इस बार का ‘हिंदी दिवस’ ही हिंदी की पिटाई कराता अवतरित हुआ। अगले सात दिन तक अंग्रेजी चैनलों में हिंदी पिटती रही, फिर भी बेशर्म अपने पीटने वालों पर हंसती रही। इसे कहते हैं बड़ी भाषा का बड़प्पन! गृहमंत्री जी ने ‘हिंदी दिवस’ के अवसर पर जो कहा, वह एकदम ‘रस्मी’ था। उसमें कुछ भी अनर्गल न था। लेकिन हिंदी की बात आते ही पहले अंग्रेजी चैनलों को मिर्ची लगी और जब अंग्रेजी चैनलों को लगी तो कुछ देसी अंगे्रजों को भी लगी!
सबसे पहले ओवैसी जी ने ‘हिंदी’ को ‘हिंदू’ बना कर इस ‘हिंदी कूट-कथा’ का श्रीगणेश किया और ऐसा करके उन्होंने सिर्फ ‘सर सैयद’ वाला ही काम किया। जबकि ओवैसी अक्सर हिंदी में ही बोलते हैं! फिर डीएमके नेता स्टालिन जी ने ‘ये इंडिया है, हिंदिया नहीं’ कह कर धमकाया कि अगर हिंदी को तमिल और दक्षिणी राज्यों पर लादा गया तो सहन न किया जाएगा। वाइको जी बोले कि इससे ‘बल्कनाइजेशन’ हो जाएगा, यानी हिंदी की वजह से देश टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे! ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ को आए दिन कोसने वाले एक भी एंकर ने इनको ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ नहीं कहा!
कई अंग्रेजी एंकर बहसें आयोजित कराने लगे। एक अंग्रेजी चैनल पर डीएमके के एक प्रवक्ता ने सीधे कहा कि हिंदी संपर्क भाषा नहीं हो सकती। अंग्रेजी संपर्क भाषा है और रहेगी, उसे कोई नहीं हटा सकता। अंग्रेजी के कई भक्त एंकर ऊपर से हिंदी के प्रति हमदर्दी जताते दिखते हैं, लेकिन चर्चा में वे हिंदी को प्रेमपूर्वक पिटने देते हैं। एक कथित ‘राजनीतिक विश्लेषक’ जो अब टीएमसी प्रवक्ता कहने से शर्माते हैं, हिंदी को कूटते हुए चीखते रहे कि हिंदी आपकी मां हो सकती है, लेकिन वह मेरी मां नहीं हो सकती। मेरी मां तो बंगाली है। इसके आगे वे हिंदी की ‘जेनेटिक इकोनॉमिक्स’ पर पिल पड़े कि उत्तर भारतीय यानी हिंदी वाले ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं और दक्षिण के राज्यों को उनको खिलाना पड़ता है। दक्षिण के राज्य उनका बोझ क्यों उठाएं?
और उस अंग्रेजी महिला एंकर की समझदारी देखिए कि हिंदी के पक्ष में बोलने के लिए जिसे लाईं, वह हिंदी का लेखक या विद्वान न होकर एक बिजनेसमैन टाइप या वकील टाइप कुछ था जो हिंदी के इन विरोधियों का सटीक जवाब देने की जगह बंगाली वाले की चापलूसी में लगा रहा कि बंगाली बड़ी प्यारी भाषा है… कि टैगोर हुए हैं… कि हम तो बंगाली में लिखे ‘राष्ट्रगान’ को गाते हैं जी…! वह जितनी चापूलसी करता जाता, बंगाली बंधु उतना ही भड़कता जाता था और एंकर जी को समझ न आता था कि हिंदी का क्या करे!
बात हिंदी की रही, लेकिन उसकी पिटाई अंग्रेजी रही और अपने हिंदी से कमाने वाले हिंदी चैनल! वे तो हिंदी के नाम पर सिर्फ कवि सम्मेलन कराने में लगे थे। वे हिंदी से कमाने के लिए बने हंै, हिंदी को बचाने के लिए थोड़े ही बने हैं! इसीलिए किसी ने न कहा कि भैये, हिंदी को इतना भी मत गरियाओ! हिंदी भी एक भाषा है और अगर वह तुम्हारी चार-पांच करोड़ वाली से दस ग्यारह गुनी बड़ी है तो इसलिए कि तुम्हारी तरह वह किसी भाषा को दुश्मन नहीं समझती।
सबसे उच्चकोटि की फजीहत चिदंबरम जी की हुई। एक चैनल ने दिखाया कि एक वक्त में गृहमंत्री रहे चिदंबरम जी ने भी हिंदी को लेकर कुछ ऐसी ही बातें कहीं थीं जो आज के गृहमंत्री ने कही हैं। तब किसी ने शोर न मचाया था। इसे देख तुरंत चिदंबरम जी ने कह दिया कि वे हिंदी को थोपने के खिलाफ हैं। अरे भैया! थोप कौन कर रहा है हिंदी को? हां, हिंदी विरोध की आड़ में कुछ तमिल नेता जरूर अंग्रेजी को देश पर थोपे हुए हैं!
एक दोपहर कुछ भक्त एंकर अचानक गदगदायमान होते दिखे, मानो ‘मन की चीती’ पूरी हुई हो और लाइन लगाने लगे कि मंदिर का फैसला तो हो चुका है! लगा कि वक्त से पहले ही कुछ भक्त एंकरों ने कुछ ज्यादा ही बक दिया, लेकिन जल्द ही उन्होंने इस मुद्रा से तौबा कर ली! जरूर ‘बॉस’ ने कान मरोड़े होंगे!
और हे साथी! जब से ‘हाउडी मोदी’ हुआ है, तब से हर अंग्रेजी चैनल लहालोट है और लाइन पर लाइन दिए जा रहा है कि हम दिखाएंगे आपको ‘जीरो ग्राउंड’ से यानी ह्यूस्टन से ‘हाउडी मोदी’ वाला दिव्य भव्य ग्लोबल शो! यह एक युग प्रवर्तक घटना होने वाली है। अमेरिका और इंडिया की मित्रता प्रगाढ़ होगी। पाकिस्तान जलेगा, चीन हाथ मलेगा!
एक अंग्रेजी चैनल पर शशि थरूर की हिंदू-धर्म विषयक नई किताब पर एक शाम पंचों की परिचर्चा देखने-सुनने का सौभाग्य हुआ। इनमें एक सज्जन बौद्ध थे, बाकी सब ‘हिंदू’ थे। आरएसएस के एक सीनियर विचारक भी थे, जिन्हें अपने को ‘हिंदू’ के रूप में ‘शो आॅफ’ करने की जरूरत नहीं थी। बाकी को सुन-देख कर ऐसा लगता था कि मानो उनको इन्हीं दिनों इलहाम हुआ है कि वे भी ‘हिंदू’ हैं! चर्चा चली तो हमारा ज्ञानवर्धन हुआ कि हिंदू धर्म में न कोई एक पोप है, न कोई एक किताब है, न वह न एक सिस्टम है। तरह-तरह के हिंदू हो सकते हैं। नास्तिक भी हिंदू है, चार्वाक हिंदू थे और हम सब भी हिंदूू हैं।
इन नए-नए हिंदुओं को देख कर हमारे कानों में तो संघ के एक विचारक वह मंत्र गंूजता रहा जो कहता है कि ‘भज गोविंदम भज गोविंदम भज गोविंदम मूढ़मते!’
कोलकाता के जादवपुर विवि में केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो के विद्यार्थियों द्वारा किए गए तीन घंटे लंबे घेराव के सीधा-प्रसारण से मालूम हुआ कि ‘राइट’ कह रहा था कि यह ‘लेफ्ट’ का ‘फासिज्म’ है। इससे पहले लेफ्ट चिल्लाया करता था कि यह ‘राइट’ का ‘फासिज्म’ है!
‘फासिज्म’ से ‘फासिज्म’ की लाइव टक्कर में अगर कोई जीतता दिखा तो ‘फासिज्म’ ही!