Assembly Elections And Voters Verdict: बीजेपी (BJP) ने अपना किला (Fort) गुजरात (Gujarat) में भारी बहुमत (Huge Majority) से जीतकर एक रिकॉर्ड बनाया, उसके लिए बधाई। कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में सरकार के पंचवर्षीय बदलाव की परंपरा को बरकरार रखा, उसके लिए कांग्रेस को बधाई और दिल्ली (Delhi) में एमसीडी चुनाव (MCD Election) में भाजपा के पंद्रह वर्ष के पुराने किले (Old Fortress) को ध्वस्त करते हुए अपनी जीत दर्ज की, उसके लिए ‘आप (AAP)’ को बधाई। एक नवगठित (Newly Formed), यानी महज दस वर्ष पुरानी पार्टी ‘आप’ ने विश्व के सबसे बड़ी पार्टी को उसके नाक तले चुनाव जीतकर जो रिकार्ड बनाया (Created Record), वह तो एक इतिहास (History) बन गया।

अब आगे इन तीनों राज्यों गुजरात (Gujarat), हिमाचाल प्रदेश (Himachal Pradesh) और दिल्ली (Delhi) में भाजपा (BJP), कांग्रेस (Congress) और ‘आप (AAP)’ किस प्रकार कार्य करेगी, यह तो समय बताएगा, लेकिन इस चुनाव ने यह स्पष्ट रूप से बता दिया है कि अब मतदाताओं (Voters) को कोई राजनीतिक दल (Political Party) या व्यक्ति विशेष (Particular Person) गुमराह (Mislead) नहीं कर सकता। चाहे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) हो या बिहार (Bihar) का कोई उपचुनाव (By-Election) रहा हो, वह अपनी पसंद के उम्मीदवार (Favourable Candidate) और पार्टी (Party) को ही चुनकर विधानसभा (Vidhan Sabha) या लोकसभा (Lok Sabha) में भेजने के लिए कटिबद्ध हो गई है। 

PM मोदी और अमित शाह ने Gujarat Election को बना लिया था अपनी प्रतिष्ठा का सवाल

गुजरात (Gujarat) में प्रधानमंत्री (Prime Minister) ने जिस तरह अपनी  चुनावी रैलियों (Election Rallies) से यह बताने के प्रयास किया और गृहमंत्री (Home Minister) ने जो अपना खेमा वहीं डाल दिया, उससे तो यह स्पष्ट हो गया कि प्रधानमंत्री (Prime Minister) और गृहमंत्री (Home Minister) ने गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Assembly Election) को अपनी प्रतिष्ठा (Prestige) का प्रश्न बना लिया था। और हां, यदि इस तरह का आक्रामक प्रयास (Aggrasive Effort) गुजरात (Gujarat) में नहीं किया गया होता, तो हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की तरह गुजरात (Gujarat) भी भाजपा (Bjp) के हाथ से निकल गया होता।

देश के शीर्ष तंत्र द्वारा राज्य के मतदाताओं को प्रतिबद्धता नहीं दिखाई गई होती, तो इस राज्य का भी वही हाल होता, जो हिमाचल का हुआ है, क्योंकि 27 वर्षों तक किसी भी दल द्वारा एक राज्य पर सत्तारूढ़ रहना आसान काम नहीं है। ऐसी स्थिति में सरकार विरोधी लहर हर जगह चलने लगती है। इस बार भी जो खबरें छन-छनकर आ रही थीं, उनमें भी उसमें भी सरकार विरोधी लहर की जानकारी थी कि गुजरात में भी भाजपा के लिए सत्ता बरकरार रखना मुश्किल है। लेकिन, भाजपा के सूचनातंत्र ने इसकी जानकारी अपने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को देकर इस स्थिति से अपने को निकल लिया और इसी का परिणाम है कि भाजपा रिकार्ड मतों से राज्य में जीतकर सरकार बनाने जा रही हैं।

Gujarat Election 2022, BJP Win In Gujarat.
गुरुवार, 8 दिसंबर, 2022 को गुजरात विधानसभा में जीत के बाद नई दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा। (पीटीआई फोटो)

गुजरात चुनाव में यह बात भी सामने आई कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री, दोनों का गृहराज्य होने के कारण मतदाताओं का एक रुझान था, उनका विश्वास था कि उनके मतदान न करने से देश के शीर्षतंत्र के स्थानीयता का अपमान होगा। इसलिए मतदाताओं ने इसके महत्व को समझा और स्थानीयता को वरीयता देते हुए भाजपा को लाभ प्रदान किया।

रही बात हिमाचल प्रदेश की, तो वहां का तो इतिहास ही रहा है कि हर पांच वर्ष में सरकार बदलती हैं, क्योंकि वहां का मतदाता इतना जागरूक है कि वह सरकार के कामकाज का दिन-प्रतिदिन आकलन करती है और इस बात का इंतजार करती है कि यदि उसका कार्य संतोषजनक नहीं रहा, तो उसे बदल दिया जाएगा। ऐसा सामान्य स्थिति में होता है, लेकिन इस बार कुछ अप्रत्याशित हुआ है। भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का हिमाचल प्रदेश गृहराज्य है, लेकिन वहां भाजपा चुनाव नहीं जीत सकी।

प्रधानमंत्री ने कहा है कि वहां बहुत कम अंतर से सरकार नहीं बन सकी, लेकिन इतनी बात तो है कि सरकार नहीं बनी। शर्मसार करने वाली बात यह है  कि विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष इसी राज्य के रहने वाले हैं, लेकिन वह अपने राज्य में प्रभावहीन माने जाते हैं। संभवतः इस बात की जानकारी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को नहीं थी, लेकिन अब पछताए होत क्या…।

जहां तक केंद्रीय मंत्रिमंडल के युवा मंत्री अनुराग ठाकुर की बात हैं, तो उनके मामले में यह बात स्पष्ट हो गई है उनके पिता प्रेम कुमार धूमल प्रदेश के प्रभावशाली व्यक्ति हैं, लेकिन कहा जाता है कि प्रदेश की आंतरिक गुटबाजी और जेपी नड्डा के अहंकार के कारण ही उन्होंने चुनाव लडने से मना कर दिया था, और इस बात का मलाल केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को था, जिस कारण वे खुलकर राज्य में प्रचार नहीं कर सके। राज्य में पराजय का जो कारण अब तक बताया जा रहा है, उसका कुल एक कारण यह भी बताया जा रहा हैं। 

अब दिल्ली नगर निगम, यानी एमसीडी चुनाव में भाजपा की हार के कारण के बारे में यही कहा जा रहा हैं कि 15 वर्ष में भ्रष्टाचार का जो माहौल वहां  बन गया था, उसी ने ही भाजपा के अहंकार को चूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। ‘आप’ का यही तो आरोप था कि एमसीडी में बिना रिश्वत के कोई कार्य नहीं होता। दिल्ली और पंजाब में जिस प्रकार ईमानदारी और जनहित में पार्टी द्वारा काम करने की बात की जाती है, उसका प्रभाव आम लोगों पर पड़ता ही है। उसी का परिणाम हुआ है कि केवल दस वर्ष पुरानी पार्टी ने देश के दो राज्यों में अपनी  सरकार बना ली और साथ ही उसने अपनी पहचान राष्ट्रीय पार्टी के रूप में प्राप्त करने का गौरव हासिल कर लिया।  

जो भी चुनाव में हुआ, उसे फिर से वापस तो नहीं किया जा सकता है, लेकिन इतनी बात तो है कि भाजपा के लिए यह जश्न मनाने का समय नहीं है। ऐसा इसलिए, क्योंकि वहां तो उसकी पहले से ही सरकार थी और देश के दो शीर्ष नेतृत्व भी उसी प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए भी उस राज्य के मतदाताओं का भावनात्मक लगाव तो अपने नेताओं के प्रति तो है ही। इसलिए यह केवल गुजरात के मतदाताओं को धन्यवाद देने का समय है जिसने पूरे मन से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के नाम और चेहरे पर अपना मतदान किया। सच तो यह है कि भाजपा हिमाचल नहीं जीत सकी और न एमसीडी चुनाव जीत सकी।

हिमाचल प्रदेश में एक पूर्व विधायक बागी नेता ने तो पीएम तक की नहीं सुनी

हिमाचल तो छोटा प्रदेश है, लेकिन यह चुनाव क्या होता है, वह इस चुनाव में ही देखने को मिला, जब प्रधानमंत्री को प्रदेश के एक बागी एक पूर्व विधायक तक को फोन करके बैठ जाने के लिए कहा गया, लेकिन उनकी सुनी नहीं गई। ऐसी स्थिति में केंद्रीय सत्तारूढ़ शीर्ष नेतृत्व को यह सोचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा कि जिसका प्रभाव जनमानस पर, अपने गृहराज्य में भी नहीं है, जो अपने नेताओं के नेतृत्व के प्रति समर्पित नहीं हो सकता, उस पर देश अथवा राज्य की जिम्मेदारी कैसे सौंपी जा सकती है?

Bharat Jodo Yatra.
कोटा में गुरुवार 8 दिसंबर, 2022 को भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, पार्टी नेता केसी वेणुगोपाल, सचिन पायलट और रणदीप सुरजेवाला संग कांग्रेस नेता राहुल गांधी। (पीटीआई फोटो)

इन चुनावों का प्रभाव तो निश्चित रूप से वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर तो पड़ेगा ही। प्रधानमंत्री तो अपनी धुन में उस चुनाव को ही ध्यान में रखकर सारी तैयारी कर रहे हैं, लेकिन विपक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस इस पर कब ध्यान देती है, यह तो समय ही बताएगा, क्योंकि कांग्रेस तो अभी पूरी तरह ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के लिए समर्पित है। इसलिए इन दोनों प्रदेश के विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस ने कोई ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब अगले वर्ष भी कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं।

यदि इसी तरह कांग्रेस विधानसभा चुनाव को नजरअंदाज करती रही, तो हो सकता है इसका गंभीर परिणाम उसे उठाना पड़े। अभी तो मात्र तीन पार्टियों ने ही अपना दमखम दिखाया है, लेकिन जब पूरे भारतवर्ष में चुनाव लडे जाएंगे तो उस समय क्या स्थिति बनेगी, इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।