि भारतीय समझें कि क्या हो रहा है। ब्राह्मण भारतीय लोगों की कीमत पर रूसी तेल खरीदकर मुनाफा कमा रहे हैं।’
नवारो ने अपने आरोप को यूक्रेन युद्ध के बाद भारत में रूसी कच्चे तेल के आयात में हुई बढ़ोतरी से जोड़ा और भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ को दोगुना करके 50% करने के ट्रंप के फैसले का बचाव किया।
राष्ट्रीय सुरक्षा विश्लेषक डेरेक जे ग्रॉसमैन ने विदेश नीति की बहसों में जातिगत राजनीति को शामिल करने के खिलाफ चेतावनी दी। उन्होंने कहा, ‘भारत में जातिगत अशांति को भड़काना कभी भी अमेरिकी विदेश नीति नहीं होनी चाहिए।’
