Morbi Accident And Gujarat Model: मोरबी पुल के गिरने के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए जिन नौ लोगों पर 135 लोगों की जान लेने का आरोप है, उन्हें मंगलवार 2 नवंबर को अदालत में पेश किया गया। अभियोजन पक्ष ने उस कंपनी को दोषी नहीं ठहराया जिसे मरम्मत का ठेका दिया गया था। हां, उसके चार आरोपित कर्मचारियों को पुलिस हिरासत में अवश्य भेज दिया गया, जबकि पांच अन्य को न्यायिक हिरासत में भेजा गया।
ज्ञात हो कि मोरबी शहर में मच्छु नदी पर केबल पुल टूटने के मामले में सोमवार को नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तार आरोपियों में ओरेवा (दीवार घड़ी बनाने वाली कंपनी) के दो मैनेजर, दो टिकट क्लर्क, तीन सिक्योरिटी गार्ड और दो रिपेयरिंग कांट्रेक्टर शामिल हैं। इन आरोपियों को पकड़ने के लिए गुजरात एटीएस, राज्य खुफिया विभाग और मोरबी पुलिस ने जगह-जगह छापेमारी की थी। उसके बाद इन्हें दबोचा गया था। ये सभी नौ आरोपी ओरेवा कंपनी के कर्मचारी हैं।
इतना कुछ होने के बाद भी समझ में नहीं आ रहा हैं कि इस दुर्भाग्यपूर्ण हादसे को हल्के में क्यों लिया जा रहा है, वर्ना ऐसा क्यों कहा जाता कि पुल पर युवाओं ने उधम मचाया, जिसके कारण यह हादसा हो गया। यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या पुल को गोंद से चिपकाया गया था या फेविकोल से, जो युवाओं और बच्चों की उछलकूद से ही टूट गया। अभी तो 26 अक्टूबर को गुजरात के नए दिन के उपलक्ष्य में कई महीनों के बाद करोड़ों रुपये खर्च करके इसका समुचित रखरखाव की ओरेवा कंपनी द्वारा जिम्मेदारी स्वीकार करने के बाद आमलोगों के लिए खोला गया था।
यह तो निश्चित रूप से भ्रष्टाचार का मामला बनता है, लेकिन उच्च स्तर के जो लोग इस कृत्य में संलिप्त रहे हैं, क्या उन पर कानूनी शिकंजा कसा जाएगा? अभी तक प्रथम दृष्ट्या तो यही लगता है कि ऐसा नहीं होगा, क्योंकि ओरेवा कंपनी के जिन छोटे कर्मचारियों की गिरफ्तारी हुई है, वे तो मात्र कठपुतली हैं, प्यादे हैं, निरीह हैं। उनका कसूर मात्र इतना है कि वे ओरेवा कंपनी से जुड़े हुए हैं।

मोरबी शहर में मच्छु नदी पर केबल पुल हादसे के बाद 31 अक्टूबर 2022 को बचाव कार्य में जुटे राहतकर्मी। (फोटो- एपी)
कहा तो यह भी जा रहा है कि ओरेवा कंपनी, जिसका मूल व्यवसाय घड़ी का कारोबार है, उसे इस पुल के रखरखाव के साथ इसकी मरम्मत और देखरेख की जिम्मेदारी इसलिए सौंपी गई, क्योंकि उनके मालिक की सीधी पहुंच ‘ऊपर’ तक थी और इसीलिए उन्हें बिना किसी टेंडर के इस पुल को ठीक करने का ठेका दे दिया गया। अब सच तो तभी सामने आएगा जब जांचकर्ताओं की सही रिपोर्ट सार्वजनिक हो, लेकिन क्या ऐसा हो सकेगा!
राज्य में 27 साल के भाजपा के शासन पर भी उठ रहे सवाल
आक्रोशित पीड़ितों का तो प्रधानमंत्री पर ही सीधा आरोप है कि 145 वर्ष पुराने इस पुल के पंद्रह वर्ष का कार्यकाल तो प्रधानमंत्री जब प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब भी रहा है और मार्केटिंग के द्वारा जिस गुजरात मॉडल की बात देशभर में बताई जा रही है, क्या वह सब ढकोसला था? इस दुर्घटना ने यह प्रमाणित कर दिया है कि 27 वर्ष तक राज्य में भाजपा का शासन रहने पर भी इस ओर सरकार ने कोई ध्यान क्यों नहीं दिया। दुर्घटना वाले दिन संयोग था कि प्रधानमंत्री भी अपने गृह राज्य में ही थे, लेकिन अपने व्यस्त कार्यक्रमों के कारण उस दिन घटनास्थल पर नहीं जा सके।
प्रधानमंत्री मोरबी दुर्घटना से आहत तो जरूर नजर आ रहे थे, लेकिन चुनावी माहौल को अपनी पार्टी के पक्ष में मोड़ने के मोह में पूर्व नियोजित उद्घाटन के अपने कार्यक्रमों को छोड़ नहीं पाए। विपक्ष तो यह भी आरोप लगा रहा है कि प्रधानमंत्री ने मोरबी अस्पताल और सरकार को इतना अवसर जानबूझकर दिया कि उनके अस्पताल का दौरा इवेंट जैसा दिखे। और यही हुआ भी।

एक नवंबर 2022 को घटनास्थल पर निरीक्षण करने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मां-बाप को खो चुके बच्चों से भी मिले। (फोटो-पीटीआई)
रात भर में अस्पताल का कायाकल्प कर दिया गया, उसका रंग बदलकर उसे चमका दिया गया, मरीजों के दुर्गंधयुक्त फटे विस्तर बदल दिए गए, पीने के पानी का समुचित इंतजाम कर दिए गए, नए कूलरों की व्यवस्था कर दी गई।
अस्पताल किसी शानदार पर्यटक स्थल के रूप में परिवर्तित हो गया। आनन-फानन में मृतकों और घायलों को सरकारी आर्थिक मदद की घोषणा कर दी गई। फिर क्या था, प्रधानमंत्री पीड़ितों से मिलकर हालचाल पूछा और वापस अपने चुनाव प्रचार में गुजरात मॉडल की प्रदर्शनी करने भावुकता की चादर ओढ़कर निकल लिए।
आज सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री का पश्चिम बंगाल में पुल गिरने पर उनके भाषण को बार-बार दिखाया और सुनाया जा रहा है कि किस प्रकार प्रधानमंत्री छाती कुट-कुट कर वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरकार को कोस रहे थे। अब गुजरात के मोरबी के इस पुल हादसे ने प्रमाणित कर दिया है कि सरकार के वे सारे दावे झूठे थे जिनमें गुजरात मॉडल की बड़ी-बड़ी डींगे हांकी गई थी।
हां, इस सरकार की यह विशेषता रही है कि मीडिया को बहुत अद्भुत तरीके से काबू में कर लिया गया और विशेषकर इलेक्ट्रानिक मीडिया को, जिसका एकमात्र काम सरकार का यशोगान करना ही हो गया है। अब देखना यह है कि प्रधानमंत्री के उस ऐलान का जिसमें उन्होंने आदेश दिया है कि जांच को कोई प्रभावित नहीं करेगा और इसकी हर कोने से जांच की जाएगी, का कितना और कैसे पालन किया जाता है।

हादसे में मृत अनीसा और दो बच्चे आलिया और आफरीद। भोपाल में मृत लोगों को श्रद्धांजलि देते लोग। मृत यश देवदाना (12) और चचेरा भाई राज बागवानजी (13)। फोटो – (एपी/पीटीआई)
प्रधानमंत्री के इस निर्देश का पालन करते हुए यह देखना है कि इस जांच की रिपोर्ट कब आती है और उसमें जो दोषी पाए जाएंगे, उन्हें क्या सजा दी जाती है। दोषियों को सजा मिले या लीपापोती करके मामले को समाप्त कर दिया जाए; क्योंकि विधान सभा चुनाव की घोषणा कर दी गई है इसलिए फिर क्या सत्यता सामने आएगी? लेकिन, उसकी क्षति की पूर्ति तो कभी हो ही नहीं सकती, जिन परिवारों का सर्वस्व लुट गया और जिस परिवार में अब कोई पानी देने वाला नहीं बचा।
ऐसे अपराधियों को क्या सजा दी जाए, यह तो माननीय न्यायालय पर ही निर्भर करता है, लेकिन जो नुकसान दर्जनों परिवारों का हो चुका है, उसकी भरपाई किसी भी मूल्य पर नहीं हो सकती है, ढाढस बांधने के लिए के लिए केवल कड़ी कार्रवाई ही एक रास्ता है ताकि भविष्य में इस तरह की लापरवाही या भ्रष्टाचार में कोई लिप्त न होने पाए और इतनी हत्याओं को करने की कोई सोच भी न सके।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)
