विवादास्पद भूमि विधेयक पर अपने रुख में नरमी लाते हुए भाजपा ने यूपीए के भूमि कानून के महत्त्वपूर्ण प्रावधानों को वापस लाने पर सहमति जताई है। इसमें सहमति के उपबंध के साथ ही सामाजिक प्रभाव का मूल्यांकन करने के अलावा पिछले साल अध्यादेश के जरिए नरेंद्र मोदी सरकार के लाए गए विवादास्पद संशोधनों को छोड़ना शामिल है।

सूत्रों के मुताबिक संसद की संयुक्त समिति में भाजपा के सभी 11 सदस्यों ने सोमवार को संशोधन पेश किया। इसमें सहमति का उपबंध और सामाजिक प्रभावों का मूल्यांकन करना शामिल है। भाजपा के अपने पहले के रुख से पीछे हटने के साथ ऐसी संभावना है कि भाजपा सांसद एसएस आहलुवालिया के नेतृत्व वाली समिति सात अगस्त को आम सहमति से रिपोर्ट पेश करे।

सत्तारूढ़ भाजपा के संशोधन पेश करने के साथ पूर्ण सहमति का स्वर जाहिर करते हुए बैठक के बाद समिति में कांग्रेस के एक सदस्य ने कहा कि यह हमारे 2013 के कानून की तरह ही अच्छा है। वहीं तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन और कल्याण बनर्जी ने बैठक से वाकआउट किया। उन्होंने कहा कि इसमें संशोधनों के बारे में सोमवार सुबह जानकारी दी गई। इसका अध्ययन करने के लिए काफी कम समय मिला।

सोमवार को छह संशोधनों पर चर्चा की गई, जिस पर आम सहमति थी। राजग के विधेयक में 15 संशोधनों में नौ व्यापक प्रकृति के थे। इनका कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दलों ने विरोध किया था। कांग्रेस सदस्य ने दावा किया कि नौ में छह संशोधन जिसमें सहमति का उपबंध, सामाजिक प्रभाव का मूल्यांकन और ‘निजी कंपनी’ के शब्द को बदलकर निजी निकाय करने के बारे में सोमवार को चर्चा की गई और इस पर आम सहमति बनी।

भूमि विधेयक के संशोधनों का केवल विपक्ष ने ही विरोध नहीं किया है बल्कि राजग के कुछ घटक दल भी संशोधनों के खिलाफ रहे हैं। अभी पिछले महीने की 28 तारीख को 2013 के कानून में प्रस्तावित बदलाव को नाकाम करने लिए विपक्ष की जिस बैठक में रणनीति पर विचार किया गया। उसमें शिव सेना भी शामिल हो गई थी। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने संसदीय समिति को अपने संशोधन सौंप कर कानून में बदलावों को वापस लेने की मांग की। यह बैठक राकांपा प्रमुख शरद पवार के निवास पर हुई थी। बैठक में शिवसेना के आनंदराव अडसुल शामिल थे।

समझा जाता है कि कांग्रेस निजी परियोजनाओं के लिए 80 फीसद भूस्वामियों की सहमति और पीपीपी परियोजनाओं में 70 फीसद सहमति के प्रावधान को बहाल करने की मांग करती रही है। 2013 के कानून में सामाजिक असर आकलन कराए जाने का भी प्रावधान है ताकि प्रभावित परिवारों की पहचान की जा सके और भूमि अधिग्रहण किए जाने पर असर का आकलन किया जा सके।

हालांकि पवार के निवास पर हुई बैठक में तो कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और माकपा ने भूमि विधेयक की पूरी तरह वापसी की मांग की थी। लेकिन शिवसेना ने राजग विधेयक की पूर्ण वापसी की बात नहीं की थी। उसे सहमति प्रावधान और सामाजिक असर आकलन प्रावधान पर हटा दिए जाने पर आपत्ति रही है।