प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली उच्च न्यायालय को वीवो इंडिया मामले को लेकर एक हलफनामे में कई खुलासा किए है। ईडी ने बताया कि चीनी स्मार्टफोन निर्माता कंपनी वीवो वित्तीय प्रणाली को अस्थिर करने और देश की अखंडता और संप्रभुता को चुनौती देने के लिए मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल है।
गौरतलब है कि पिछले हफ्ते दिल्ली हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल किया गया था। इसमें ईडी ने जानकारी दी है कि वह चीन स्थित विदेशियों और संस्थाओं के स्वामित्व वाली 22 फर्मों के संदिग्ध वित्तीय लेनदेन की जांच कर रही है। इन फर्मों ने चीन को भारी मात्रा में धन ट्रांसफर किए हैं। यह ग्रैंड प्रॉस्पेक्ट इंटरनेशनल कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड, जम्मू-कश्मीर स्थित वीवो के वितरक के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के मामले की भी जांच कर रहा है।
ईडी ने हलफनामे में कहा कि यह फर्म को कथित तौर पर जाली दस्तावेजों के आधार पर शामिल किया गया था और यह वीवो इंडिया की सहायक कंपनी होने का दावा कर रही थी। फर्म ने peter.ou@vivoglobal.com ईमेल का उपयोग किया, जो वीवो इंडिया के साथ संबंध को इंगित करता है और यह कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के रिकॉर्ड में है।
वहीं दिल्ली स्थित चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म ने जम्मू-कश्मीर स्थित फर्म को शामिल करने में मदद की थी। यह फर्म 2014 से वीवो इंडिया के संपर्क में है। ईडी ने उल्लेख किया है कि वीवो इंडिया ने अलग-अलग राज्यों में 22 फर्मों को शामिल किया, जिन्होंने कथित तौर पर धन इकट्ठा किया है। दिल्ली स्थित सीए फर्म ने 22 फर्मों को शामिल करने में वीवो इंडिया की मदद की है।
वीवो इंडिया मनी लांड्रिंग केस
ईडी ने कहा है कि कुल 1,25,185 करोड़ रुपए की बिक्री में से वीवो इंडिया ने 62,476 करोड़ रुपए यानी लगभग 50 फीसदी कारोबार भारत से बाहर भेजे हैं। बता दें कि चीनी स्मार्टफोन कंपनी वीवो के शीर्ष अधिकारी, निदेशक झेंगशेन ओयू और झांग जी नेपाल के रास्ते भारत से भाग गया था।
इसके बाद फरवरी में, ईडी ने ग्रैंड प्रॉस्पेक्ट इंटरनेशनल कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड (जीपीआईसीपीएल) और उसके खिलाफ आईपीसी, 1860 की धारा 417, 120 बी और 420 के तहत दिल्ली के कालकाजी पुलिस स्टेशन में मनी लांड्रिंग केस में मामला दर्ज किया गया था। प्राथमिकी के अनुसार, GPICPL और उसके शेयरधारकों ने निगमन के समय जाली पहचान दस्तावेजों और जाली पतों का इस्तेमाल किया था।