प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 जुलाई को अपने मंत्रिमंडल का दूसरा विस्तार कर लिया। मंत्री चुनने और विभागों का बंटवारा करने में उन्होंने दिखा दिया कि वह दो साल बाद भी सरकार और पार्टी के असल सुल्तान हैं। प्रदर्शन, समीकरण और चुनावी गणित का ख्याल रखते हुए उन्होंने जिसे चाहा चुना और मनमाफिक विभाग दिया।

Read Also: स्‍मृति ईरानी से छीना गया HRD तो सदानंद गौड़ा ने गंवाया कानून मंत्रालय, जानिए किसे मिला कौन सा मंत्रालय

वैसे मोदी जितना बहुमत लेकर प्रधानमंत्री बने हैं, उसमें किसी तरह का दबाव का प्रश्न भी नहीं उठता। और शायद यही वजह है कि उन्होंने दो साल पहले जिस स्मृति ईरानी को लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद मानव संसाधन जैसा मंत्रालय दे दिया था, आज एक झटके में उन्हें कपड़ा मंत्रालय संभालने के लिए कह दिया। मोदी ने यह निर्णय तब नहीं लिया जब स्मृति ईरानी की डिग्री पर विवाद के चलते देश भर में सरकार की किरकिरी हुई। मोदी दूसरों की बातों से बेफिक्र स्मृति के भरोसे देश की शिक्षा व्यवस्था छोड़े रहे। बिल्कुल एक सुल्तान की तरह।

Read Also: तीन बातें देखकर पीएम मोदी और अमित शाह ने चुने 19 नए मंत्री, दो महीने तक चली कवायद

फिर अब ऐसा क्या हुआ? क्या स्मृति शिक्षा के क्षेत्र में मोदी सरकार का एजेंडा (जिस पर आरएसएस की छाप है) लागू करा पाने में नाकामयाब रहीं? क्या शिक्षा मंत्री रहते स्मृति को यूपी चुनाव में ज्यादा सक्रिय करने में बीजेपी को परेशानी आती और विरोधियों को हमलावर होने का मौका मिलता? स्मृति के रहते नई शिक्षा नीति पर तेजी से फैसला नहीं हो पा रहा था? इसमें कोई शक नहीं कि इन सारे सवालों के जवाब से ही स्मृति भूतपूर्व शिक्षा मंत्री हुई हैं। अब बड़ा सवाल स्मृति या उनका महकमा संभालने जा रहे प्रकाश जावड़ेकर का नहीं है, हमारी शिक्षा नीति का है।