Congress Party Led By Mallikarjun Kharge:हिंदी पट्टी का यह हाल है कि राहुल गांधी को अपनी सांसदी बचाने के लिए केरल जाना पड़ा और भारत जोड़ो पदयात्रा भी वहीं से शुरू की। भाजपा हिंदुत्व की जमीन पर धर्मनिरपेक्षता को जमींदोज कर रही तो केजरीवाल जैसा देश वैसा वेश के साथ ‘राम-राम जपना कांग्रेस का वोटर अपना’ गुनगुना रहे हैं। खड़गे का चुना जाना कांग्रेस की व्यक्तिवादी राजनीति से निकलने का आला प्रमाण तभी बन सकेगा जब उन्हें सांगठनिक ढांचा खड़ा करने की पूरी आजादी मिलेगी। कांग्रेस को नया आलाकमान मिलने के बाद क्या वह पुरानी वर्जनाओं से मुक्त हो पाएगी, यही सवाल पूछता बेबाक बोल

‘उधर भी अपने ही थे, सब के सब
इधर भी अपने थे, सारे के सारे
तुम जो जीते तो भला क्या जीते?
हम जो हारे तो भला क्या हारे?’

कांग्रेस परिवार की जीत पर सबको बधाई देते हुए शशि थरूर ने यह ट्वीट किया। भारतीय राजनीति में सबसे पुरानी पार्टी में हुए सांगठनिक चुनाव के क्या मायने हैं इसका सबसे पहला जवाब खुद शशि थरूर हैं। शशि थरूर वे नेता हैं जिन्होंने कांग्रेस के संगठनात्मक स्तर और उसकी कार्यशैली पर 22 अन्य नेताओं के साथ आलाकमान को खत लिख कर आवाज उठाई थी। लेकिन, थरूर उन नेताओं की तरह नहीं निकले जो कांग्रेस के ढांचे पर सवाल उठा कर पार्टी छोड़ कर चलते बने।

कांग्रेस पर गांधी परिवार के वर्चस्व के लंबे समय तक लगे आरोपों के बाद जब पार्टी ने आंतरिक सांगठनिक चुनाव का एलान किया तो शशि थरूर ने अध्यक्ष पद के लिए अपना पर्चा भरा और पूरे जोर-शोर से चुनाव की तैयारी की। ‘कल की सोचो, थरूर को सोचो’ का नारा लगा कर पूरी जीवंतता के साथ चुनाव प्रचार किया। खड़गे के चुनाव जीतने के बाद थरूर ने जो प्रतिक्रिया दी वही इस आयोजन का संदेश है। थरूर ने कहा-इस चुनाव से साबित हुआ कि कांग्रेस कार्यकर्ता ही पार्टी का असली गुरू है। इस चुनाव के जरिए उन्हें मौका मिला है पार्टी का भविष्य चुनने का। मैं चाहता हूं कि पार्टी उनकी आवाज सुने। मैं चाहता हूं कि पार्टी मजबूत बने।’

Victory of Mallikarjun Kharge as congress President.

19 अक्टूबर, 2022 को अपने आवास पर सहयोगी शशि थरूर के साथ हाथ उठाकर खुशी जताते खड़गे। (फोटो रॉयटर्स)

पार्टी पर सवाल उठाने, चुनाव लड़ने और हारने के बाद तक की थरूर की प्रतिक्रियाओं का सकारात्मक असर कांग्रेस पर कितना होगा यह तो देखने की बात है। लेकिन, जो लोग कह रहे थे कि अंतत: राहुल गांधी ही पार्टी के अध्यक्ष बनेंगे उन अनुमानों के विपरीत राहुल गांधी ने कहा कि पार्टी में मेरी आगे की भूमिका खड़गे तय करेंगे।

यह चुनाव वैसा ही हुआ, जैसे सभी जगह के आम चुनाव होते हैं। ऐसा कौन सा चुनाव नहीं होता जिसमें जीतने वाले पर गड़बड़ी करने के आरोप नहीं लगते। फिलहाल यही है कि कांग्रेस में गुप्त मतदान के जरिए पूरे लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव हुआ और तकनीकी रूप से गांधी परिवार के पास इसकी अध्यक्षता नहीं है।

यह दूसरी बात है कि राजनीतिक शक्ति के संदर्भ में अभी कांग्रेस के बुरे दिन चल रहे हैं। उसका कोई सकारात्मक कदम भी पार्टी को बेहतर स्थिति नहीं दिला पाता है। पार्टी ने ऐसा ही प्रयोग पंजाब में भी किया था। वहां दलित मुख्यमंत्री के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी को लाया गया। आदर्श रूप से इस फैसले के लिए राहुल गांधी की तारीफ हुई। लेकिन, कांग्रेस पंजाब की जमीन पर तो नाकाम रही ही वहीं इस फैसले के एवज में वह हाशिए के तबके के बीच अपनी विश्वसनीयता स्थापित नहीं कर पाई। फिलहाल चन्नी पूरे राजनीतिक परिदृश्य से ही बाहर हैं। यह कोई जरूरी नहीं कि आपके पास मुख्यमंत्री का पद हो तभी तक आपकी राजनीतिक दृश्यता बनी रहे।

Congress New President Mallikarjun Kharge.

19 अक्टूबर, 2022 को जीत के बाद नई दिल्ली स्थित अपने आवास पर समर्थकों का अभिवादन करते हुए कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे। (फोटो रॉयटर्स)

जब पार्टी ने एक दलित चेहरे को मुख्यमंत्री बनाया था तो पद पर न रहने के बाद भी उन्हें इस दिशा में सक्रिय दिखना चाहिए था। यही बात खड़गे के साथ भी है। बाबू जगजीवन राम के बाद खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में दूसरा दलित चेहरा हैं। लेकिन खड़गे को चन्नी की तरह सिर्फ दिखना ही नहीं जमीन पर करना भी होगा। उन्हें साबित करना होगा कि वे प्रतीकात्मक चेहरा नहीं हैं। उन्हें जमीनी स्तर पर कमजोर तबकों को अपने साथ जोड़ना होगा। मतदाताओं को अहसास करवाना होगा कि हम आपके लिए खड़े हैं।

जिस कांग्रेस पार्टी पर देश का बड़ा मतदाता वर्ग भरोसा करता था, वह अब नहीं करता है। यहां सबसे बड़ी प्राथमिकता उस टूटे और बिखरे भरोसे को वापस लाने की है। ऐसा न हो कि गांधी परिवार पर विरोधी आरोप लगा रहे थे तो छवि प्रबंधन के तहत चुनावी कवायद कर अध्यक्ष बदल दिया गया। कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री पर भी कठपुतली होने का आरोप चस्पा कर दिया गया था तो जाहिर सी बात है कि अब ‘कठपुतली’ की पर्ची लेकर आलोचक खड़गे की पीठ के पीछे घूमते रहेंगे। अध्यक्ष के रूप में खड़गे अपने चेहरे को आजाद कैसे रखेंगे इसकी राह तो उन्हें ही खोजनी होगी। फिलहाल तो ऊपरी तौर पर तस्वीरें ठीक दिख रही हैं।

अभी तक तो यही होता आ रहा था कि गांधी परिवार की आलोचना करने वाला कांग्रेस पार्टी में अलग-थलग कर दिया जाता था। अगर कोई अशोक गहलोत या सचिन पायलट बगावत पर भी उतर जाते थे तो उन्हें भी समझा दिया जाता था। हाल के दिनों में नया यह रहा कि राजस्थान में अशोक गहलोत के मामले से कांग्रेस सकारात्मक संदेश ही देती दिखी।

कांग्रेस को जो चीज सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रही वह है पार्टी के अंदर की अनुशासनहीनता और नेताओं की अवसरवादिता। एक राज्य का प्रधान बदला जाता है तो पुराना प्रधान दूसरे दल में चला जाता है। कांग्रेस को छोड़ा तो ममता बनर्जी और शरद पवार जैसे कद्दावर नेताओं ने भी। लेकिन उनका छोड़ना पूरी वैचारिक जमीन पर था। फिलहाल किसी की शक्ति में पांच सौ ग्राम तक का भी नुकसान हुआ तो वह पार्टी की एक कुंतल आलोचना कर अलविदा कह जाता है। दलगत अनुशासन के मामले में भारतीय जनता पार्टी अभी सभी राजनीतिक दलों के लिए आदर्श हो सकती है। कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी को चुनौती देनी है तो उसे सबसे पहले भाजपा से सांगठनिक ढांचे को दुरुस्त करने की सीख लेनी होगी।

नये अध्यक्ष खड़गे और कांग्रेस के सामने अस्तित्व वापस पाने की चुनौती है

खड़गे और कांग्रेस के सामने अस्तित्व वापस पाने की चुनौती है। हिंदी पट्टी से राजस्थान व छत्तीसगढ़ को छोड़ कर सफाया हो चुका है। कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा अभी सिर्फ दक्षिण भारत में बचा हुआ है। यही कारण है कि राहुल गांधी को अपनी सांसदी बचाने के लिए केरल से लोकसभा का चुनाव लड़ना पड़ा था।

Rahul Gandhi Bharat Jodo Yatra,

शुक्रवार, 21 अक्टूबर, 2022 को रायचूर जिले में पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान समर्थकों के साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी। (पीटीआई फोटो)

‘भारत जोड़ो पदयात्रा’ की शुरुआत केरल से हुई और वहीं पर राहुल गांधी ने यात्रा को सबसे ज्यादा वक्त दिया तो इसलिए कि दक्षिण की जमीन पर ही उनके साथ कार्यकर्ता अनुशासित रूप से लंबे समय तक टिक सकते थे। हिंदी पट्टी में कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा खड़ा करना खड़गे की कितनी बड़ी चुनौती होगी इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पदयात्रा के अभी तक के प्रस्तावित कार्यक्रम में राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में पांच दिन का समय बिताएंगे। स्वाधीनता आंदोलन की विरासत और धर्मनिरपेक्षता की जमीन पर कांग्रेस लंबे समय तक देश की सत्ता में कायम रही। नवउदारवादी राजनीति की शुरुआत के साथ ही स्वाधीनता आंदोलन का योद्धा रूप और जनकल्याणकारी नीति दोनों को छोड़ना पड़ा।

नवउदारवादी नीति में जनकल्याणकारी संरचना के टूटते ही कांग्रेस बुरी तरह बदनाम हो गई। हालांकि, भाजपा भी अभी इसी मुद्दे पर घिर जाती है। लेकिन, भाजपा ने नवउदारवादी नीति के विकल्प में हिंदुत्व की जमीन तैयार कर धर्मनिरपेक्षता को उसमें जमींदोज कर दिया। वहीं आम आदमी पार्टी जैसा देश वैसा वेश अपनाते हुए ‘राम-राम जपना कांग्रेस का वोटर अपना’ गाते हुए गुजरात में प्रवेश कर चुकी है। गुजरात जैसे राज्य में जहां पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था फिलहाल उसके लिए गुंजाइश भी कम दिख रही है क्योंकि वहां खड़े होने के लिए उसके पास कोई जमीन ही नहीं है।

जनता को अपने साथ लाने की जमीन क्या होगी आज के दौर में खड़गे और कांग्रेस के लिए सबसे मुश्किल सवाल है। परिवार केंद्रित और कठपुतली राजनीति की छवि को तोड़ने की कोशिश तो दिख गई। लेकिन, सबसे बड़ी चुनौती अभी बाकी है कि वह आधार क्या होगा जिस पर कांग्रेस संगठन के जरिए फिर से सत्ता में लौट सके। 2024 के संदर्भ में देखें तो खड़गे और राहुल दोनों के पास समय कम है।