केंद्रीय नौकरियों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के प्रतिनिधित्व में तेजी से इजाफा हुआ है। केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने बीते साल लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि 1 जनवरी, 2016 तक केंद्रीय नौकरियों में अनुसूचित जातियों का प्रतिनिधित्व 17.49 फीसदी था और जनजाति समुदाय के लोगों का रिप्रजेंटेशन 8.47 पर्सेंट तक पहुंच गया है। इसके अलावा ओबीसी समुदाय की बात करें तो यह आंकड़ा 21.57 फीसदी था। आरक्षण की व्यवस्था के मुताबिक अनुसूचित जाति के लोगों के लिए 15 फीसदी और अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों के लिए 7.5 फीसदी का कोटा निर्धारित है। ऐसे में दलित समुदाय के लोगों के प्रतिनिधित्व में इजाफा उत्साहजनक है और आरक्षण की तय सीमा से भी अधिक है।
खासतौर पर प्रथम श्रेणी की नौकरियों की बात की जाए तो 1965 में अनुसूचित जाति के लोगों का केंद्रीय नौकरियों में 1.64 फीसदी ही रिप्रजेंटेशन था, जो 2008 में बढ़कर 12.5 फीसदी हो गय़ा था। तब से अब तक 12 साल बीतने पर और इजाफा हुआ ही होगा। इसके अलावा अनुसूचित जनजाति की बात की जाए तो इस वर्ग का केंद्रीय़ नौकरियों की फर्स्ट क्लास श्रेणी में सिर्फ 0.27 फीसदी ही प्रतिनिधित्व था, जो 2008 में 4.9 फीसदी हो गया।
ग्रुप बी और सी की जॉब्स में कितना बढ़ा प्रतिनिधित्व: इसके अलावा सेकंड क्लास जॉब्स की बात करें तो 1965 में अनुसूचित जातियों के कर्मचारियों का अनुपात महज 2.82 फीसदी था, जो 2008 में 14.9 फीसदी तक हो गया। इसके अलावा एसटी समुदाय के कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व 43 सालों में महज 0.34 प्रतिशत से बढ़ते हुए 5.7 फीसदी पर पहुंच गया। भले ही यह आंकड़ा बहुत उत्साहजनक नहीं है, लेकिन बीते दौर के मुकाबले एक अच्छी तस्वीर जरूर पेश करता है। ग्रुप सी की नौकरियों में एससी कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व 1965 में 8.88 फीसदी से बढ़ते हुए 15.7 पर्सेंट पर आ गया। एसटी कम्युनिटी के कर्मचारियों की बात की जाए तो 1.14 पर्सेंट से बढ़ते हुए 7 फीसदी हो गया।
ग्रुप डी में कितना बढ़ा प्रतिनिधित्व: अब यदि ग्रुप डी की नौकरियों के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो 1965 में एससी समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व 17.75 पर्सेंट था, जबकि 2008 में 19.6 फीसदी था। एसटी समुदाय का प्रतिनिधित्व 3.39 पर्सेंट था और अब बढ़कर 6.9 पर्सेंट हो गया है।
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