भारत के रूसी तेल आयात के खिलाफ अमेरिकी बयानबाजी के बीच बड़ा सवाल यह है कि क्या भारतीय रिफाइनर अपनी खरीद कम करेंगे। हालांकि जुलाई और अगस्त में भारतीय बंदरगाहों पर रूसी कच्चे तेल की आपूर्ति में गिरावट देखी जा चुकी है, लेकिन इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि इसका कारण रूस की तरफ से मिलने वाली छूट घटना है न कि अमेरिकी दबाव है। क्योंकि, माल अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अगस्त की शुरुआत में भारतीय वस्तुओं पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा से हफ्तों पहले ही बुक हो चुके होंगे।

सितंबर और अक्टूबर में होने वाली रूसी तेल आपूर्ति भारत के रूसी कच्चे तेल के भारी आयात पर ट्रम्प के टैरिफ दबाव के प्रभाव की स्पष्ट तस्वीर पेश करेगी। इस लिहाज से, शुरुआती टैंकर डेटा भारत में रूसी कच्चे तेल की ढुलाई में जुलाई के स्तर से गिरावट का संकेत देते है, जो सितंबर और अक्टूबर में भारतीय बंदरगाहों पर उतारे जाने की संभावना है।

हालांकि, यह कहना अभी भी जल्दबाजी होगी कि क्या ट्रम्प की दबाव की रणनीति ने वास्तव में भारतीय रिफाइनरों के रूसी तेल आयात में कोई बदलाव किया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि रूसी कच्चे तेल से लदे कई टैंकर मिस्र के पोर्ट सईद की ओर बढ़ रहे हैं यानी इन कार्गो के भारत पहुंचने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

25% अतिरिक्त टैरिफ से पहले अमेरिका ने भारत को एक नोटिस जारी किया

क्या कहते हैं लेटेस्ट आंकड़े?

ग्लोबल रीयल-टाइम डेटा और एनालिटिक्स प्रदाता केप्लर में रिफाइनिंग और मॉडलिंग के प्रमुख शोध विश्लेषक सुमित रिटोलिया ने कहा, “लेटेस्ट आंकड़ों को देखें तो, अगस्त (24 अगस्त तक) में भारत में रूसी कच्चे तेल की ढुलाई महीने-दर-महीने करीब 37% कम होकर करीब 10 लाख बैरल प्रतिदिन हो रही है। हालांकि, इसमें अभी भी बदलाव हो सकता है। कई जहाज मिस्र के पोर्ट सईद की ओर बढ़ रहे हैं, जो आम तौर पर स्वेज नहर से गुजरने का संकेत देता है। अतीत में, हमने ऐसे जहाजों को रास्ते में ही अपने लास्ट डेस्टिनेशन को अपडेट करते देखा है। जुलाई में भारत में रूस से आने वाला सारा माल स्वेज नहर से होकर गुजरा, इसलिए यह एक प्रमुख पारगमन मार्ग बना हुआ है।”

उन्होंने कहा, “काफी छोटे स्तर पर, 24 अगस्त तक हमने रूसी बंदरगाहों से बिना किसी घोषित डेस्टिनेशन के रवाना हुए माल में उल्लेखनीय ग्रोथ देखी। पोत ट्रैकिंग डेटा से पता चलता है कि इनमें से कई टैंकरों ने अपने पिछले 2 से 3 माल भारतीय रिफाइनरियों में उतार दिए हैं, जिससे पता चलता है कि भारत एक मजबूत संभावित आउटलेट बना हुआ है। हालांकि, यह भी संभव है कि इनमें से कुछ बैरल अन्य एशियाई खरीदारों को भेजे जा सकते हैं जो रूसी कच्चा तेल लेना जारी रखते हैं।”

रूस से क्रूड ऑयल खरीदने की रणनीति आर्थिक और व्यावसायिक कारणों से होती रहेगी तय

भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के रिफाइनरों ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि उन्हें रूसी तेल आयात के संबंध में सरकार से कोई निर्देश या संकेत नहीं मिला है और मास्को से कच्चा तेल खरीदने की उनकी रणनीति आर्थिक और व्यावसायिक कारणों से तय होती रहेगी।

भारत सरकार लगातार यह कहती रही है कि देश जहां भी सबसे अच्छी डील मिलेगी, वहीं से तेल खरीदेगा, बशर्ते तेल प्रतिबंधों के अधीन न हो। रूसी तेल प्रतिबंधों के अधीन नहीं है और केवल अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा लगाई गई मूल्य सीमा के अधीन है, जो तब लागू होती है जब तेल के परिवहन के लिए पश्चिमी शिपिंग और बीमा सेवाओं का उपयोग किया जाता है।

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भारतीय रिफाइनरियों द्वारा रूसी कच्चे तेल का भारी आयात ट्रम्प प्रशासन के लिए एक बड़ी परेशानी बनकर उभरा है। अगस्त की शुरुआत में, ट्रम्प ने भारत के रूसी तेल आयात पर दंड के रूप में, भारतीय वस्तुओं पर घोषित 25% टैरिफ के अतिरिक्त, 25% अतिरिक्त टैरिफ की घोषणा की थी।

नई दिल्ली ने रूसी तेल की खरीद को लेकर भारत को निशाना बनाए जाने को अनुचित बताया है और कहा है कि ये आयात इसलिए शुरू हुए क्योंकि इसकी पारंपरिक आपूर्ति यूरोप की ओर मोड़ दी गई थी और अमेरिका ने ग्लोबल ऊर्जा मार्केटों की स्थिरता को मजबूत करने के लिए भारत द्वारा इस तरह के आयात को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया था।

भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के रिफाइनरियों के टॉप अधिकारियों के अनुसार, अतिरिक्त टैरिफ का भारतीय रिफाइनरियों की रूसी तेल आयात रणनीति पर कोई असर नहीं पड़ा है और खरीदारी पूरी तरह से आर्थिक और व्यावसायिक विचारों से प्रेरित होती रही है। मात्रा के हिसाब से भारत के कुल तेल आयात में रूस का हिस्सा 35-40% है।

रूसी कच्चे तेल की आपूर्ति अगस्त में रही स्थिर

इस महीने (24 अगस्त तक) भारत का रूसी तेल आयात 1.6 मिलियन था। केप्लर के आंकड़ों के मुताबिक, प्रति पोत प्रति दिन आयन बीपीडी महीने-दर-महीने स्थिर रहा, लेकिन जून के स्तर से 24% कम रहा। इंडस्ट्री के जानकारों ने इस गिरावट का मुख्य वजह रूसी तेल पर छूट में भारी कमी को बताया है।

इस महीने की शुरुआत में, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (BPCL) के निदेशक (वित्त) वेत्सा रामकृष्ण गुप्ता ने एक निवेशक सम्मेलन में कहा था कि रूसी कच्चे तेल पर छूट घटकर करीब 1.5 डॉलर प्रति बैरल रह गई है, जिसके वजह से आयात मात्रा में थोड़ी गिरावट आई है क्योंकि मास्को के तेल ने प्रतिस्पर्धी कच्चे तेल ग्रेडों पर अपना मूल्य लाभ खो दिया है।