भले ही आपकी सैलरी कट गई हो, लेकिन उस पर लगने वाले टैक्स में कटौती नहीं होगी? भले ही यह पढ़कर आपको हैरानी होगी, लेकिन कई चार्टर्ड अकाउंटेंट्स के मुताबिक यदि आपकी सैलरी में कटौती बेसिक, एचआरए से अलग अन्य हिस्सों से की गई है तो आपको पहले की तरह ही टैक्स देना पड़ सकता है। ऐसे में आपको यह देख लेना चाहिए कि यदि सैलरी कटी है तो कंपनी ने किन हिस्सों से यह कटौती की है। इनकम टैक्स के नियमों के मुताबिक सैलरी इस आधार पर काटी जाती है कि कितनी रकम मिल गई है या फिर कितना हिस्सा बाकी है। दूसरी तरफ टीडीएस होता है, जो पेमेंट के दौरान कटता है।
जानकारों के मुताबिक कर्मचारियों को कंपनियों से यह कन्फर्म करना चाहिए कि उसने सैलरी में से जो कटौती की है, वह किन हिस्सों से की है और उसके मुताबिक सीटीसी को एक बार फिर से तैयार किया जाना चाहिए। इसके अलावा यह जानना भी जरूरी है कि कंपनी ने सैलरी में कटौती की है या फिर उस हिस्से को बाद में देने का फैसला लिया है। Taxmann.com से जुड़े नवीन वाधवा ने इकनॉमिक टाइम्स से बातचीत में कहा, ‘यदि किसी कर्मचारी की सैलरी में कटौती होती है तो फिर सैलरी स्लिप भी रिवाइज होनी चाहिए। कटौती के अनुसार बेसिक सैलरी, एचआरए, स्पेशल अलाउंसेज में भी कमी दिखनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो फिर आपको पहले की तरह ही टैक्स देना होगा। इसकी वजह यह है कि इनकम के प्रूफ के तौर पर सैलरी स्लिप को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट अहम मानता है।’
इसके अलावा यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सैलरी कटौती के वक्त कंपनी ने किसी एक मद में ही न सारी कमी कर दी हो। इसकी वजह यह है कि टैक्स सैलरी के कुछ हिस्सों पर लगता है और कुछ पर नहीं लगता है। इन पर भी ध्यान देने की जरूरत है। आइए जानते हैं, सैलरी के किन हिस्सों पर टैक्स लगता है और किन पर नहीं। इससे आपको यह जानने में मदद मिलेगी कि सैलरी कट के बाद आपको कितना टैक्स देना होगा…
कर्मचारियों की सीटीसी में आमतौर पर ये चीजें शामिल होती हैं-
बेसिक सैलरी, एचआरए, स्पेशल अलाउंस, बोनस, ईपीएफ में नियोक्ता का योगदान, ग्रैच्युटी, मेडिकल अलाउंस, कन्वेंस अलाउंस, मील कूपन आदि।
सीटीसी के इन हिस्सों पर नहीं लगता टैक्स-
15,000 रुपये तक का मेडिकल अलाउंसेज (बिल देने पर), 19,200 रुपये तक का कन्वेंस अलाउंस, साल भर में 26,400 रुपये तक के फूड कूपन। इससे ज्यादा की रकम मिलने पर आपको अतिरिक्त राशि पर टैक्स चुकाना होगा। कंपनी की ओर से पीएफ में जमा रकम। कंपनी की ओर से ग्रैच्युटी में जमा किया गया हिस्सा।
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