विनोद के. शाह
खतरनाक नशे का दानव देश को जैसे चुनौती दे रहा है कि बचा सको तो बचा लो अपनी जवान हो रही पीढ़ी को। गृहमंत्री ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के नशा निरोधक कार्यबल को सन 2047 तक देश को नशामुक्त करने का संकल्प अवश्य दिलाया है, मगर ये एजेंसियां और पुलिस इतनी सजग और ईमानदार होतीं तो हालात यहां तक न पहुंचते। स्वतंत्र संस्था ‘थिंक चेंज’ ने एक अध्ययन में चेतावनी दी है कि कोरोना काल के बाद देश में नशीले पदार्थों की खपत तेजी से बढ़ी है। हालात नहीं बदले, तो अगले एक दशक में नशा विकराल रूप ले लेगा।
रिपोर्ट में सबसे अधिक दस से सत्रह वर्ष आयु के बच्चों और किशोरों के प्रभावित होने की आंशंका व्यक्त की गई है। चेतावनी हल्की नहीं है। नशे की आसान पहुंच मिडिल और हाई स्कूलों तक हो चुकी है। छोटी उम्र में बच्चों को हास्टलों और कोचिंग संस्थानों में भेजने की प्रवृत्ति और देश में कानून अनुपालन में सुस्ती ने बच्चों और किशोरों को नशे के नजदीक तक पहुंचा दिया है।
अनुमान है कि देश में नशे का कारोबार पंद्रह लाख करोड़ रुपए प्रतिवर्ष से अधिक का है। देश की तीन फीसद आबादी पूरी तरह खतरनाक नशे की चपेट में है। अब सिर्फ मिजोरम, पंजाब, दिल्ली ही नहीं, जहां नशा करने वालों के संख्या सर्वाधिक है, देश के हर कोने में छोटे-छोटे गांवों और कस्बों तक प्रतिबंधित नशीले पदार्थों की आसान उपलब्धता है।
पिछले साल गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह से तीन हजार किलो खतरनाक नशे का जखीरा, दिल्ली और लखनऊ से तीन सौ बाईस किलो की बरामदगी हुई, जिसकी आपूर्ति शृंखला में चिकित्सा, इंजीनियरिंग, आइआइटी, आइआइएम, फैशन डिजाइनिंग के छात्रों को जोड़ा गया था। कोटा, बंगलुरू, हैदराबाद, पुणे में जिस तेजी से आईटी क्षेत्र विकसित हुए, उसी तेजी से उनमें नशे का कारोबार फैला है।
एम्स द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कराए गए एक सर्वेक्षण में अकेले दिल्ली में नब्बे हजार खतरनाक नशे के आदी लोगों की पहचान हुई है। इनमें उनतालीस फीसद उन्नीस से अड़तीस वर्ष के युवा हैं। देश में दस से सत्रह वर्ष आयु के 1.48 करोड़ बच्चे और किशोर शराब, अफ्रीम, कोकेन, भांग, गांजा का सेवन कर रहे हैं। स्कूली बच्चों में ई-सिगरेट और ‘साइक्रोट्रापिक ड्रग’ की लत बहुत तेजी से बढ़ी है। वेबसाइटें धड़ल्ले से आनलाइन नशीली समाग्री का विक्रय कर रही हैं, तो शहरों और कस्बों के कुछ दवा व्यवसायी इसे उपलब्ध करा रहे हैं।
स्कूल-कालेजों के पास स्थित पान-चाय की दुकानों सहित अन्य दुकानदार इस तरह की समाग्री के विक्रय को अवैध कमाई का जरिया बना चुके हैं। ‘साइक्रोट्रापिक ड्रग्स’ को छोटे शहरों और कस्बों में अधिकांश होटल और रेस्तरां मालिक छात्रों को पार्टी आयोजनों में आसानी से उपलब्ध करा रहे हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार जहां सन 2019 में नशे की लत से परेशान 7 हजार 800 व्यक्तियों ने आत्महत्या की, सन 2021 में यह आंकड़ा बढ़ कर 10 हजार 560 पर जा पहुंचा है। नशे की वजह से आत्मघाती प्रवृति दो साल में बीस फीसद की दर से बढ़ी है। पंजाब में स्कूली बच्चों की रिपोर्ट बताती है कि राज्य का हर तीसरा छात्र और दसवीं छात्रा नशे की लत का शिकार हो चुकी है। सामाजिक न्याय विभाग के अनुसार देश की कुल आबादी का 14.6 फीसद हिस्सा नशे की गिरफ्त में है, जिसमें से तीन फीसद खतरनाक नशे का आदी है। देश में तेजी से फैलते जहर के खिलाफ अगर सरकारें और आम जन नहीं चेता तो 2050 तक आधी युवा आबादी नशे की गिरफ्त में होगी। आंध्रप्रदेश, पंजाब और ओड़ीशा गांजे के बड़े आपूर्तिकर्ता राज्य हैं।
पहले कभी ऊंटों के माध्यम से होने वाला यह अवैध कारोबार अब समुद्री मार्ग और ड्रोन के जरिए हो रहा हे। कच्छ के मुंद्रा और जखाऊ बंदरगाह से सूरजवारी और सामखियाली राजमार्ग से होता हुआ देश के कोने-कोने तक नशीला पदार्थ पहुंच रहा है। पिछले साल गुजरात एटीएस ने मोरबी जिले के छोटे से गांव झिझुडा से 120 किलो नशीला पदार्थ पकड़ा, जिसकी अंतरराष्ट्रीय बजार में कीमत 600 करोड़ रुपए थी। हाल में एनसीबी और नौसेना के संयुक्त अभियान के तहत केरल के कोच्चि के समुद्र तट से बारह हजार करोड़ रुपए का 2500 किलोग्राम नशीला पदार्थ एक पाकिस्तानी नौका से बरामद किया है।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, दक्षिण और पूर्वी राज्यों में केमिकल ड्रग्स मेंथा, एलएसडी, म्याउ-म्याउ, सफेद पाउडर, टिकट जैसे नशीले पदार्थों की पहुंच बच्चों और किशोरों तक हो चुकी है। देश में नशीले पदार्थों की रोकथाम के लिए बना कानून इस गैर-कानूनी कारोबार की रोकथाम में कमजोर साबित हो रहा है। सजा का पूरा नजरिया पुलिस की ईमानदारी पर निर्भर करता है। मौत के सौदागर इन अपराधियों के लिए सजा का मामूली प्रावधान देश में अपराध को बढ़ाने वाला रहा है। देश में नशीले पदार्थों का कारोबार राज्यों की सीमाओं पर चलता है, क्योंकि राज्यों की सुरक्षा एजेंसियों में समन्वय की कमी और राज्य सरकारों में राजनीतिक विद्वेष की भावना नशा माफिया के संरक्षण का कारण बन रही है।
नशा माफिया की कमर तोड़ने के इरादे से सीबीआइ ने इंटरपोल और एनसीबी की मदद से आठ राज्यों में आपरेशन गरुण चालाया था। हेरोइन, चरस, मेफेड्रोन, स्मैक, नशीले इंजेक्शन, गांजा, अफीम की बड़ी बरामदगी के साथ 6600 संदिग्धों की गिरफ्तारी हुई थी। मगर राज्य सरकारें समांजस के आभाव में इस अभियान को जारी नहीं रख सकीं। आज जहां माफिया आधुनिक तकनीकी सुविधाओं से देश के छोटे गांवों तक अपनी आसान पहुंच बना चुका है, वहीं देश के अलग-अलग राज्यों के नौ सौ थानों में संचार साधनों की उपलब्धता तक नहीं है। देश के 233 पुलिस थानों में वाहन नहीं हैं। 115 थानों में वायरलेस सेट नहीं है।
देश के 17 हजार 233 पुलिस थानों के आधुनिकीकरण के लिए केंद्र सरकार राज्यों को राशि देती है। 2021-22 में केंद्र ने 158.56 करोड़ रुपए जारी किए थे। पिछले वर्षों में राज्यों को दी गई राशि खर्च न होने की वजह से 742.10 करोड़ रुपए बच गए।
राज्य सरकारें पुलिस के आधुनिकीकरण में बहुत पीछे हैं, जबकि अपराधियों की गति बहुत तेज है। नशा कारोबारी अब इस धंधे में महिला गिरोह को भी शामिल करने लगे हैं, जबकि देश में महिला पुलिस कर्मियों की संख्या बहुत कम है। देश की अदालतें महिला अपराधी की गिरफ्तारी महिला पुलिस से ही कराने का पक्षधर हैं, जबकि देश भर में 2800 महिलाओं पर एकमात्र महिला पुलिसकर्मी है। राज्यों के हालात ये हैं कि एसटीएफ के विशेष प्रशिक्षित जवानों को मंत्रियों और अफसरों के संतरी बना कर बंगलों की चौकीदारी में लगाया गया है। जबकि नगर सेवा के जवान पुलिस थाने चला रहे हैं। अकेले मध्य प्रदेश में एसटीएफ के चार हजार से अधिक जवान अपराधियों की धर-पकड़ के बजाय मंत्रियों और पुलिस अफसरों की चाकरी कर रहे हैं। नशीली समाग्री के त्वरित परीक्षण के लिए राज्यों के पास पर्याप्त प्रयोगशालाएं नहीं हैं। जब्त समाग्री की जांच में महीनों लग जाते हैं, जिससे नतीजे सही नहीं आ पाते हैं।
बढ़ती जनसंख्या, रोजगार की कमी, छोटे व्यवसायियों के रोजगार छिनने, कार्यस्थलों पर तनाव, बच्चों पर पढ़ाई का बोझ, संयुक्त परिवारों में टूटन से बच्चों और किशोरों का बढ़ता अकेलापन उन्हें नशे की तरफ धकेल रहा है। अगर सरकारें इसे लेकर अब भी गंभीर नहीं हुर्इं, तो आने वाली पीढ़ियां मानसिक अपंगता के साथ अपराध में प्रवृत्त होंगी।