हम कट्टर देशभक्त हैं…हम कट्टर ईमानदार हैं…। अरविंद केजरीवाल यह दावा करते हुए भूल जाते थे कि देश महज कागज का नक्शा नहीं होता। देश बरसात में बंद पड़ी बदबूदार नालियां भी होती हैं, देश वह दमघोंटू पर्यावरण भी होता है जहां की हवा जीवन के लिए जहर घोषित कर दी जाती है। देश आम घरों में लगा वह नलका भी होता है जिसमें जरूरत भर पानी नहीं आता और जनता का एक बड़ा तबका पानी माफिया के चंगुल में फंसने के लिए मजबूर होता है। देश आम नागरिकों का स्वाभिमान भी होता है कि उसका राजनीतिक अगुआ भ्रष्टाचार का आरोपी होते हुए, अदालत के सौ बंधन झेलते हुए खुद को अगला मुख्यमंत्री न बताए। आम नागरिक पद के लालच को लेकर आपकी कट्टरता देख रहे थे कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लाई गई सरकार भ्रष्टाचार के आरोपियों के द्वारा जेल से चलने लगी। विकल्प की दावेदारी से सीधे सत्ता में आई आम आदमी पार्टी को दिल्ली की जनता ने विपक्ष में बिठा दिया। दिल्ली के चुनाव को कांटे का टक्कर बना देने वाली जनता के कट्टर संदेश को समझने की कोशिश करता बेबाक बोल

‘न खंजर उठेगा न तलवार इन से
ये बाजू मिरे आजमाए हुए हैं’

ईसा मसीह कह गए हैं, जो तलवार से जीतते हैं वो तलवार से ही मरते हैं। राजनीति के मैदान में आपको काठ की तलवार पकड़ा कर उतारा गया। आपको मैदान में उतारने वालों को पूरा भरोसा था कि आपके हाथों की काठ की तलवार को आपकी अराजनीति वाली कथित राजनीति का दीमक ही चाट जाएगा। काठ की तलवार से ही आपको इतना अहंकार आ गया था कि आप दिल्ली के युद्ध में खुद को अजेय समझने लगे थे। अहंकार की नियति होती है कि एक दिन उसका असलियत से सामना होगा ही। दोनों के मिलन का समय कब आएगा यह तो समय-समय की बात है। कोई दो पारी तो कोई तीन पारी तक का समय निकाल लेता है।

अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव को आत्मकेंद्रित बना लिया था

दो पारी निकाल लेने के बाद अरविंद केजरीवाल की सबसे बड़ी भूल यही थी कि उन्होंने विकल्प वाली राजनीति की राह छोड़ कर दिल्ली विधानसभा चुनाव को आत्मकेंद्रित बना लिया। जाहिर सी बात है कि उन्होंने देश के मौजूदा शीर्ष नेता की रणनीति की नकल की। चुनावी मैदान में अरविंद केजरीवाल की भाषा यही हो गई थी कि केजरीवाल ने अच्छा काम किया तो केजरीवाल को वोट देना, नहीं तो नहीं देना। उनका अभियान केजरीवाल मुख्यमंत्री बनेंगे से शुरू होकर केजरीवाल ही मुख्यमंत्री बनेंगे पर खत्म हो जाता था। लग रहा था कि दिल्ली का चुनाव आम आदमी पार्टी को सत्ता में वापस लाने के लिए नहीं बल्कि अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए लड़ा जा रहा था।

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अरविंद केजरीवाल ने उस समूह की राजनीतिक शैली की नकल की जिसकी वैचारिक कोख से उनके जन्म होने का दावा किया जाता रहा है। लेकिन आपको जन्म देते वक्त पितृ वैचारिक संस्था ने खास खयाल रखा। आपकी नई तरह की राजनीति का जन्म बिल्कुल नई आर्थिक नीति की तरह था। ‘पेटेंट’ वाली अर्थव्यवस्था में समझने की कोशिश करें तो जीन संवर्द्धित फसलों (बीटी कपास) जैसा जिनमें बीज पैदा करने के गुणसूत्र नहीं हैं। यानी आपका राजनीतिक जन्म हुआ लेकिन आप में आगे राजनीतिक वंश पैदा करने का गुणसूत्र नहीं दिया गया। उस वक्त जब आप गर्व से कहते थे कि ‘मैं राजनीति नहीं करने आया हूं जी’ तब शायद जनता को मालूम नहीं था कि आम आदमी पार्टी के गुणसूत्र में राजनीति को रखा ही नहीं गया है जो आने वाले समय में उसके लुप्तप्राय होने की आशंका का कारण बनेगा।

सत्ता के अहंकार ने AAP नेता को अकेलेपन में ला दिया

आप में राजनीतिक कार्यकर्ता पैदा करने का गुणसूत्र नहीं था इसके बावजूद आपके आस-पास वैचारिक आधार पर जिन लोगों का कारवां बना था आपने सबको अपमानित कर बाहर भेज दिया। अपने वैचारिक योद्धाओं को बाहर भेज आप जिस स्थिति को अजेय जैसी समझ रहे थे दरअसल वह आपका अहंकार था जो आपके राजनीतिक अकेलेपन में तब्दील होता गया।

राजनीति में आपकी पहचान ही बनी दूसरों को बदनाम करने की। ‘कैग’ की रपट के एक आंकड़े के आधार पर आपने शीला दीक्षित को भूतो न भविष्यति जैसी भ्रष्टाचारी साबित कर दिया। केंद्र से लेकर दिल्ली, हरियाणा, पंजाब तक कांग्रेस की सत्ता खत्म होने के बाद आपकी गैर सरकारी संगठन मार्का राजनीति को गलतफहमी हुई कि आप हर जगह सरकार के विकल्प बन जाएंगे। आपने उस नेता के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ लिया जिसने सतत संघर्ष से एक खास वैचारिक आधार पर अपनी राजनीतिक जमीन बनाई थी। वाराणसी में खारिज होने के बाद आपको उसी वक्त अपने अस्तित्व की असलियत का अहसास हो जाना चाहिए था। लेकिन पंजाब में सरकार बनाने और गोवा व गुजरात में चुनाव लड़ने के बाद वह वक्त आ गया था जब आगे के खतरे को देखते हुए आपकी पितृ संस्था को लगा कि आपके हाथ से काठ की तलवार वापस ले ली जाए।

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इन सबके बावजूद आपके पास विकल्प, समय, संसाधन था खुद के अस्तित्व निर्माण का। संसदीय दल की राजनीति ऐसी नहीं है कि किसी ने आपको गद्दी पर बिठाने में मदद की तो वह किसी भी समय आपको उतार सकता है। आपको पूरे लोकतांत्रिक तरीके से दिल्ली की सत्ता पर बिठाया गया था और आपके पास लोक था। लेकिन आपकी पैदाइश ही राजनीतिक जमीन से नहीं हुई थी इसलिए आपने राजनीति के पाठ्यक्रम को तवज्जो नहीं दी।

भारत की राजनीति में आपका सबसे अराजनीतिक कदम था, घोटाले के आरोप में इतनी देर से इस्तीफा देना जब दुरुस्त करने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। यह आपका अहंकारी अराजनीतिक मिजाज था कि एक महिला मुख्यमंत्री ने खुद को खड़ाऊं मुख्यमंत्री कहा। आप दिल्लीवालों को एक काबिल महिला मुख्यमंत्री फिर से चुनने की बात भी कह सकते थे। मुख्यमंत्री पद वापस पाने की इच्छा इतनी प्रबल थी कि इस मुद्दे पर आप कोई झूठा वादा भी नहीं करना चाहते थे। सुप्रीम कोर्ट के सौ बंधनों के बाद भी आप जनता के सामने एक झूठ परोसते रहे कि दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल होगा। खैराती बिजली लेने का आरोप झेलने वाली दिल्ली की जनता रात के ‘नियान लाइट’ में आपका मुख्यमंत्री बनने का दावा वाला प्रचार देखती थी तो उसकी आंखें चुंधिया जाती थी।

‘शीशमहल’ का आरोप राजनीतिक दांव-पेच हो सकता है लेकिन यह सच है कि आपने खुद के आसपास एक शीशमहल बना लिया जिसमें आपको सिर्फ खुद का ही चेहरा दिखता था। आप भूल गए कि आप एक अर्द्धराज्य के अर्द्धमुख्यमंत्री थे। पूर्ण राज्य पंजाब के पूर्ण मुख्यमंत्री को आपने हमेशा खुद से कमतर दिखाया। आम आदमी पार्टी इतनी अराजनीतिक हो गई कि आपके नाम के आगे आम आदमी पार्टी का अध्यक्ष या संयोजक नहीं पूर्व मुख्यमंत्री ही कहा जा रहा है। आपने आम आदमी पार्टी को राजनीतिक पार्टी की तरह लिया होता, एक पूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री के सामने अर्द्धमुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्जा नहीं रखा होता तो शायद आज आपका विश्लेषण एक मजबूत विपक्ष के तौर पर होता न कि सिर्फ एक हारे हुए मुख्यमंत्री के तौर पर।

दिल्ली में कांटे की टक्कर का चुनाव हुआ। इस बार दिल्ली की जनता विपक्ष भी लेकर आई है। चुनावी विश्लेषण बताते हैं कि दिल्ली के मध्य-वर्ग ने आपको खारिज किया लेकिन हाशिये पर के एक बड़े वर्ग ने अभी भी आप पर भरोसा जताया। आज राजनीतिक विश्लेषकों को यह भरोसा नहीं हो पा रहा कि आप एक अच्छे विपक्ष हो सकते हैं। आपने अपने सामने हर विपक्ष की राजनीतिक हत्या की। आपने एक राजनेता नहीं बल्कि राजनीतिक घुसपैठिया की तरह काम किया।

एक पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था कि राजनीति में दो पक्षों में जब एक बहुत बुरा और दूसरा कम बुरा हो तो जनता कम बुरे को चुन कर बहुत अच्छा महसूस करती है। आपसे अनुरोध है कि अब उनके लिए लड़िए जिन्होंने आपको कम बुरा चुना यानी विपक्ष दिया। नई दिल्ली सीट से अरविंद केजरीवाल खारिज हुए हैं लेकिन दिल्ली में आम आदमी पार्टी को 43.57 फीसद वोट मिले हैं। सत्तर सीटों में से 22 सीटें आपको एक बेहतर विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए काफी है। जब आपको सत्ता की पहली पारी मिली थी तब आप विपक्ष नहीं बल्कि सीधे विकल्प के दावेदार थे। जनता ने आपकी यह दावेदारी मंजूर भी कर ली और आपने दिल्ली, पंजाब में सरकार बनाने के साथ राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी हासिल कर लिया।

संभावनाओं की भविष्यवाणी जहां खत्म हो जाती उसे राजनीति कहते हैं। दिल्ली की जनता ने पक्ष और विपक्ष दोनों को कांटे की टक्कर के लिए मजबूर कर दिया। दिल्ली की जनता मजबूत विपक्ष भी लेकर आई है तो इसका संदेश समझिए। विपक्ष से पक्ष आप राजनीति के जरिए ही बन सकते हैं। जनता ने राजनीति को समझ आपको राजनीतिक संदेश दे दिया है।