देश में कमर्शियल बैंकों ने बीते पांच साल में 9.54 ट्रिलियन रुपए के डूबे हुए ऋणों (बैड लोन) को बट्टे खाते में डाल दिया, जिसमें से सात ट्रिलियन रुपए से अधिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पब्लिक सेक्टर बैंक) द्वारा किए गए थे। बैंकों की ओर से बट्टे खाते में डाली गई राशि इस अवधि के दौरान वसूल की गई रकम के दोगुने से भी अधिक है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच साल में लोक अदालतों, ऋण वसूली न्यायाधिकरणों, सरफेसी अधिनियम (SARFAESI Act) और इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (IBC) सरीखे विभिन्न चैनलों के जरिए 4.14 ट्रिलियन रुपए की वसूली हुई। बैंकर अक्सर तर्क देते हैं कि बट्टे खाते में डालने का मतलब यह नहीं है कि उनके पास उन लोन (क्योंकि वे तकनीकी रूप से बट्टे खाते में डाल दिए गए) को रिकवर करने का विकल्प नहीं है।

अंग्रेजी अखबार ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ की रिपोर्ट के मुताबिक, बट्टे खाते में डालना बैंकों के लिए कम डूबे ऋणों की रिपोर्ट करने के मुख्य कारणों में से एक है। मार्च 2018 में चरम पर पहुंचने के बाद जब सकल गैर-निष्पादित संपत्ति (नॉन परफॉर्मिंग असेट्स) 11.8 प्रतिशत पर पहुंच गई थीं तो मार्च 2021 में बैड लोन्स गिरकर 7.3 प्रतिशत हो गए थे।

आरबीआई ने कहा कि अनंतिम पर्यवेक्षी डेटा (प्रोविजनल सुपरवाइजरी डेटा) ने सितंबर 2021 के अंत तक अनुपात में 6:9 प्रतिशत की और कमी का सुझाव दिया, जो कि पांच साल में सबसे कम था। बीते पांच साल में बैंकों द्वारा बट्टे खाते में डाली गई राशि 31 मार्च, 2021 तक उनकी संपत्ति के पांच प्रतिशत से कम थी, जो लगभग 195 ट्रिलियन रुपए थी।

साल 2020-21 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंक्स) ने 2.08 ट्रिलियन मूल्य के ऋणों को बट्टे खाते में डाल दिया था। इनमें से 1.34 ट्रिलियन राज्य द्वारा संचालित ऋणदाताओं द्वारा था। वहीं, वर्ष 2020-21 में बैंकों द्वारा वसूल की गई रकम केवल 64,228 करोड़ थी, जो वसूली के विभिन्न चैनलों को दी गई राशि की 14.1 प्रतिशत थी। वित्त वर्ष 2021 में रिकवरी प्रतिशत बीते चार साल में सबसे कम है।

वित्त वर्ष 2021 में आईबीसी के तहत 2.73 ट्रिलियन की रिकवरी हुई थी, जो कि स्कीम के तहत निर्दिष्ट रकम का 20.2 फीसदी था। दिवाला संहिता (बैंकरप्सी कोड) की स्थापना के बाद से यह सबसे कम वार्षिक वसूली थी। पहले तीन वित्त वर्षों (पूर्ण) में आईबीसी के तहत रिकवरी की दर 45 फीसदी के आसपास थी।

वैसे, धीमी गति से रिकवरी की मुख्य वजह यह है कि सरकार ने कोविड-19 महामारी के कारण कुछ आईबीसी प्रावधानों को 25 मार्च 2020 से 24 मार्च 2021 तक एक वर्ष के लिए निलंबित कर दिया था। निलंबल काल के दौरान आईबीसी के तहत ताजा प्रोसीडिंग्स मान्य नहीं थीं।