उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे बीजेपी शासित राज्यों की ओर से श्रम कानूनों में बदलाव को केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने ही गलत करार दिया है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से श्रम कानूनों में बदलाव किया गया है, उन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता। गंगवार ने कहा कि हमें कर्मचारियों के अधिकारों और बिजनेस की मांग के बीच संतुलन स्थापित करना होगा। इकनॉमिक टाइम्स से बातचीत करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मजदूरों के अधिकारों को पूरी तरह से निलंबित कर देना श्रम सुधार नहीं कहा जा सकता। बीजेपी शासित कई राज्यों समेत 10 राज्यों ने अध्यादेश पारित कर श्रम कानूनों में बदलाव का फैसला लिया था।

राज्यों की ओर से श्रम कानूनों में बदलाव को अप्रत्याशित करार देते हुए संतोष गंगवार ने कहा कि काम के घंटों को बढ़ाने, फैक्ट्री ऐक्ट के कुछ प्रावधानों को हटाने और इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट ऐक्ट में संशोधन के लिए केंद्र की मंजूरी की जरूरत नहीं होती। उन्होंने कहा कि इस तरह के नोटिफिकेशन आपातकालीन स्थिति में लाए गए हैं और जो अस्थायी हैं। इसके बावजूद यह कहना होगा कि लेबर राइट्स को खत्म करना श्रम सुधार नहीं होता। कोई भी देश तभी प्रगति कर सकता है, जब मजदूरों के अधिकारों का संरक्षण किया जाए। चीन छोड़ने वाली कंपनियों को आकर्षित करने की रणनीति को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हमें लेबर और इंडस्ट्री के बीच संतुलन स्थापित करना होगा।

इंडस्ट्री और लेबर के बीच स्थापित करना होगा संतुलन: गंगवार ने मजदूरों के अधिकारों की हिमायत करते हुए कहा कि हमें ऐसा माहौल तैयार करना होगा, जिसमें मजदूरों और बिजनेस के हितों के बीच संतुलन बन सके। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को वेतन की गारंटी, बचाव और सामाजिक सुरक्षा देनी होगी। इसके अलावा इंडस्ट्री के लिए आसान मेकेनिज्म और कानून व्यवस्था में सहजता की व्यवस्था की जा सकती है।

गांव लौटे मजदूरों को लाने का बताया तरीका: लॉकडाउन की वजह से मजदूरों के पलायन के चलते श्रमिकों की कमी होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हम एक डेटाबेस तैयार कर रहे हैं। इसके जरिए यह जानकारी रखी जाएगी कि किसके पास क्या स्किल है और किसी भी रोजगार के अवसर की स्थिति में उनसे सीधे संपर्क साधा जाएगा।

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