बिहार में सियासी घटनाक्रम पल-पल नई उम्मीद और नाउम्मीदी के दौर से गुजर रहा है। राजद अध्यक्ष लालू यादव के ठिकानों पर सीबीआई के छापों और लालू समेत राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव को भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी बनाए जाने के बाद से विरोधियों के निशाने पर लालू परिवार के साथ-साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी आ गए हैं। भाजपा नेता लगातार नीतीश कुमार से मामले में स्पष्टीकरण चाहते हैं। साथ ही यह चाहते हैं कि मिस्टर क्लीन कहलाने वाले नीतीश कुमार मंत्रिमंडल से अविलंब उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को बर्खास्त करें। हालांकि, अभी ऐसी कोई मजबूरी नहीं है क्योंकि सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल नहीं किया है। अगर नीतीश तेजस्वी को नहीं हटाते हैं तो उन्हें राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

सुशासन बाबू की छवि होगी डम्प: नीतीश कुमार 12 वर्षों से बिहार के मुख्यमंत्री हैं। हर बार वो गठबंधन की सरकार के मुखिया रहे हैं। इस दौरान उन्होंने अपने काम-काज के अंदाज और तौर-तरीकों से सुशासन बाबू की छवि देश-दुनिया के राजनीतिक जगत में गढ़ी है। पिछली एनडीए गठबंधन की सरकारों में भी किसी मंत्री के दागी हो जाने की स्थिति में नीतीश कुमार ने उनका इस्तीफा ले लिया था। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और पूर्व मंत्री रमाधार सिंह इसके बड़े उदाहरण हैं। इस बार उनकी सरकार गठबंधन में बड़े घटक राजद के रहमो-करम पर चल रही है। अगर उन्होंने राजद विधायक दल के नेता और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से इस्तीफा नहीं लिया तो उनकी राजनीतिक छवि को नुकसान पहुंच सकता है। उनकी मिस्टर क्लीन की इमेज डम्प हो सकती है।

राजनीतिक अस्मिता पर खतरा: नीतीश राजनीति में हमेशा सिद्धांतों और स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते रहे हैं। वो मुख्यमंत्री के अलावा केंद्र में मंत्री भी रहे हैं। इस दौरान उन्होंने हमेशा अलग माइलस्टोन गढ़ने की कोशिश की है। व्यक्तिगत तौर पर और राजनीतिक तौर पर नीतीश काफी संजीदा हैं और किसी भी ऐसे मसले से अक्सर दूरी बनाते रहे हैं जो उनकी बेदाग छवि को नुकसान पहुंचाता हो मगर इस बार नीतीश के लिए मुश्किल बड़ी है। वो पार्टी से बाहर और पार्टी के अंदर भी अपनी अस्मिता बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। अगर उन्होंने तेजस्वी प्रकरण में कुछ भूल की तो एक तरफ सत्ता जा सकती है तो दूसरी तरफ अलग स्टैंड लेने वाले नीतीश सियासी हाशिए पर भी जा सकते हैं।

भ्रष्टाचार रोक और बेनामी संपत्ति सील करने की मुहिम को धक्का: अपने दो कार्यकाल में नीतीश ने न्याय के साथ सुशासन का नारा दिया था। राज्य में साफ-सुथरी गवर्नेंस देने के लिए उन्होंने भ्रष्टाचारियों पर न केवल नकेल कसी बल्कि उन्हें विजिलेंस से पकड़वाकर जेल भी भिजवाया। कई मामलों में तो भ्रष्ट अधिकारियों की बेनामी संपत्ति भी सील की। एक-दो मामलों में वहां स्कूल भी खुला। अगर मौजूदा प्रकरण में उन्होंने तेजस्वी का साथ दिया तो उनकी इस मुहिम को धक्का पहुंच सकता है।

प्रेशर में रहेगी जेडीयू और नीतीश: अगर नीतीश ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राजद से समझौता कर लिया तो उनकी स्थिति घुटना टेकने जैसी होगी। लिहाजा, नीतीश हमेशा से गठबंधन सरकार में मुखिया होते हुए भी दबाव में रहेंगे।

दागी नेता उठाएंगे आवाज: दागी नेताओं की नकेल कसकर रखने वाले नीतीश कुमार के लिए मौजूदा सियासी घटनाक्रम थोड़ा संवेदनशील है। अगर नीतीश ने राजद नेता के भ्रष्टाचार के मामले से समझौता किया तो हो सकता है कि उनकी पार्टी के अंदर भी कई ऐसे दागी नेता हैं जो उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।