न जातु ब्राह्मणं हन्यात् सर्वपापेष्वपि स्थितम्।
सभी प्रकार के पापों में लिप्त होने पर भी ब्राह्मण को कभी न मारें।
(मनुस्मृति, अध्याय 8, श्लोक 380)

मनुस्मृति का ये श्लोक हाल ही में बिलकिस बानो मामले में बलात्कार और हत्या के दोषियों को ‘माफी’ की समीक्षा के लिए नियुक्त पैनल के एक सदस्य के कथन से हुबहू मेल खाता है। पैनल के सदस्य भाजपा विधायक सीके राउलजी हैं, जिनसे बलात्कार और हत्या के दोषी कैदियों की रिहाई के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बलात्कार और हत्या की सज़ा काट रहे लोग ब्राह्मण हैं जिनके ‘अच्छे संस्कार ‘ हैं और हो सकता है कि उनको इस मामले में फंसाया गया हो।

भाजपा के विधायक का हत्यारों और बलात्कारियों को संस्कारी कहना न सिर्फ विरोधाभासी है बल्कि ये भी गौर करने वाली बात है कि उन्हें ये भी नहीं पता कि उनके पैनल के सामने समीक्षा के लिए दोषियों का अपराध नहीं लाया गया था।

रिहा किए जाने वाले लोग वही हैं जिन्हें सीबीआई ने लम्बी जांच के बाद बलात्कार और हत्या का ‘दोषी’ पाया था और भाजपा द्वारा गठित पैनल का काम यह तय करना था कि इन ‘दोषियों ‘ को रिहा किया जाना है या नहीं। उनका बेहूदा बयान कि ‘ये लोग फंसाए हुए भी हो सकते हैं’ न सिर्फ उन लोगों का हौसला बढ़ाता है जो बलात्कार के सच को झुकलाते हुए इसको एक गंभीर अपराध नहीं मानते हैं बल्कि इस्लामोफोबिया को खुले मंच से बढ़ावा देता है।

बलात्कारियों और हत्यारों की रिहाई के बाद पूरे घटनाक्रम को करीब से देखने के बाद मन आक्रोश और शर्म से भर जाता है।  अपराध जघन्य और भयावह थे। 2002 के मुस्लिम विरोधी दंगे में इन्होंने न सिर्फ़ अपने पड़ोस में रहने वाली गर्भवती बिल्किस का सामूहिक बलात्कार किया बल्कि उसकी तीन वर्ष की बच्ची समेत लगभग पूरे परिवार की हत्या कर दी।

समीक्षा के लिए एक पैनल बनाया गया जिसमें कई सदस्य भाजपा से जुड़े हैं और भाजपा वही राजनैतिक पार्टी है जो 2002 की हिंसा के समय सत्ता में तो थी ही लेकिन साथ ही जिससे जुड़े बहुत से लोग अभी भी सांप्रदायिक हिंसा भृड़काने और उससे जुड़े अन्य अपराधों में आरोपित हैं।

जहाँ एक तरफ भाजपा विधायक सीके राउलजी द्वारा दिया गया शर्मनाक बयान है वहीं दूसरी तरफ़ बिल्किस बानो की दोहरी लड़ाई लड़ी है; एक जो उन्होंने सत्ता के खिलाफ न्याय पाने के लिए लड़ी और दूसरी जो उन्होंने इस रेप पीड़िता को ही दोषी और गुनहगार बताने वाले समाज में अपनी गरिमा और सम्मान के लिए लड़ी है। और ये पूरी लड़ाई बिल्किस बनो ने अपने पूरे परिवार को खो देने के दौरान लड़ी। बिल्किस बनो की कहानी न सिर्फ मुस्लिमों और महिलाओं के लिए, बल्कि उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा और आशा की कहानी है जो आज इन फासीवादी हमलों का सामना कर रहे हैं।

जिस तरह से विश्वहिंदू परिषद ने बिलकिस के बलात्कारियों के रिहा होने पर उन्हें माला पहना कर जश्न मनाया है, वह इस समाज, इस देश के मुंह पर तमाचा है। यह घटना सत्ता समर्थक लोगों को बेगुनाह साबित करने के लिए इस देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों के साथ किया गया खिलवाड़ है। यह बलात्कार पीड़िता के संघर्ष को प्रधानमंत्री के नारीशक्ति के भ्रामक नारों में दबा देने की चाल है क्योंकि इस नारीशक्ति में न तो महिलाओं की अस्मिता के लिए कोई जगह है और न ही उन्हें सशक्त बनाने की कोई मंशा है।

यह बलात्कार पीड़िताओं के संघर्ष की कहानी को, साम्प्रदायिक हिंसा के दोषियों को निर्दोष बताने वाले झूठ से बदल देने की कोशिश है। यह एक नरसंहार में अपना सब कुछ खो चुके लोगों के दर्द और अनुभवों को झुठलाने की कोशिश है। और झूठ का ये सारा पुलिंदा मनुवादियों के हाथों तैयार किया जा रहा है और इसी वजह से मनु के शब्द लगातार हमें लोगों की जबान से निकलते मिल जाए रहे हैं।

संघ की विचारधारा को संविधान बनाने की यह चाल लंंबे समय से चल रही है और इसका एक पहलू सावरकर को एक राष्ट्रीय नायक और आरएसएस के विचारकों को भारतीय दर्शन की परम्परा में महान बताना भी है। आरएसएस के इन विचारों को अमली जामा पहनाने की प्रक्रिया में, इसके कार्यकर्ताओं द्वारा की गई व्यापक हिंसा और साम्प्रदायिकता भी शामिल होती है। और बाद में इसी हिंसा से पैदा हुए तनाव को, न्याय प्रक्रिया और सज़ा से ‘सच्चे हिन्दू’ को बचाने का आधार बनाया जाता है।

लव जिहाद जैसी कहानियों को लोकस्थापित करने के लिए संघ के ही विश्वहिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ता परिवारों को भड़का कर मुस्लिम नवयुवकों के खिलाफ झूठी एफआईआर करवाते हैं और फिर इस तरह के प्रपंच का इस्तेमाल गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध अध्यादेश, 2020 को पारित करने में किया जाता है।
 
बिलकिस बानो की कहानी को संघ इसी विचारधारा के साथ दोबारा लिखना चाहता है जिसमें ‘संस्कारी ब्राह्मण’ अपने हिन्दू राष्ट्र अभियान के दौरान मुस्लिम महिला का ‘केवल’ बलात्कार करते हैं और उसके परिजनों को उसी के आँखों के सामने मौत के घाट उतारते हैं। फिर उन ‘संस्कारी ब्राह्मणों’ को संघ के द्वारा दोषमुक्त कहकर न सिर्फ कैद से बाहर किया जाता है बल्कि उनके इस ‘नेक काम’ के लिए इनाम भी दिया जाता है।

हम बिलकिस बानो के समर्थन में खड़े हैं लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि हम सुधार और माफ़ी के खिलाफ हैं। ठीक वैसे ही जैसे हम निर्भया मामले में अपराधियों को फांसी देने की मांग के पक्ष में नहीं थे। हालांकि माफी का आधार सिर्फ ये नहीं होना चाहिए कि अपराधी ‘ब्राह्मण’ जाति के थे, सिर्फ देश के कानून के मुताबिक ही किसी अपराधी को माफी दी जानी चाहिए, लेकिन जिसका पालन इस मामले में नहीं किया गया।

हमें संस्कारी बलात्कारी ब्राह्मणों की जो कहानी सुनाई जा रही है वो झूठी है। ये कहानी हम आम लोगों को सुनाने की कोशिश पहले भी की जा चुकी है। उन्नाव, कठुआ और हाथरस के दोषियों के समर्थन में निकली रैलियों से चीख चीख कर यही झूठी कहानी दोहराई जा रही थी।
 
बजरंग मुनि जब मुस्लिम महिलाओं को सार्वजनिक तौर पर न सिर्फ बलात्कार की धमकी देते हैं बल्कि अपने समर्थकों को भी इस अपराध के लिए पुलिस की मौजूदगी में उकसाते हैं तो उनके भी समर्थन में ‘संस्कारी ब्राह्मण हिन्दू’ वाली कहानी सुनाई गई थी। ऐसे विचार और इन कहानियों को सड़कों से लेकर अदालतों तक और सभी सार्वजनिक मंचों से, हम जिम्मेदार नागरिकों को चुनौती देनी होगी।

बिलकिस हम सबके जवाब की हक़दार हैं और हम सब का सामूहिक जवाब होना होगा “नहीं” क्योंकि “नहीं, एक औरत के लिए दिए गए न्याय का अंत यह नहीं हो सकता है, हम ये होने नहीं दे सकते!”

(लेखिका ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (AISA) की दिल्ली राज्य सचिव हैं।)