भारतीय राजनीति का भूख और भगवान से गहरा याराना लगता है। मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारे से निकलते भारतीय नेताओं की तस्वीरें आम हैं तो वहीं नेता भूख और गरीबी मिटाने का वादा करते भी अक्सर सुने जाते हैं। लोक सभा चुनाव जीतने के बाद नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर में जाकर उनके दर्शन किया। मोदी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं को बार-बार याद दिलाया कि वो चायवाले के बेटे हैं इसलिए उन्हें ही गरीबों का दर्द पता है। दो साल पहले आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल वाराणसी में मोदी को चुनौती देने गए थे तो उन्होंने पहले काशी विश्वनाथ का दर्शन किया था। इस साल केजरीवाल अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में दर्शन करते नजर आए, अगले साल पंजाब में विधान सभा चुनाव हैं। शायद ये गरीबों की ही चिंता थी कि केजरीवाल ने पार्टी बनाई तो उसका नाम “आम आदमी” पार्टी रखा। ऐसे में उत्तर प्रदेश की राजनीति में वापसी करने की कोशिश करती कांग्रेस को अगर भूख और भगवान का सहारा है, हैरत कैसी?
पिछले महीने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपनी वाराणसी रैली के दौरान तबीयत खराब होने के कारण काशी विश्वानाथ के दर्शन नहीं कर पाईं तो उन्होंने वादा किया कि अगली बार आएंगी तो बाबा विश्वनाथ के दर्शन जरूर करेंगी। मंगलवार (6 सितंबर) को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने “देवरिया से दिल्ली” किसान यात्रा निकालने की शुरुआत करने के लिए भगवान का ही सहारा लिया। यात्रा का शुभारंभ करने के लिए राहुल ने देवरिया के रुद्रपुर स्थित दुग्धेश्वरनाथ मंदिर को चुना। देश के टीवी दर्शकों ने देखा कि ‘खाट सभा’ शुरू करने से पहले राहुल ने भगवान शिव शंकर का अभिषेक किया। भगवान के दरबार में हाजिरी लगाने के बाद ‘खाट सभा’ में दिए अपने भाषण में राहुल ने कहा कि वो “…किसानों, मजदूरों और गरीबों के लिए लड़ रहे हैं।” राहुल श्रोताओं को ये बताना शायद भूल गए गरीबी से गांधी परिवार की लड़ाई पुरानी है। उनकी दादी इंदिरा गांधी ने 1971 का चुनाव ‘वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ’ के नारे पर ही जीता था। राहुल के पिता राजीव गांधी को भी इस बात की चिंता थी कि ‘केंद्र द्वारा आम आदमी को भेजे गए एक रुपये में से उस तक केवल 17 पैसा पहुंचता है।”
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यूपी चुनाव से पहले जिस तरह सोनिया-राहुल आस्थावान हुए जा रहे हैं और जिस तरह गरीबों-किसानों की चिंता उन्हें सताने लगी है उससे साफ है कि यूपी चुनाव में सभी पार्टियों के बीच खुद को ज्यादा आस्थावान और गरीबों का बड़ा हमदर्द दिखाने की जंग तेज होगी। ये अलग बात है कि गरीबों-किसानों-दलितों-आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन के मुद्दों पर सभी पार्टियों की नीति लगभग एक है। आंकड़े गवाह हैं कि देश में अमीरी और गरीबी के बीच खाई बढ़ती ही जा रही है। राहुल गांधी ने भी देश के गरीबों की बदहाली दूर करने के लिए किसी तरह के ठोस नीतिगत बदलाव की बात नहीं की। वो भी बस भगवान के दर्शन और भूखों को आश्वासन देकर ही 27 साल बाद यूपी में वापसी करना चाहते हैं। राहुल को इसमें कितना सफलता मिलेगी पता नहीं लेकिन भारतीय राजनीति में भूख और भगवान के संबंध को कवि गोपाल सिंह नेपाली से बेहतर शायद ही किसी ने समझा हो-
दिन गए बरस गए यातना गई नहीं
रोटियाँ गरीब की प्रार्थना बनी रहीं
वेणु श्याम की बजी, राम का धनुष चढ़ा
युद्ध भी लड़े गए, ज्ञान बुद्ध का बढ़ा
पर खड़ा रहा नहीं, निर्धनों का झोपड़ा
अर्थियां चली गईं पर योजना गई नहीं
रोटियाँ गरीब की प्रार्थना बनी रहीं।
WATCH: Chaos breaks out as locals fight for Khatiyas(wooden cots) after Rahul Gandhi's Khat Sabha in Deoria ends pic.twitter.com/4tUxP81L1w
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) September 6, 2016
https://twitter.com/ANINewsUP/status/773059215061553152
Arrived in Rudrapur to a warm welcome&grt enthusiasm.Join @INCIndia on this Kisan Yatra as we fight for rights of farmers,labourers&the poor
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 6, 2016
Kisan Yatra Live: राहुल गांधी बोले- मोदी सरकार पर दबाव डालने के लिए किसान यात्रा शुरू की

