आए हैं ‘मीर’ काफिर हो कर खुदा के घर में पेशानी पर है कश्का जुन्नार है कमर में –मीर तकी मीर
बिहार से निकली जाति गणना की गर्जना ने चुनावी फिजा बदल दी है। इसके नतीजे चौंकाने वाले तो हैं ही, साथ ही राजनीतिक दलों के बदले सुर चौकन्ना कर रहे हैं। जहां विपक्ष अब ओबीसी के अलावा कोई और अक्षर बोलने को तैयार नहीं है, वहीं सत्ता पक्ष वर्गीय राजनीति की भाषा बोल रहा है। इसे मंडल बनाम कमंडल की वापसी का खिताब इसलिए नहीं दिया जा सकता कि कमंडल की राजनीति करने वाले फिलहाल अमीर-गरीब की खाई की दुहाई दे रहे हैं। अभी 2024 का चुनावी अक्ष जिस तरह से जाति गणना के ध्रुव पर टिक गया है उसे देख कर लगता है कि दावेदारी इस बात की न हो जाए कि बेहतर गिनती कौन कराएगा। गणना के बाद बदले गणित पर प्रस्‍तुत है बेबाक बोल।

‘कबीरदास की उलटी वाणी बरसे कंबल भींजे पानी’

आप में से कितने दलित हैं? आप में से कितने आदिवासी हैं? आप में से कितने ओबीसी हैं? एक पत्रकार सम्मेलन में राहुल गांधी पत्रकारों से यह सवाल करते हैं। परिसर में थोड़ी देर के लिए सन्नाटा छा जाता है। पत्रकारों के लिए यह असहज करने वाली स्थिति थी। अभी तो पत्रकार राहुल जी की चिरप्रतिद्वंद्वी से अमेठी में त्रस्त थे।

पत्रकारों के सवाल पर गुस्सा कर पूछ बैठती हैं-कौन हो, कहां से हो, तुम्हारा मालिक कौन है, इस तरह के सवाल पूछ कर मेरे संसदीय क्षेत्र को बदनाम क्यों कर रहे हो? अब यह नया सवाल कि किस जाति के हो? बिहार से विपक्ष के लिए आई बहार के बाद राहुल गांधी ने पत्रकारों से यह सवाल पूछा तो किं आश्चर्यं? इस सवाल के बाद सवाल पूछने वाले पत्रकारों के बीच सन्नाटा छा गया तो किं आश्चर्यं?

यह कांग्रेस और राहुल गांधी की नई चेतना है। जाहिर सी बात है कि इस नई चेतना के सामने आप बीसवीं सदी के अंत वाली चेतना के साथ प्रतिक्रिया नहीं दे सकते। अब यह बीसवीं सदी के अंत का वह दौर नहीं जब अपने नाम से कुलनाम हटाना प्रगतिशीलता की निशानी माना जाता था। जाति पूछने पर, जातिसूचक शब्द बोलने पर जातिगत नाम देकर बुलाने को अपराध की श्रेणी में रखा जाता था। अब पत्रकार सम्मेलन में जाति पूछना अपराध नहीं रहा तो किं आश्चर्यं?

बिहार में जाति जनगणना संपन्न हुई। ऐसी खबरें आई थीं कि जाति जनगणना करने वालों को प्रशासनिक अमले का निर्देश था कि ऐसे बहुत से लोग मिलेंगे जो इसका विरोध करेंगे। अपनी जाति नहीं बताएंगे। तो उनके परिजनों, रिश्तेदारों, गांव के मुखिया से पूछ कर उसकी जाति लिख दी जाए। अभी तो हम उन खबरों को सलाम कर रहे थे कि फलां ने जाति व धर्म विहीन प्रमाणपत्र हासिल किया।

एक लड़ाई थी कि अगर मां एकल अभिभावक के रूप में सिर्फ अपना नाम लिखवाना चाहे तो कबूल किया जाए। पिता का नाम लिखने के लिए मजबूर न किया जाए। अब दूसरी तरफ यह कि कोई बच्चा जाति विहीन नहीं हो सकता है। बच्चे की जाति को ही उसकी पहचान माना जाएगा तो किं आश्चर्यं?

बिहार से शुरू हुई इस नई क्रांति की वजह सबको पता है। पांच अहम राज्यों के चुनावों की तारीखों का एलान हो चुका है। 2024 की दौड़ यहीं से शुरू होती है। 2014 से एक शब्द शुरू हुआ छवि प्रबंधन, जिसने 2024 में प्रवेश के पहले ही अपना दम तोड़ दिया। अब राजनीति विचारधारा मुक्त है यानी छवि मुक्त भी। कार्यकर्ताओं के लिए वेदवाक्य सरीखा होता था-‘पार्टी लाइन’।

पार्टी की एक बुनियादी राजनीतिक विचारधारा होती थी जिसके प्रति ‘कट्टर’ होना राजनीतिक शुचिता के दायरे में आता था। लेकिन, आज पार्टी लाइन वैसी ही तेजी से बदलती है जितनी तेजी से महाराष्ट्र में सत्ता। जब डूबते सूरज को यह पता नहीं होता कि वह किसकी सत्ता में उगेगा तो जाति व वर्ग आधारित राजनीतिक दल अपनी बोली की अदला-बदली कर दें तो किं आश्चर्यं?

मंडल कमीशन के दौर में राजीव गांधी ने कहा था कि नौकरी की एक ही शर्त होनी चाहिए योग्यता। उनके पुत्र को कुछ समय पहले चुनावी मैदान में जनेऊधारी हिंदू मानने की सिफारिश की जा रही थी। जनेऊ पहने उनकी तस्वीर वायरल हो रही थे। उन्हें ब्राह्मण बताया जा रहा था। यह वह दौर था जब भाजपा के नेता हर जनसभा में ओबीसी आख्यान कर रहे थे।

अपने केंद्रीय नेतृत्व को ओबीसी का बता कर इसे सामाजिक न्याय की उपलब्धि के खाते में डाल रहे थे। राहुल गांधी के खिलाफ अदालत में इस आरोप के साथ गए कि उन्होंने अपने भाषण में ओबीसी जाति का अपमान किया है। मामले में राहुल गांधी को अधिकाधिक सजा सुनाई गई और उनकी सदस्यता गई। फिलहाल मामला अदालत में है और राहुल गांधी की सजा पर रोक लग गई है, संसद की सदस्यता बहाल हो गई है। ओबीसी हितों की दावेदारी भाजपा के हाथ से निकलती दिख रही है तो किं आश्चर्यं?

अब राहुल गांधी हर जमघट में किस जाति की कितनी भागीदारी पूछ रहे हैं। चुनावी मैदान में सारे मुद्दे ओबीसी पर सिमट गए हैं। वहीं भाजपा की भी उलटी वाणी शुरू हो गई है। 2014 में सबको हिंदुत्व के छाते के अंदर लाने वाली पार्टी अब वर्गीय राजनीति वाली भाषा बोल रही है। वह कह रही है कि पूरी दुनिया में दो ही जाति है अमीर और गरीब की।

ओबीसी आख्यान व जाति गणना की बारिश देख कर उसने वर्गीय राजनीति का छाता खोल लिया है, दुनिया के गरीबों एक हो तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है अपनी जाति को खोने के सिवा जैसा क्रांतिकारी नारा दे रही है। अब भाजपा राहुल गांधी को मनमोहन सिंह का अल्पसंख्यकों का संसाधनों पर पहला अधिकार वाला भाषण याद दिला रही है तो किं आश्चर्यं?

अग्निवीर से लेकर पुरानी पेंशन, महंगाई और बेरोजगारी। विपक्ष से उम्मीद थी कि वह जनता से जुड़े इन्हीं मुश्किल मुद्दों पर सत्ता को घेरेगा। लेकिन देर से एकजुट हुए विपक्ष को लड़ाई में जीत हासिल करने के लिए छोटे रास्ते की तलाश थी। बिहार के घोषित चाणक्य को लगा कि एक जाति जनगणना ही है जिससे 2024 की लड़ाई में चकनाचूर होने से बचा जा सकता है।

बिहार की जाति जनगणना के आंकड़े बाहर आते ही झारखंड से लेकर राजस्थान तक ने जाति जनगणना करवाने का एलान कर दिया। कांग्रेस ने एलान कर ही दिया है कि वह 2024 में केंद्रीय सत्ता में आई तो राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना करवाएगी।

हालांकि अभी यह तयशुदा तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि भाजपा अमीर-गरीब वाली दो ही जाति पर अंत तक टिकी रह पाएगी या नहीं। तथ्यों की खुदाई से ये बातें सामने आ रही हैं कि आज से कुछ साल पहले जाति जनगणना को लेकर भाजपा का क्या रवैया था तो यह आगे राह बदलने का संकेत दे रहा है। भाजपा नेताओं के वे बयान सामने आने लगे हैं जिसमें उन्होंने जाति जनगणना की वकालत की है।

जिस तरह राज्य दर राज्य जाति जगणना के मुरीद हो रहे हैं, महाराष्ट्र में भाजपा की साझा सरकार की असहजता सामने आ रही है उसे देखते हुए इस मुद्दे पर अभी भविष्यवाणी करने से बेहतर है भविष्य का इंतजार किया जाए। भाजपा के पास पहले से दक्षिण का दर्द भी है जहां जाति अब जनवादी चेतना के नाम है।

अग्निवीर, पुरानी पेंशन, नौकरियों के मुद्दे से हट कर कर 2024 का मैदान जाति के ध्रुव पर टिक चुका है। जिन सरकारों को हिसाब देना था कि पेंशन योजना बंद क्यों किया, सरकारी अस्पतालों की हालत खराब क्यों है, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां बंद क्यों हुई, हर हाथ को रोजगार क्यों नहीं उन्होंने इन सवालों के मुहाने पर जाति जनगणना का ढक्कन लगा दिया।

मंडल कमीशन के दौर में आरक्षण के बाद स्थिति बदली थी। लेकिन उसके बाद नौकरियों की स्थिति व सरकारी नौकरियों की स्थिति कितनी बदली है यह किसी से छिपी नहीं है। अभी खबरें सामने आई कि अग्निवीर में चुने गए बहुत से युवाओं ने दूसरी सुरक्षित नौकरी पाते ही सबसे पहले ‘अग्निवीर’ बनने से इस्तीफा दिया।

रोजगार के क्षेत्र का यह अग्निपथ, जाति जनगणना से कैसे पार होगा यह भी वक्त को ही देखना है। देश के सामने एक रिपोर्ट का जिक्र बार-बार आता रहा है। वह है राजिंदर सच्चर समिति की रिपोर्ट। इस रिपोर्ट ने पहली बार मुसलमानों की बदहाल स्थिति को देश के सामने रखा गया था। इसे लेकर समिति ने अपनी सिफारिशें दी थी।

बिहार से निकली जाति जनगणना के नतीजे चौंकाने वाले हैं। एक हंगामा बरपा है। इस हंगामे का ऐसा चुनावी असर हुआ है कि कांग्रेस, भाजपा की तो भाजपा कांग्रेस की भाषा बोल रही है। 2024 की उलटी गिनती के पहले जाति गिनती का यह हंगामा भारतीय राजनीति को क्या शक्ल देगा यह देखने की बात होगी।

अभी तो सवाल यही है कि 2024 के चुनाव का अक्ष कितनी देर तक गिनती के ध्रुव पर झुका रहेगा? बिहार जैसे राज्य के लिए जाति जनगणना कितनी आसान थी यह नीतीश कुमार ने बता दिया। चुनाव आने के अंत तक सत्ता और विपक्ष दोनों इसी मुद्दे पर आ जाएंगे कि जाति जनगणना की बेहतर गिनती कौन कर सकेगा तो किं आश्चर्यं?