अंबानी और अडानी दोनों देश के बड़े उद्योगपति हैं और वे जीवाश्म ईंधन पर आधारित कारोबार खड़ा किए है। रिलायंस का गुजरात के जामनगर में दुनिया का सबसे बड़ा रिफाइनिंग कॉम्प्लेक्स है, जबकि अडानी कोयले से चलने वाले थर्मल स्टेशनों के भारत में सबसे बड़ा निजी क्षेत्र के ऑपरेटर और देश के सबसे बड़ा कोयला व्यापारी है।
भारत ग्रीनहाउस गैसों का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। विश्लेषकों का कहना है कि कोयला आधारित बिजली उत्पादन नाटकीय रूप से गिर सकता है, क्योंकि कई बड़े देश अब सुधार की ओर अग्रसर हैं। कई बड़े विश्लेषकों ने उम्मीद जताई है कि भारत की कोयला उत्पादन हिस्सेदारी 2030 के दशक की शुरुआत में 70% से घटकर 50% हो जाएगी। उनका मानना है कि “2030 तक भारत में नए कोयला संयंत्रों के निर्माण की लागत 62 डॉलर प्रति मेगावाट होने की उम्मीद है, जो सौर ऊर्जा की तुलना में 25% अधिक है।”
अडानी ने कोई नया थर्मल पावर प्लांट बनाने की योजना की घोषणा नहीं की है, और उनकी कंपनियों को कोयले से चलने वाली बिजली की अपेक्षाकृत अधिक लागत से प्रभावित होने की संभावना नहीं है। विश्लेषकों का कहना है कि दोनों समूह अपनी स्वच्छ ऊर्जा साख में सुधार करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि निवेशक अपने व्यवसायों के पर्यावरणीय प्रभाव पर अधिक ध्यान देते हैं और ईएसजी रेटिंग के आधार पर निर्णय लेते हैं।
अडानी के मुख्य व्यवसायों में से एक, अडानी ग्रीन एनर्जी, वर्तमान में भारत के नवीकरणीय क्षेत्र पर हावी है। पिछले एक साल में इसके शेयर 156 फीसदी से ज्यादा चढ़े हैं। अंबानी चाहते हैं कि रिलायंस 2035 तक शुद्ध कार्बन शून्य हो जाए, जो रॉयल डच शेल और बीपी जैसी वैश्विक तेल कंपनियों के 2050 के लक्ष्य से काफी आगे है।
जेफरीज ने एक नोट में कहा, “रिलायंस अगले दो वर्षों में देश में सबसे विश्वसनीय अक्षय ऊर्जा कंपनी के रूप में उभरेगी। इसके ईएसजी स्कोर में भी सुधार होगा, जो वैश्विक स्तर पर ईएसजी फंडों से धन को आकर्षित करेगा।”
यदि दोनों कंपनियां अपने लक्ष्यों को प्राप्त करती हैं, तो रिलायंस की 100 गीगावॉट की लक्षित सौर क्षमता अडानी की तुलना में दोगुनी होगी, और कंपनियां भारत के 2030 के लक्ष्य का एक तिहाई हिस्सा होंगी।

