31 दिसंबर 2012 की रात थी। बैंगलोर में नए साल का जश्न चल रहा था, आतिशबाजी हो रही थी, लोग खुशी मना रहे थे। लेकिन के. वैथीश्वरन (K. Vaitheeswaran) के छोटे से घर में डर का माहौल था। शराब पिए हुए कुछ लोग दरवाजा पीट रहे थे और चिल्ला रहे थे – ‘”तुम पैसे दे दो, वरना हम तुम्हें पैसे देने पर मजबूर करेंगे।’ ‘तुम्हें पता नहीं हम क्या कर सकते हैं!’
अंदर के. वैथीश्वरन का बेटा अपनी माँ का पैर पकड़कर डर से कांप रहा था, पत्नी उनके साथ खड़ी थी। वैथीश्वरन खुद दरवाजे के सामने खड़े थे और उनका दिल तेज धड़क रहा था। उन्होंने कभी ऐसा भविष्य नहीं सोचा था। एक समय उन्हें ‘भारत में ई-कॉमर्स का जनक’ कहा जाता था। अब उनका बिजनेस बर्बाद हो चुका था, लोग उन्हें असफल मानते थे। फाइनेंशियल एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने अपनी पूरी कहानी बताई- कैसे उन्होंने नए-नए आइडिया लाए, बुरी तरह हार गए, और फिर भी हार नहीं मानी।
अपने समय से आगे का नजरिया
यह कहानी 1999 से शुरू होती है। तब भारत में इंटरनेट की पहुंत बहुत कम लोगों तक थी और स्पीड भी बहुत धीमी थी। फिर भी, वैथीश्वरन ने 5 साथियों के साथ मिलकर Fabmart.com शुरू किया। यह भारत की पहली ई-कॉमर्स वेबसाइट थी। वे ऑनलाइन कैसेट, सीडी, किताबें और घड़ियां बेचते थे। उनका सपना भारत में खरीदारी को आसान बनाना था। उन्होंने कई नए आइडिया दिए, जैसे – कैश ऑन डिलीवरी, पिन से पेमेंट, ई-वॉलेट, गिफ्ट कार्ड।
2001 में उन्होंने भारत का पहला ऑनलाइन किराना स्टोर खोला, जो बाद में बिगबास्केट जैसी कंपनियों के लिए रास्ता बना। 2002 में उन्होंने Fabmall नाम से सुपरमार्केट की चेन खोली। यह ऑनलाइन और ऑफलाइन को जोड़ने वाला पहला ऐसा मॉडल था। Fabmall बहुत सफल हुआ। 2006 में इसे आदित्य बिड़ला ग्रुप ने खरीद लिया और इसका नाम More रख दिया। उनके साथी ऑफलाइन बिजनेस में चले गए, लेकिन वैथीश्वरन ने ऑनलाइन बिजनेस को जारी रखा और उसका नाम इंडिया प्लाजा (Indiaplaza) रखा।
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कहाँ चूक हो गई?
वैथीश्वरन ने हमेशा प्रॉफिट कमाने पर ध्यान दिया लेकिन नए खिलाड़ी जैसे Flipkart और Snapdeal बड़े-बड़े डिस्काउंट देकर बाजार में आगे निकल गए। Indiaplaza के पास उतना पैसा नहीं था। उनके निवेशक भी धीरे-धीरे हटने लगे। 2013 में उनके पास पैसे खत्म हो गए और कंपनी बंद हो गई।
सबसे मुश्किल समय
कंपनी के बंद होने के बाद उनकी लाइफ बहुत कठिन हो गई। लोग सिर्फ कंपनी को नहीं, बल्कि उन्हें जिम्मेदार मानने लगे। एक विक्रेता ने उनके ऑफिस में आकर खंजर दिखाया और कहा, ‘पैसे दो, चाहे जैसे दो।’ किसी ने धमकी दी कि बच्चों को उनकी कार के नीचे फेंक देंगे। मुंबई के एक व्यक्ति ने पुलिस में केस कर दिया और पुलिस वाले ने कहा, ‘पैसे दो वरना जेल जाना पड़ेगा।’
वैथीश्वरन ने कहा, ‘मुझे अपना चेहरा दिखाने में शर्म आने लगी। मैं बिल्कुल अकेला हो गया। सिर्फ पत्नी और बेटा मेरे साथ थे।’
अपनी कहानी पर लिखी किताब
दो साल तक वो अकेले और उदास रहे। फिर 2015 में मिंट अखबार ने उनसे संपर्क किया। उन्होंने कहा – ‘देश के पहले ई-कॉमर्स पायनियर हैं। ये नतीजे की बात नहीं है, आपने शुरुआत की थी।’ उनकी कहानी The Failure के नाम से छपी और लोगों ने सराहना की। IIM बैंगलोर के प्रोफेसर ने उन्हें बुलाया कि अपनी कहानी छात्रों को बताएं। वहां बोलते-बोलते उनकी आँखों में आँसू आ गए और छात्रों ने भी उन्हें समझा। उस दिन उनका डर और शर्म खत्म हो गई।
आज वे नई कंपनियों को सलाह देते हैं, बड़े-बड़े ग्रुप (जैसे Deloitte और Tata के साथ काम करते हैं), TEDx और IIMs में भाषण देते हैं। 2019 में उन्होंने एक हेल्थ ड्रिंक कंपनी Again Drinks भी शुरू की। उन्होंने अपनी कहानी एक किताब Failing to Succeed में भी लिखी।
वे कहते हैं -‘अगर आपने स्टार्टअप शुरू करने की हिम्मत दिखाई, तो वही आपकी सबसे बड़ी सफलता है। 99% स्टार्टअप फेल हो जाते हैं, लेकिन 100% एंटरप्रेन्योर सीख जाते हैं।’