परमजीत सिंह वोहरा

सरकार द्वारा लगातार निर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलने के बावजूद पिछले नौ वर्षों में निर्यात के आंकड़ों में मात्र 7.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि आयात 20 प्रतिशत से अधिक बढ़ चुका है और इसी के फलस्वरूप व्यापार घाटा तकरीबन 47 प्रतिशत से अधिक हो चुका है। पिछले वित्तवर्ष में महंगाई नियंत्रित करने के चक्कर में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा की गई मौद्रिक नीतियों में बदलाव ने प्रति व्यक्ति क्रय क्षमता को बहुत कम किया, जिसके चलते जीडीपी की 7 प्रतिशत विकास दर भविष्य के लिए अच्छे ख्वाब नहीं दिखाती है।

पिछले दिनों वित्तवर्ष 2023 के जीडीपी के घोषित आंकड़ों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर के सभी पूर्व के अनुमानों को पीछे छोड़ते हुए 7.2 प्रतिशत दर को हासिल किया। केंद्र सरकार ने वित्तवर्ष 2022-23 के लिए इससे कम दर अनुमानित किया था। विश्व बैंक, आइएमएफ जैसे बड़े वैश्विक आर्थिक संस्थानों का भी पूर्वानुमान इस दर से कम ही था। इन आंकड़ों की घोषणा के बाद चर्चाओं के दौर में सत्ता पक्ष द्वारा इसे सराहनीय बताकर अपनी पीठ थपथपाना और विपक्ष द्वारा पिछले वित्तवर्ष 21-22 की विकास की दर 9.1 प्रतिशत से तुलना करके इसे कमतर आंकना शुरू हुआ। कई विशेषज्ञों द्वारा इस बात का विश्लेषण भी किया गया कि वर्तमान समय में 3.5 खरब डालर की अर्थव्यवस्था को उच्चतम स्तर पर ले जाने के लिए आने वाले कुछ वर्षों तक सात या इससे अधिक आर्थिक विकास दर चाहिए होगी अन्यथा भारत विश्व की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं की श्रेणी से बाहर हो जाएगा।

प्रति व्यक्ति क्रय क्षमता मात्र 2.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी

वित्तवर्ष 2023 के जीडीपी के आंकड़े यह भी बता रहे हैं कि प्रति व्यक्ति क्रय क्षमता मात्र 2.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, जो बहुत निराशाजनक है। प्रथम दृष्टया यह आंकड़ा इस बात को इंगित करता है कि कोरोना के बाद अब भी समाज का हर तबका आर्थिक विकास की पटरी पर नहीं लौटा है। वहीं दूसरी तरफ 7.2 प्रतिशत की विकास की दर और प्रति व्यक्ति क्रय क्षमता के आंकड़े साथ लेकर चलें तो यह तस्वीर इस बात को दिखाती है कि मुल्क में आर्थिक असमानता बड़ी तेजी से बढ़ रही है और अमीरों की बढ़ी हुई क्रय क्षमता के कारण अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में तुलनात्मक रूप से अधिक बढ़ोतरी देखी गई है, जिसमें होटल, पर्यटन, परिवहन और सेवा क्षेत्र के कुछ अन्य भाग मुख्य तौर पर सम्मिलित हैं। ऐसी दशा में इस पक्ष पर चिंता करना जायज है कि अब जबकि भारत विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला मुल्क बन गया है तथा इस कारण आने वाले वर्षों में समाज के गरीब तबके को आर्थिक विकास की मुख्यधारा में लेकर चलने के लिए आर्थिक नीतियों को अलग तरह से बनाना होगा अन्यथा धीरे-धीरे चुनौतियां गंभीर होती जाएंगी।

भारत की ज्यादातर आबादी निम्न मध्यवर्गीय है और उसमें भी ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत काफी अधिक है। पिछले वित्तवर्ष में महंगाई ऊंचे स्तर पर थी, जिसके चलते समाज का यह वर्ग बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ था। देश की प्रति व्यक्ति क्रय क्षमता 2.8 प्रतिशत मापी गई है, इसलिए वर्तमान 7.2 प्रतिशत की विकास दर भविष्य के अनुमानों के प्रति बहुत अधिक सकारात्मक रुख प्रस्तुत नहीं कर पा रही है। पिछले वित्तवर्ष में अधिक महंगाई की दर को नियंत्रित करने के चक्कर में आरबीआइ द्वारा एक लंबे अरसे के बाद ब्याज दरों को बहुत अधिक नियंत्रित किया गया, जिसके अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़े।

दूसरी तरफ, ब्याज नीतियों के नियंत्रण के चलते निर्माण क्षेत्र की विकास दर पर भी मार पड़ी। वित्तवर्ष 2023 में निर्माण क्षेत्र की विकास दर मात्र 1.3 प्रतिशत ही रही, जबकि वित्तवर्ष 21-22 में यह ग्यारह प्रतिशत से अधिक थी। वित्तवर्ष 2023 की दूसरी और तीसरी तिमाही में निर्माण क्षेत्र की विकास दर नकारात्मक दर्ज हुई, जोकि बहुत निराशाजनक है। उस दौरान यह क्रमश 3.8 प्रतिशत नकारात्मक और 1.4 प्रतिशत नकारात्मक रही। क्या ये तथ्य यह इंगित नहीं करते कि भारत जैसी विशाल आबादी वाले मुल्क के निर्माण क्षेत्र की नकारात्मक विकास दर उसे कैसे आने वाले वर्षों में शीर्ष के मुल्कों की कतार में रख पाएगी?

अर्थव्यवस्था का ‘कोर सेक्टर’ जो कि आठ भागों से मिलकर बनता है, जिसमें कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी, उर्वरक, स्टील, सीमेंट और बिजली शामिल हैं, ने 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की है। समाज में आधारभूत ढांचे के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका कोयले के अलावा बिजली, स्टील और सीमेंट निभाते हैं, इन सबमें सबसे अधिक 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी कोयले के क्षेत्र में देखने को मिली है। बाकी बचे तीनों क्षेत्रों में भी 8 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज हुई है। यह वृद्धि इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि आधारभूत संरचनाओं का विकास भारत में बड़ी तेजी से हो रहा है।

इन सबके बावजूद पिछले वित्तवर्ष में निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर के कम रहने के दो कारण दिखते हैं। पहला, पिछले वर्ष ऊंची महंगाई से उनकी उत्पादन लागत लगातार बढ़ी। दूसरा, आरबीआइ द्वारा ब्याज नीतियों के नियंत्रण के चलते प्रभावित हुई प्रति व्यक्ति क्रय क्षमता से उनके मुनाफे में कमी हुई। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह चिंता का विषय है कि इस क्षेत्र की कम विकास दर निश्चित रूप से बेरोजगारी दर को बढ़ाएगी।
जीडीपी आंकड़ों के विश्लेषण में सकारात्मक बात यह है कि भारत ने कृषि क्षेत्र में अप्रत्याशित रूप से अच्छी विकास दर हासिल कर ली है।

आंकड़ों के अनुसार वित्तवर्ष 2022-23 के लिए कृषि क्षेत्र की विकास दर 4 प्रतिशत रही, जबकि पिछले वित्तवर्ष 2021-22 में यह 3.5 प्रतिशत थी। वर्ष 2023 की चारों तिमाहियों में यह क्रमश: 2.4, 2.5, 4.7 तथा अंतिम तिमाही में यह अधिकतम 5.5 प्रतिशत दर्ज की गई। वहीं दूसरी तरफ सेवा क्षेत्र, जो कि भारत की अर्थव्यवस्था की बागडोर को पिछले तीन दशक से लगातार संभाले हुए है, उसकी विकास दर चालू वित्तवर्ष में 28.3 प्रतिशत रही, जो कि पिछले वित्तवर्ष से अधिक है। इसमें गौर करने वाली बात यह है कि होटल, परिवहन, संचार, वित्तीय क्षेत्र तथा रियल स्टेट के क्षेत्र में एक अच्छी वृद्धि दर्ज हुई है, जिनके आकर्षक परिणाम आने वाले समय में अर्थव्यवस्था में देखने को मिलेंगे।

केंद्र सरकार का शुरू से ही निर्माण क्षेत्र के विकास पर जोर रहा है। वर्ष 2014 में इसी उद्देश्य के लिए ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम घोषित किया गया। इस योजना का उद्देश्य था कि भारत अपने आयातों को नियंत्रित करे तथा अपनी घरेलू आवश्यकता की अपने घरेलू उत्पादों से पूर्ति करे तथा उनका निर्यात भी करे। निर्माण क्षेत्र को और अधिक प्रोत्साहित करने के लिए महामारी के दौरान सरकार की आत्मनिर्भर भारत योजना के साथ भी इसे जोड़ा गया। वित्तवर्ष 2020 में सरकार ने निर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए ‘पीएलआइ’ जैसी अति महत्त्वाकांक्षी वित्तीय योजना भी शुरू की, जिसमें निर्माण क्षेत्र को उसके प्रदर्शन के आधार पर वित्तीय फायदे मिलने लगे।

पीएलआइ योजना में अब तक सरकार ने कुल 14 योजनाओं के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपए का वित्तीय निवेश किया है। इन योजनाओं में से हालांकि अभी तक इस्पात क्षेत्र से संबंधित पीएलआइ शुरू नहीं हुई है। वित्तवर्ष 2023-24 में इस योजना के अंतर्गत प्रोत्साहन की रकम लगभग तीन गुना बढ़ कर 8083 करोड़ रुपए होने की उम्मीद है। इस योजना के माध्यम से भारत में स्मार्टफोन उत्पादन का आंकड़ा काफी बेहतरीन हो गया है। यह बताना भी आवश्यक है कि केंद्र सरकार द्वारा लगातार निर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलने के बावजूद पिछले नौ वर्षों में निर्यात के आंकड़ों में मात्र 7.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि आयात 20 प्रतिशत से अधिक बढ़ चुका है और इसी के फलस्वरूप व्यापार घाटा तकरीबन 47 प्रतिशत से अधिक हो चुका है। पिछले वित्तवर्ष में महंगाई नियंत्रित करने के चक्कर में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा की गई मौद्रिक नीतियों में बदलाव ने प्रति व्यक्ति क्रय क्षमता को बहुत कम किया, जिसके चलते जीडीपी की 7 प्रतिशत विकास दर भविष्य के लिए अच्छे ख्वाब नहीं दिखाती है।