केवल पंजाब ही नहीं, बल्कि पूरा देश ही मादक पदार्थों के नशे की गिरफ्त में है। फैलते हुए नशे के कारोबार को देख ऐसा लगता है कि हम सभ्यता और विकास के बजाय असभ्य विनाश की ओर बढ़ रहे हैं। हर आठवें-दसवें परिवार में अशांति और कलह का कारण नशा है। नशे की लत में पड़ा व्यक्ति खुद को तो निकम्मा लाचार बनाता ही है, परिवार को भी भुखमरी और गरीबी में धकेलता है।
अगर नशे के व्यापार पर सरकारें लचीला रुख अख्तियार करती रहीं तो मानवीय उत्पादन शक्ति कमतर होती जाएगी। यह भी सर्वविदित है कि अपराध के मूल में नशा ही है। शराबबंदी वाले प्रांतों में शराब आसानी से मिल रही है तो यह सत्ता की कमजोरी है।
एक तरफ कुछ सरकारें आबकारी नीति लाकर गांवों तक शराब की नई-नई दुकानें खुलवा रही है, दूसरी तरफ नशामुक्ति अभियान भी चला रही है। यह कितना हास्यास्पद लगता है? सभ्य समाज राष्ट्र निर्माण के प्रति अगर सरकारें गंभीर हैं तो आय के इस स्रोत को त्यागना होगा। अन्य संसाधन विकसित कर आय बढ़ाई जा सकती है।
हुकुम सिंह पंवार, टोड़ी, इंदौर