8th Pay Commission: आठवें वेतन आयोग के लिए Terms of Reference (ToR) को अंतिम रूप दिए जाने से पहले केंद्र सरकार के कर्मचारियों की कम्यूटेड पेंशन की पुरानी मांग फिर से चर्चा में है। यह कर्मचारी संघों की पुरानी मांग रही है कि पेंशन के कम्युट किए गए हिस्से की बहाली की अवधि 15 वर्ष से घटाकर 12 वर्ष की जाए। अब सवाल यह है कि क्या 8वां वेतन आयोग इस दिशा में कोई सिफारिश करेगा।
क्या है पेंशन कम्युटेशन?
केंद्र सरकार के कर्मचारी रिटारयरमेंट के समय अपनी पेंशन का अधिकतम 40% एकमुश्त लेने का विकल्प चुन सकते हैं। इसे ‘पेंशन कम्युटेशन’ कहा जाता है। बदले में, उनकी मासिक पेंशन में उस प्रतिशत की कटौती कर दी जाती है। लेकिन, मौजूदा नियमों के तहत, यह कम हुई पेंशन 15 साल बाद फिर से बहाल कर दी जाती है।
ऑनलाइन गेमिंग पर सरकार लगा सकती है 40% GST! तंबाकू, सिगरेट की श्रेणी में रखने पर विचार
इतिहास
5वें वेतन आयोग ने कर्मचारियों को अपनी पेंशन का एक-तिहाई से 40% तक कम्युट करने की अनुमति दी थी। साथ ही, पैनल ने सिफारिश की थी कि कम्यूटेड पेंशन 12 वर्षों में बहाल की जानी चाहिए। लेकिन सरकार ने इस सुझाव को स्वीकार नहीं किया और 15 वर्ष की अवधि जारी रखी। बाद के छठे और 7वें वेतन आयोगों ने इस नियम में कोई बदलाव सुझाना जरूरी नहीं समझा।
क्या है अदालतों का रुख?
साल 1986 में, “कॉमन कॉज बनाम भारत संघ” मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भले ही सरकार कम्यूटेड राशि 12 वर्षों में वसूल कर लेती है, फिर भी ‘रिस्क फैक्टर’ (कर्मचारी के पूरी तरह ठीक होने से पहले ही उसकी मृत्यु हो जाने की संभावना) को ध्यान में रखते हुए, बहाली की अवधि 15 वर्ष निर्धारित की गई थी।
2019 में, दिल्ली हाई कोर्ट ने भी इसी तर्क के आधार पर 15 वर्ष की अवधि को उचित ठहराया। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस निर्णय को बरकरार रखा। अदालतों का मानना है कि यह पूरी तरह से नीतिगत निर्णय है और न्यायपालिका इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
क्या है 8वें वेतन आयोग से मांगे?
केंद्र सरकार के कर्मचारियों के प्रतिनिधि निकाय लंबे समय से यह माँग कर रहे हैं कि 15 वर्ष की अवधि को घटाकर 12 वर्ष कर दिया जाए। कर्मचारी संघ चाहते हैं कि इस मुद्दे को 8वें वेतन आयोग की शर्तों में शामिल किया जाए।
पेंशन कम्यूटेशन अवधि पर क्या है सरकार का रुख?
हमारी सहयोगी फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मुताबिक, सरकार का कहना है कि 15 वर्ष की अवधि विशेषज्ञों की सलाह और रिस्क कारकों को ध्यान में रखते हुए तय की गई है। चूंकि पिछले दो वेतन आयोगों ने भी इसमें किसी बदलाव को जरूरी नहीं समझा था, इसलिए सरकार फिलहाल 15 वर्ष के नियम पर अड़ी हुई है।