कोरोना महामारी ने पूरे देश भर में फैल चुकी है, आए दिन इस भयावह बीमारी के संक्रमण के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। इस बीमारी की रोकथाम में मास्क का प्रयोग सबसे अहम किरदार निभा रहा है। हेल्थ डिपार्टमेंट के एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे संक्रमण के फैलने का खतरा कम होता है। ऐसे में देश भर में कई राज्यों में COVID-19 की गाइडलाइंस के अनुसार वाहन में यात्रा करने के दौरान भी मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया है और इस नियम का उल्लंघन करने पर 500 रूपये के जुर्माने तक का प्रावधान किया गया है।

इसके लिए कई राज्यों में पुलिस बाकायदा वाहनों की चेकिंग कर रही है और इस नियम का उल्लंघन करने वालों का चालान काट रही है। हालांकि उस दशा में भी पुलिस ने चालान काटा है जब वाहन में केवल चालक बैठा है, ऐसे में कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया था। तो आज हम आपको बताएंगे कि आखिर क्यों प्राइवेट व्हीकल में यात्रा के दौरान मास्क पहनना अनिवार्य है।

चिकित्सा विशेषज्ञों ने भी इस नियम के तर्क पर सवाल उठाया है, उन्होनें यह तर्क दिया है कि मास्क केवल सार्वजनिक स्थानों पर ही अनिवार्य होना चाहिए। हालाँकि, इस विवादास्पद नियम का समर्थन स्वयं सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला करता है।

मास्क पहनना क्यों है अनिवार्य:

COVID-19 के संक्रमण को ध्यान में रखते हुए, कई राज्यों और जिलों ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत सार्वजनिक स्थानों पर मास्क का उपयोग करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इस दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत आरोपी को दंडित किया जा सकता है, जो लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश देने के लिए अवज्ञा से संबंधित है। इस कानून के तहत 6 महीने की कैद या जुर्माना है जो की 1000 रुपये तक बढ़ाया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली में, दिल्ली महामारी रोग, COVID-19, 2020 महामारी रोग अधिनियम, 1897 के तहत सभी सार्वजनिक स्थानों पर मास्क का उपयोग अनिवार्य है। यही नियम अधिकारियों को जुर्माना लगाने की अनुमति देता है।

प्राइवेट कार को पब्लिक स्पेस कैसे माना जाएगा:

ऐसे में यह सवाल लोगों के जेहन उठना लाजमी है कि भला प्राइवेट कार को पब्लिक स्पेस के तौर पर कैसे देखा जा सकता है। इसके लिए, राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया है, जो कि सतविंदर सिंह सलूजा बनाम बिहार राज्य के बीच साल 2019 में चला था।

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों वाली बेंच ने कहा था कि सार्वजनिक सड़क पर निजी कार को ‘सार्वजनिक स्थान’ माना जा सकता है। इसलिए, किसी भी गतिविधि को सार्वजनिक स्थानों में अनुमति नहीं दी जाती है। इस फैसले के अनुसार निती कार में धूम्रपान, शराब पीना, अश्लीलता, जैसी गतिविधियों के उदाहरण दिए गए हैं। ऐसे किसी भी कृत्य के लिए दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है। इसलिए प्राइवेट कार भी यदि सड़क पर है तो उसे पब्लिक प्लेस ही माना जाएगा।

क्या था मामला: दरअसल कोर्ट बिहार आबकारी संशोधन अधिनियम, 2016 से संबंधित पटना उच्च न्यायालय के 2018 के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा था, जो अनिवार्य रूप से राज्य के निषेध कानूनों का एक हिस्सा था। इस मामले में याचिकाकर्ता 2016 में झारखंड से बिहार आ रहा था, इस दौरान जब गाड़ी बिहार के नवादा जिले में सीमा पर पहुंची तो पुलिस ने चेक किया था।

इस चेकिंग के दौरान वाहन में शराब नहीं मिली थी, लेकिन जब यात्रियों का ब्रेथ एनेलाइजर से टेस्ट किया गया तो उन्होनें शराब का सेवन कर रखा था। न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा इस मामले को संज्ञान लेने के बाद याचिकाकर्ताओं को दो दिनों के लिए हिरासत में रखा गया था। चूँकि बिहार में शराबबंदी कानून में कहा गया है कि सार्वजनिक स्थान पर शराब का सेवन करना अपराध है।

इस मामले में अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि आरोपी जिस निजी कार से सार्वजनिक स्थान पर भ्रमण कर रहे थें और जहां पर कार को रोका गया था वो सार्वजनिक स्थान था। बिहार कानून को कुछ इस तरह से परिभाषित करता है कि, किसी भी स्थान पर जहां जनता की पहुंच है वो सार्वजनिक स्थल है। फिर चाहे वहां पर सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग किया गया हो या प्राइवेट वाहन का।