सरकार विधायी और प्रशासनिक ढांचों के जरिए काले धन का सृजन रोकने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह बात आज राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कही।

संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए उनहोंने यह भी कहा कि ‘अधिकतम सुशासन और न्यूनतम सरकार’ का सिद्धांत सरकार की गतिवधियों को दिशानिर्देश प्रदान करेगा। उन्होंने कहा ‘‘मेरी सरकार घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर काले धन का सृजन रोकने के लिए हर संभव पहल करने के लिए प्रतिबद्ध है।’’

राष्ट्रपति ने कहा कि इन उपायों को मजबूत विधायी और प्रशासनिक ढांचे, प्रणालियों और प्रक्रियाओं को कार्यान्वित करने के लिए लागू किया गया है जिसमें क्षमता निर्माण और मुकदमों का तुरंत निपटान करना शामिल है। भारत संदिग्ध काले धन से जुड़े मामलों में स्विट्जरलैंड समेत विभिन्न देशों से सहयोग मांग रहा है।

इधर देश में उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) काले धन के मामले की जांच कर रहा है और इसने अपनी ताजा रपट में खुलासा गया है कि एक स्विस बैंक में भारतीयों के खाते में 4,479 करोड़ रुपए हैं और भारत में 14,958 करोड़ रुपए की गैरकानूनी संपत्ति है।

मुखर्जी ने कहा कि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए अपेक्षाकृत कठोर कदम उठाने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं कि लोकहित में लिए गए सद्भावनापूर्ण निर्णयों को संरक्षण प्रदान किया जाए ताकि नौकरशाही में विश्वास प्रोत्साहित किया जा सके।

‘अधिकतम सुशासन, न्यूनतम सरकार’ के सिद्धांत का हवाला देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार आधिकारिक प्रकिय्राओं के सरलीकरण पर ध्यान दे रही है और प्रौद्योगिकी के माध्यम से निर्णय लेने के स्तरों को कम कर रही है।

मुखर्जी ने कहा ‘‘मंत्रि-समूह की प्रणाली को समाप्त कर दिया गया है और त्वरित निर्णय लेने पर जोर दिया जा रहा है।’’
उन्होंने कहा कि ‘माय गव आनलाइन प्लेटफॉर्म’ ने नीति निर्धारण में लोक सहभागिता सुनिश्चित किया है और विभिन्न राष्ट्रीय महत्व के कार्यक्रमों जैसे स्वच्छ भारत मिशन, नमामि गंगे, प्रधानमंत्री जनधन योजना और नीति आयोग के बोर में जनता के विचारों को जानने में अहम भूमिका निभाई है।

पेट्रोलियम और कोयला क्षेत्र से जुड़े विवादास्पद मामलों पर मुखर्जी ने कहा कि सरकार प्राकृतिक संसाधान के आवंटन के अधिकतम उपयोग और पारदर्शिता के लिए प्रतिबद्ध है।