देश में कारोबार करने के माहौल को बेहतर बनाने के लिए सरकार ने सोमवार को संसद में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता 2015 पेश किया। इसमें दिवाला संबंधी मामलों का समयबद्ध तरीके से समाधान निकालने का प्रावधान किया गया है। विधेयक का उद्देश्य निवेश को प्रोत्साहित करना है ताकि उच्च आर्थिक वृद्धि दर हासिल की जा सके। विधेयक में भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड स्थापित करने का प्रावधान किया गया है ताकि पेशेवरों, एजंसियों और सूचना सेवाओं के क्षेत्र में कंपनियों, गठजोड़ फर्म और व्यक्तियों के दिवालिया होने के विषयों का नियमन किया जा सके। लोकसभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे पेश करते हुए कहा, ‘इस संहिता में एक कोष स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया है। इसे भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोष कहा जाएगा।’
आरएसपी के एन के प्रेमचंदन ने हालांकि विधेयक पेश किए जाने का यह कहते हुए विरोध किया कि इसके वित्त ज्ञापन में यह नहीं बताया गया है कि इसके लागू होने के बाद क्या खर्च आएगा, इस बारे में नहीं बताया गया है। विधेयक में आगे कहा गया है कि नए विधेयक की जरूरत इसलिए महसूस की गई क्योंकि दिवाला और शोधन अक्षमता से जुड़े विषयों से निपटने की जरूरत है। इस बारे में वर्तमान ढांचा अपर्याप्त, अप्रभाावी है और समाधान में बिना कारण देरी होती है।
प्रस्तावित विधेयक के मुताबिक कारपोरेट क्षेत्र में दिवाला मामलों का समाधान 180 दिनों में होगा। इसे 90 दिन और बढ़ाया जा सकता है। कारपोरेट दिवाला के मामलों का त्वरित निपटारा 90 दिनों में करने का भी प्रावधान किया गया है। अभी दिवाला और शोधन अक्षमता मामलों के निपटारे के लिए कोई एक कानून नहीं है। इस विषय पर विभिन्न मामलों के निपटारे के लिए कई कानून हैं जिनमें रूग्ण औद्योगिक कंपनी विशेष उपबंध अधिनियम 1993, वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन व प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम 2002, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को शोध्य रिण वसूली अधिनियम 1993, कंपनी अधिनियम 2013 आदि शामिल हैं।
विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता 2015 का उद्देश्य कारपोरेट व्यक्तियों और फर्मों तथा व्यक्तियों के दिवाला समाधान, परिसमापण और शोधन क्षमता के लिए न्यायनिर्णय प्राधिकरणों के रूप में करने के लिए है।