मोदी के पास अब दो वर्ष बाकी हैं यह सिद्ध करने के लिए कि परिवर्तन और विकास के उनके नारे खोखले नहीं थे। लेकिन इससे पहले उनको अपना जनादेश आरएसएस और अन्य हिंदुत्ववादी संस्थाओं से वापस लेना होगा। ऐसा करना मुश्किल नहीं है।
प्रधानमंत्री ने सोनिया गांधी की सेहत को लेकर ट्वीट करके चिंता तो व्यक्त की, लेकिन क्या उनको इस बात की चिंता नहीं हुई कि बनारस में कांग्रेस अध्यक्ष के स्वागत में इतने लोग सड़कों पर निकल आए पिछले सप्ताह? यह वही बनारस है, जो मोदी के लिए ऐसा ही स्वागत पेश करता था 2014 के चुनावों में। याद है मुझे वह दिन जब पूरा शहर मोदी, मोदी के नारे से गूंज उठा था, जब वे अपना नामांकन पत्र भरने गए थे। मैं भी थी वहां और याद है कि गरमी कितनी जानलेवा थी और धूप कितनी बेरहम। हम पत्रकार किसी न किसी तरह पीने का पानी मंगवा लेते थे, लेकिन बाकी लोग भूखे-प्यासे रहे दिन भर, मोदी को एक क्षण देखने के लिए। पिछले सप्ताह, जो सोनिया गांधी के लिए इतना उत्साह दिखा लोगों में, तो क्या इससे समझा जाए कि बनारस के लोग अपने सांसद से नाखुश हैं?
प्रधानमंत्री को इस बात की चिंता हो न हो, मुझे निजी तौर पर है। इसलिए कि अगर जनता मोदी के कार्यकाल से मायूस होकर वापस कांग्रेस की बाहों में चली जाती है, तो भारत की गाड़ी आगे बढ़ने के बजाय पीछे चलने लगेगी। दशकों से गांधी परिवार ने साबित करके दिखाया है कि उनकी समाजवादी नीतियां खोखली हैं और इस समाजवाद के अंदर छिपा हुआ है एक अजीब किस्म का लोकतांत्रिक सामंतवाद, एक अजीब किस्म की राजशाही। यानी इस देश के आम आदमी के लिए आवास के तौर पर झुग्गी बस्तियां, बेहाल शहर और शासकों के लिए आलीशान मकान, आम आदमी के लिए न बिजली, न पानी, न स्कूल, न सड़कें, न अस्पताल। शासकों के लिए हर किस्म की सुविधा। यहां तक कि जब राजनेता महाराज विदेशों में इलाज कराने जाते थे, तो उसका भी पैसा जनता देती थी। इन्हीं चीजों में चाहती थी और आज भी चाहती है भारत की जनता परिवर्तन। रही बात विकास की तो साधारण सुविधाएं और रोजगार मिल जाएं, तो जनता इसको विकास समझेगी।
ऐसा नहीं कि मोदी सरकार ने परिवर्तन और विकास के लिए पिछले दो वर्षों में कुछ नहीं किया है। बहुत कुछ किया है, कई नई योजनाएं बनी हैं, लेकिन प्रशासनिक सुधारों के न होने से जमीन तक इनका असर अभी तक कम ही पहुंचा है। कुछ दिनों पहले मैं दिल्ली के एक आला अधिकारी से मिली यही बात कहने, तो उन्होंने स्वीकार किया कि जिस तेजी से परिवर्तन आना चाहिए था अभी तक आया नहीं है, क्योंकि ‘सिस्टम’ हर कदम पर रुकावट पैदा करता है। सिस्टम माने भारत सरकार के वे अफसर, जो अभी तक समझे नहीं हैं कि प्रधानमंत्री वास्तव में परिवर्तित करना चाहते हैं भारत को। सो, वही पुराने काम करने के तरीके आज भी दिखते हैं सरकारी दफ्तरों में, लेकिन पिछली सरकार और इस सरकार में फर्क इतना जरूर है कि ऊंचे स्तर पर अभी तक कोई घोटाला सामने नहीं आया है।
मोदी सरकार की उपलब्धियां शायद इसलिए भी कम दिखती हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री ने अपना जनादेश एक तरह से आरएसएस के हवाले कर दिया है। सो, रोज पिछले एक वर्ष से कोई न कोई नई शर्मनाक घटना पेश आई है हिंदुत्व से जुड़ी हुई। मोहम्मद अखलाक की हत्या के बाद यह सिलसिला शुरू हुआ और अब हाल यह है कि गोरक्षक बेलगाम हो गए हैं कई राज्यों में। सबसे शर्मनाक घटना प्रधानमंत्री के अपने प्रदेश से आई। ऊना के गोरक्षकों ने दलित नौजवानों के साथ ऐसा अत्याचार किया कि दुनिया चौंक गई तस्वीरें देख कर। यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के प्रवक्ता ने भी ध्यान दिलाया कि गोरक्षा के नाम पर भारत में अत्याचार हो रहा है। प्रधानमंत्री अब भी ऐसी घटनाओं पर कुछ नहीं बोले हैं और इस चुप्पी का नुकसान उन्हें निजी तौर पर हुआ है।
उनसे जब मैं मिली थी कुछ महीने पहले अपनी नई किताब उनको देने के लिए, तो पूछा कि मोहम्मद अखलाक की हत्या के बाद उन्होंने कुछ कहा क्यों नहीं। उनका जवाब था कि अपने देश में रोज कोई न कोई अत्याचार होता रहता है, तो बोलना अगर शुरू करते हैं वे तो रोज इसी में लगे रहेंगे। इसके बारे में शायद उनको दोबारा सोचना चाहिए यह ध्यान में रख कर कि विकसित पश्चिमी देशों के राजनेता हर हिंसक हादसे के बाद आवाज उठाते हैं जोर से ताकि आम लोगों को भरोसा रहे कि उनकी रक्षा करने वाला है कोई। मोदीजी के दुश्मन उनकी चुप्पी का खूब फायदा उठा चुके हैं और यह भी एक कारण है कि इतने लोग सोनिया गांधी के स्वागत में निकले बनारस की गलियों में पिछले हफ्ते।
मोदी के पास अब दो वर्ष बाकी हैं यह सिद्ध करने के लिए कि परिवर्तन और विकास के उनके नारे खोखले नहीं थे। लेकिन इससे पहले उनको अपना जनादेश आरएसएस और अन्य हिंदुत्ववादी संस्थाओं से वापस लेना होगा। ऐसा करना मुश्किल नहीं है। बस एक बार स्पष्ट शब्दों में कह देना है उनको कि गोरक्षा के नाम पर जो हिंसा फैल रही है देश में, उसकी निंदा करते हैं। एक बार अपने मुख्यमंत्रियों को बुला कर खबरदार कर दें कि जो छूट उन्होंने अभी तक दी है गोरक्षकों को, वह उन्हें पसंद नहीं है। अपने सांसदों और भाजपा कार्यकर्ताओं को सौंप दें काम इस संदेश को आम जनता तक पहुंचाने का, फिर गोमता के नाम पर फैली अशांति फौरन बंद हो जाएगी। ऐसा नहीं करते हैं मोदी तो देखते-देखते उन लोगों को वापस लौटने का मौका मिलेगा, जिनको 2014 में इस देश के मतदाताओं ने सत्ता से बेदखल किया था।