भारत के सबसे अमीर कारोबारियों में से एक मुकेश अंबानी के छोटे भाई अनिल अंबानी इन दिनों कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं। हाल ही में रिलायंस पावर की एजीएम में कर्ज चुकाने के लिए संपत्ति बेचने के फैसले को शेयरधारकों की ओर से ठुकराने ने अनिल अंबानी की इस समस्या को और बढ़ा दिया है। लेकिन कारोबारी जगत में अनिल अंबानी का सफर इतना मुश्किल ना था।

2005 में पिता धीरूभाई अंबानी की संपत्ति के बंटवारे को लेकर मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच विवाद होने लगा, जिसके बाद मां कोकिलाबेन की ओर से संपत्ति का बंटवारा किया गया। बंटवारे में मुकेश अंबानी को रिलायंस इंडस्ट्रीज और केमिकल बिजनेस मिला। वहीं, अनिल अंबानी को रिलायंस कम्युनिकेशन, रिलायंस कैपिटल और रिलायंस पावर जैसी कंपनियां दी गईं।

रिलायंस पारिवारिक गैस विवाद

संपत्ति के बंटवारे से पहले रिलायंस इंडस्ट्रीज और रिलायंस पावर के बीच एक करार हुआ था, जिसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज को कृष्णा-गोदावरी बेसिन से 17 साल के लिए सरकार की ओर से तय किए गए कम दामों में रिलायंस पावर को गैस आपूर्ति करनी थी। इसके साथ ही 2005 में संपत्ति बंटवारे में भी मां कोकिलाबेन ने तय किया गया था कि मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी को गैस की आपूर्ति सरकार की ओर से तय की गई कीमत से 44 फीसदी कम दाम पर करेंगे।

2005 में मुकेश अंबानी ने यह कहते हुए इस एग्रीमेंट को तोड़ दिया कि गैस फील्ड रिलायंस की नहीं देश की संपत्ति है और इस कारण से वह इतने कम दाम पर गैस आपूर्ति नहीं कर सकता। फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और मई 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने मुकेश अंबानी के पक्ष में फैसला सुनाया।

फैसला आने के बाद ही अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस न्यू रिसोर्सेज के शेयर 18.29 फीसदी की गिरावट के साथ 55.85 रुपए पर आ गए और मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयर 4.56 फीसदी की उछाल के साथ 1,057 के स्तर पर पहुंच गए थे।

कोर्ट के इस निर्णय के बाद अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस पावर की ओर से दिल्ली एनसीआर के दादरी में बन रहा 7,800 मेगावॉट का पावर प्लांट खतरे में पड़ गया और बाद में अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस पावर ने यह कहते हुए इस प्रोजेक्ट से बाहर जाने का निर्णय लिया कि वह इस प्लांट को चलाने के लिए गैस की व्यवस्था नहीं कर पा रहा है, जिस कारण वह इस प्रोजेक्ट को पूरा नहीं कर पाएगा। वहीं, इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा दी गई 956 एकड़ जगह को भी कंपनी ने लौटा दिया। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस प्रोजेक्ट में रिलायंस पावर की ओर से 11,000 करोड़ रुपए का निवेश किया गया था और इस नुकसान के बाद से ही रिलायंस पावर भारी घाटे में चला गया।