टैरिफ वॉर और भारी कर्ज के कारण परेशानियों का सामना कर रहे टेलीकॉम सेक्टर की कंपनियों के बाद अब इस क्षेत्र में काम करने वाले और इस क्षेत्र में नौकरी की तलाश में जुटे लोगों की मुश्किलें बढ़ने जा रही हैं।

सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एजीआर (Adjusted Gross Revenues) के मामले में सुनाए गए फैसले से टेलीकॉम कंपनियों पर भारी आर्थिक बोझ पड़ने वाला है। इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कंपनियों पर अपनी लागत में कटौती करने का भारी दबाव है। ऐसे में इसका असर इस क्षेत्र में छंटनी के रूप में देखने को मिल सकता है।

इसके अतिरिक्त टेलीकॉम सेक्टर में नई हायरिंग और मौजूदा कर्मचारियों की इंक्रीमेंट पर भी रोक लग सकती है। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने हाल के फैसले में दूरसंचार मंत्रालय के पक्ष में फैसला सुनाते हुए एजीआर में लाइसेंस और स्पेक्ट्रम फीस के अलावा यूजर्स चार्जेस, किराया, लाभांश और पूंजीगत बिक्री के लाभांश को शामिल करने का आदेश सुनाया था।

इसके बाद टेलीकॉम कंपनियों को 92 हजार करोड़ रुपये का भुगतान करना है। इसमें से सबसे अधिक 54 फीसदी रकम एयरटेल और वोडाफोन को चुकानी है। मालूम हो कि एयरटेल पर 2000 करोड़ और वोडाफोन आइडिया पर 4873 रुपये का कर्ज है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दूरसंचार कंपनियां खर्च में कटौती करने को मजबूर हैं। इसमें विशेष रूप से स्टाफ संबंधी और पूंजीगत खर्च शामिल हैं। इसके अलावा कंपनियों की तरफ से अपने नेटवर्क के विस्तार पर होने वाले निवेश में भी कटौती की जा सकती है। मालूम हो कि शीर्ष अदालत के फैसले के बाद भारती एयरटेल के चेयरमैन सुनील मित्तल दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद और दूरसंचार सचिव अंशु प्रकाश से सोमवार को मुलाकात कर इस मामले में राहत दिए जाने की बात कही थी।

सरकार के सूत्रों के अनुसार कोर्ट के फैसले के बाद बकाये का भुगतना करना ही होगा। अथॉरिटीज की तरफ से इस कर्ज के बोझ को किसी तरह से हल्का करने की कोशिश की जा रही है। लेकिन भविष्य में यदि किसी तरह की विजिलेंस स्क्रूटनी से बचना है तो ऐसा करना बहुत ही टेढ़ा काम है।