Pain Of Hungry: भारत में कोई व्यक्ति यदि रात में भूखा (Hungry) सोता है तो माना जा सकता है कि देश का सौभाग्य सो गया,लेकिन जब भूख से तड़पकर (Starving) असमय कोई काल का ग्रास बन जाता है, तो कहा जा सकता है कि आजादी के 75 वर्ष बाद भी हम अपने दुर्भाग्य (Unfortunate) से पीछा नहीं छुड़ा पाए हैं। यही तो हुआ कोरोना काल (Covid Period) में, जब हजारों भूखे मजदूर (Hungry Laborers) सैकड़ों मील अपने बाल-बच्चों को कंधे और गोदी पर टांगकर या फिर अपने बैग को बच्चों के लिए ट्राली के रूप में इस्तेमाल करके पलायन करने के लिए मजबूर हो गए थे।

गांधी और बुद्ध ने यातना सहकर ही दर्द का अनुभव किया

पूर्व प्रधानमंत्री स्व.चंद्रशेखर (Former Prime Minister Late Chandrashekha) ने अपनी आत्मकथा (Autobiography) में लिखा है कि युगोस्लाविया (Yugoslavia) के एक प्रोफेसर ने,जो सारी दुनिया में ‘शरणार्थियों की समस्या (The Problem Of Refugees)’ पर शोध कर रहे थे, उनके एक प्रश्न के उत्तर में कहा था, ‘हमारे देश में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को भी गरीबी के दर्द (Pain Of Poverty) का अनुभव तब हुआ, जब दक्षिण अफ्रीका (Africa) में उन्हें तरह-तरह की यातनाएं (Tortures) भुगतनी पड़ीं। उसी यातना से प्रेरणा लेकर वे गरीबों की जिंदगी से सीधे जुड़ गए। महात्मा बुद्ध (Mahatma Buddha) को असली ज्ञान तब हुआ, जब उन्हें सुजाता की खीर खाने के लिए मजबूर होना पड़ा। भूख की पीड़ा को समझे बिना कोई भूख मिटा नहीं सकता।’

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से यह सुनिश्चित करने को कहा कि कोई भी भूखा न सोने पाए

पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज (Social Activists Anjali Bhardwaj), हर्ष मंदर (Harsh Mander) और जगदीप छोकर (Jagdeep Chhokar) की ओर से वकील प्रशांत भूषण (Advocate Prashant Bhushan) बहस कर रहे थे। उस पर जस्टिस एमआर शाह व हिमा कोहली (Justice MR Shah And Hima Kohli) ने केंद्र सरकार से कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि किसी को भूखा नहीं सोना चाहिए।

झारखंड में भुखमरी: बोकारो के कर्मा शंकरडीह गांव निवासी भुक्खल घासी की मार्च 2020 और बेटी-बेटा की सितंबर में तथा दुमका के महुआडानर गांव के कालेश्वर सोरेन की नवंबर 2018 में कथित तौर पर भूख से मौत हो गई। (Photo- Indian Express File)

पीठ ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत खाद्यान्न अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। न्यायालय कोरोना महामारी और लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान प्रवासी श्रमिकों (Migrant Workers) की कठिनाइयों से संबंधित जनहित मामले पर सुनवाई कर रहा था।

भूख से व्याकुल लोगों की पीड़ा और दाने-दाने के लिए मोहताज जिंदगी की कुछ तस्वीरें। (फाइल फोटो)

उपनिषद की एक पौराणिक कथा के अनुसार एक ब्रह्मचारी किसी ऋषि के पास गया। उसने कहा- गुरुवर मुझे ब्रह्मज्ञान दें। गुरु ने उसे ध्यान लगाने के लिए कहा। जब पर्याप्त समय हो गया तो उसने न केवल आंखें खोल दीं बल्कि उठकर खड़ा भी हो गया। गुरुदेव ने कठोर स्वर में कहा- ‘बैठ जाओ’, पर वह बैठा नहीं और गुरु की अवज्ञा करते हुए उच्च स्वर में चिल्लाकर बोला- ‘मैं बैठ नहीं सकता। भूख से मेरे प्राण निकल रहे हैं। मुझे अन्न चाहिए।’ गुरुदेव ने मुस्कुराकर कहा, ‘तो पहला पाठ सीखो कि अन्न ही ब्रह्म है और अन्न के बिना कुछ नहीं हो सकता।’ इसी प्रकार तैत्तरियोपनिषद में कहा गया है कि ‘अन्न ब्रह्म है, क्योंकि अन्न से ही सारे प्राणी उत्पन्न होते हैं, उत्पन्न होकर अन्न से ही जीवित रहते हैं, अंत में संसार से प्रयाण करते हुए फिर अन्न में प्रविष्ट हो जाते हैं।’

यातना: कोई कूड़े से अन्न का दाना बीनकर खाने को विवश है तो कोई एक घूंट पानी पीकर जीने की आस लगाए है। (Photo- Indian Express and AP File)

वर्ष 1947 में जब देश आजाद हुआ तो हर तीन में से दो व्यक्ति गरीब थे

वर्ष 1867-68 में सबसे पहले दादा भाई नौरोजी (Dadabhai Naoroji) ने गरीबी खत्म करने का प्रस्ताव पेश किया था। सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने भी वर्ष 1938 में इसकी पहल की थी। वर्ष 1947 में जब देश आजाद हुआ तो हर तीन में से दो व्यक्ति गरीब थे। आज कहा जाता है कि हर तीन में से एक व्यक्ति गरीब है। फिर आजादी (Independence) के बाद ‘गरीबी हटाओ, देश बचाओ (Garibi Hatao, Desh Bachao)’ का नारा (Slogen) वर्ष 1974 के आम चुनाव (General Elections) में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी (Former Prime Minister Late. Indira Gandhi) ने दिया था।

बाद में उनके बेटे राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने भी इस नारे का उपयोग किया। इस नारे का प्रयोग पांचवीं पंचवर्षीय योजना (Fifth Five Year Plan) में भी किया गया था। आज भी भूख से मौत के मामले सामने आते रहते हैं और सरकारें इन मामलों को गंभीरता से लेने के बजाय ख़ुद को बचाने के लिए लीपा-पोती (Lip-Service) में लग जाती हैं। यह बेहद शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण (Shameful And Unfortunate) है।

भूख से लोग मर रहे हैं और राशन के लिए घंटों लाइन लगाने पर भी मुट्ठी भर चावल सबको नहीं मिलता है। (पार्थ पॉल/इंडियन एक्सप्रेस फाइल फोटो)

भोजन मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। इस मुद्दे को सबसे पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूज़वेल्ट ने अपने एक व्याख्यान में उठाया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान संयुक्त राष्ट्र ने इस मुद्दे को अपने हाथ में ले लिया और वर्ष 1948 में आर्टिकल-25 के तहत भोजन के अधिकार के रूप में इसे मंज़ूर किया।

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सरकार के दावे पर उठाए सवाल

यह सुखद बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने अब जनहित के मुद्दे पर सरकार से सवाल पूछना शुरू कर दिया है। उसी के तहत सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत प्रवासी और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या के साथ ताजा रिपोर्ट दें। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि केंद्र सरकार कुछ नहीं कर रही है। केंद्र सरकार ने कोरोना काल में लोगों तक अनाज पहुंचाया है। हमें यह भी देखना होगा कि यह व्यवस्था जारी रहे। प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार दावा कर रही है कि पिछले कुछ वर्षों में लोगों की प्रतिव्यक्ति आय बढ़ी है, जबकि भारत वैश्विक भुखमरी सूचकांक में तेजी से नीचे आया है।

बता दें कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स की 2022 की रिपोर्ट में भारत की स्थिति को बेहद खराब बताया गया है। 121 देशों की रैंकिंग में भारत 107वें नंबर पर है। भारत से बेहतर स्थिति में तो हमारे पड़ोसी देश- पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका हैं। ग्लोबल हंगर एसोसिएशन का उद्देश्य विश्व के क्षेत्रीय और देश के स्तर पर भूख को ट्रैक करना है। इसके स्कोर चार घटकों की संभावनाओं के मूल्यों पर आधारित होते हैं। अब देखने की बात यह होगी इस जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार को आखिरकार क्या आदेश दिया जाता है ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं )