कई बार सटीक जानकारी देना आपके लिए शाप बन जाता है। बिहार चुनावों में (जेडीयू गठबंधन को 175 और एनडीए को 60 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था, असल नतीजों में जेडीयू गठबंधन को 178 और एनडीए को 58 मिली थीं।) सही अनुमान लगाने के कारण अब उम्मीदें बढ़ गई। हालांकि चुनाव विश्लेषकों के लिए समय ठीक नहीं चल रहा है। अमेरिकी चुनावों के बारे में कई चुनावी दिग्गजों के अनुमान औंधे मुंह गिरे हैं। सभी ने ट्रंप को रेस से बाहर माना लेकिन वे रिपब्लिक उम्मीदवार बनने के सबसे बड़े दावेदार हैं। वहीं बर्नी सेंडर्स को भी किसी ने हिलेरी क्लिंटन के सामने भाव नहीं दिया लेकिन वे हिलेरी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
भारत में भी असम, बंगाल, तमिलनाडु और केरल में मतदान हो चुका है और 19 मई को नतीजे जारी होंगे। इन चुनावों को लेकर काफी कम ओपिनियन पोल हुए हैं, साथ ही इतना उत्साह भी नहीं जितना बिहार चुनावों को लेकर था। इन राज्यों के सीटों के अनुमान से पहले कुछ तथ्यों को जान लेते हैं। इन चारों राज्यों में भाजपा ने 2014 आम चुनावों में जबरदस्त पैठ बनाई थी। इससे पहले 2011 में विधानसभा चुनावों में इन चारों राज्यों में भाजपा का वोट शेयर केवल 5 प्रतिशत था। 2014 आम चुनावों में यह आंकड़ा बढ़कर 20.5 प्रतिशत हो गया। असम में भाजपा को सबसे ज्यादा कामयाबी मिली और उसने 126 सीटों में से 69 पर बढ़त बनाई। अब सवाल यह है कि असम को छोड़कर 2014 का भाजपा का वोटर इस बार किसे वोट देगा। असम को छोड़कर अन्य राज्यों में भाजपा के वोटर्स के जीतने वाली पार्टी की ओर जाने की सबसे बड़ी संभावना है। आइए देखते हैं चारों राज्यों में भाजपा की क्या स्थिति है:
पश्चिम बंगाल: भाजपा के वोटर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ जाएंगे। यदि वोटर भाजपा के साथ रहे तो इसके चलते भी टीएमसी को फायदा होगा। दोनों परिस्थितियों में ममता को फायदा होगा। ममता को इसके लिए भाजपा का अहसान जताना चाहिए।
तमिलनाडु: लगभग बंगाल जैसी ही स्थिति यहां है। भाजपा को 2014 में 5.5 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि 2011 में 2.2 प्रतिशत। भाजपा से छिटकने वाले कुछ वोटर मुस्लिम हो सकते हैं जो डीएमके-कांग्रेस या एआईडीएमके साथ जा सकते हैं। हालांकि डीएमडीके-एमडीएमके गठबंधन के चलते डीएमके और भाजपा के मतों में ही सेंध लगेगी। बता दें कि भाजपा भी डीएमडीके-एमडीएमके गठबंधन के जाना चाहती थी। इसे देखते हुए जयललिता की वापसी संभावित है। अगर ऐसा होता है तो तमिलनाडु की जनता 40 साल में पहली बार सत्ताधारी दल को लगातार दूसरी बार सत्ता मिलेगी।
केरल: यह राज्य संभावनाओं के लिए सबसे मुश्किल है। पहला कारण तो यह कि केरल दो पार्टियों के साथ ही चलता है। वोट शेयर में थोड़ा सा भी बदलाव सीटों में बड़ा उलटफेर कर देता है। 2011 में एलडीएफ को 36.9 और यूडीएफ को 40.6 प्रतिशत वोट मिले। केरल का ऐतिहासिक रिकॉर्ड है कि सत्ता में रहने वाली पार्टी के वोट शेयर में 1.5 प्रतिशत की कमी होती है। अगर ऐसा होता है तो एलडीएफ और यूडीएफ के बीच कड़ी टक्कर रहती है। लेकिन भाजपा का वोट शेयर 2011 के 6 प्रतिशत से 2014 में बढ़कर 10.5 प्रतिशत हो गया। देखना होगा भाजपा का वोटर किधर जाता है। हालांकि संभावना है कि वामपंथी एलडीएफ विजेता बनकर उभर सकते हैं।
असम: यही वह राज्य है जहां भाजपा को राजनीतिक विश्लेषकों ने सत्ता में आने का दावेदार बताया है। इसका सबसे बड़ा कारण है भाजपा गठबंधन के 2011 के वोट शेयर 33.9 का 2014 में बढ़कर 42.9 प्रतिशत हो जाना। अकेले भाजपा का वोट प्रतिशत 36.9 हो गया जबकि कांग्रेस का वोटबैंक 39.4 से 29.9 पर आ गिरा। यदि लोकसभा का पैटर्न चला तो भाजपा गठबंधन की आसान जीत होगी। ओपिनियन पोल्स का कहना है कि भाजपा के पास कांग्रेस पर केवल 2 प्रतिशत वोट प्रतिशत की बढ़त है। यह बढ़त उसे बहुमत के आंकड़े 65 सीट तक ले जाएगा। यहां पर ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम की पार्टी भी अहम है। इसे 2014 लोकसभा चुनावों में 15 प्रतिशत वोट मिले थे। यह इसका वोट बैंक बढ़ा तो कांग्रेस को नुकसान होगा। असम में भाजपा गठबंधन की हार सबसे बड़ा आश्चर्य होगा।
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सभी ओपनियिन पोल्स में कांग्रेस की हार बताई गई है। तमिलनाडु में इसके साथी डीएमके और बंगाल में लेफ्ट को भी मात मिलेगी। हमारा भी ऐसा ही अनुमान है लेकिन कांग्रेस गठबंधन के लिए ज्यादा बड़ा नुकसान होगा। यदि यह संभावना सही साबित हुई तो भारतीय राजनीति में बड़ा बदलाव आएगा। जनता कांग्रेस के अंत की शुरुआत के बारे में बात करने लगेगी। लेकिन 19 मई के नतीजे हमारी संभावना से अलग आए तो कांग्रेस को पुनर्जीवन मिलेगा। हमारा कहना है कि ये नतीजे कांग्रेस के अंत वाले होंगे लेकिन अंतिम फैसला जनता के पास है।
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लेखक, ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में कॉन्ट्रिब्यूटिंग एडिटर हैं और ओक्सस इंवेस्टमेंट्स के चेयरमैन हैं।