सिंहासन खाली करो कि आरोप लगाया जाता है…। नई राजनीति का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल की शैली को एक पुरानी कहावत से जोड़ा जाए तो कह सकते हैं कि नया आंदोलनकारी शुद्धता का मसाला ज्यादा डालता है। अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस व अन्य दलों पर आरोप लगा कर उसे ही अपराध मानने की जो मुहिम शुरू की थी उसे अदालतों में माफी मांगो आंदोलन के साथ खत्म भी मान लिया था। लेकिन, आरोपों का चक्र उलटा भी चला। नई पार्टी के नई-नवेली रहते ही आम आदमी पार्टी के नेताओं पर आरोपों की झड़ी लगनी शुरू हुई। नोटिस, पेशी के बाद जेल जाने का क्रम चलता रहा। पार्टी के अगुआ अपना ही बनाया नियम कि आरोप ही अपराध है से मुंह फेर चुके हैं। जांच एजंसी के दफ्तर पहुंचने के बजाय केजरीवाल चुनाव प्रचार में कह रहे कि मेरे शरीर को गिरफ्तार कर सकते हो, सोच को कैसे गिरफ्तार करोगे? सोच से ज्यादा शरीर की गिरफ्तारी की चिंता साफ झलक रही है। राजनीति में आरोप ही अपराध है के प्रवर्तक अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के संक्षिप्त इतिहास को पलटता प्रस्‍तुत है बेबाक बोल।

बेहतर दिनों की आस लगाते हुए ‘हबीब’ हम बेहतरीन दिन भी गंवाते चले गए –हबीब अमरोही

मुलजिम और मुजरिम। आम लोग इस शब्द के इस्तेमाल में गफलत करते हैं। पारंपरिक पत्रकारिता का ककहरा सीखने में इन दोनों शब्दों के इस्तेमाल को सिखाया जाता है। मुलजिम यानी आरोपी। जिस पर आरोप लगे हैं। जब तक उस पर आरोप होता है वह अभियुक्त, मुलजिम या आरोपी होता है। अगर समुचित कार्रवाई के बाद उस पर आरोप सिद्ध हो जाता है तब उसे मुजरिम, अपराधी कहते हैं।

राजनीतिक विश्लेषण शुरू करने के पहले मुलजिम बनाम मुजरिम के अंतर पर इसलिए तवज्जो दी गई कि राजनीति में नींव रखने के साथ ही शुचिता की इमारत खड़ी करने वाली आम आदमी पार्टी के अगुआ अरविंद केजरीवाल पार्टी के संभावित आरोपी होने वाले कितने नंबर के नेता हो सकते हैं यह तो सामान्य ज्ञान की किताब तैयार करने वाले गिन रहे होंगे। आम आदमी पार्टी के नेताओं के नोटिस, पेशी, आरोप के बाद जिस तरह से जेल जाने का क्रम चल रहा है, उसे देखते हुए आशंका जताई जा रही कि ह्यआपह्ण के अगुआ भी अंतिम क्रम तक पहुंचाए जा सकते हैं।

भारत की राजनीति में भ्रष्टाचार के आरोप में किसी राजनीतिक दल के नेता की पेशी होना या हिरासत में लिया जाना किसी तरह की हैरानी का सबब तो नहीं होना चाहिए। जिस तरह विपक्ष के नेताओं पर केंद्रीय एजंसिया सक्रिय हैं उसे देखते हुए आम जनता ने हैरान होना छोड़ भी दिया है। आम लोगों को भी लगने लगा है कि सत्ता का सबसे बड़ा हथियार केंद्रीय जांच एजंसियां हो गई हैं। जिस तरह लोग मुलजिम और मुजरिम के इस्तेमाल पर ध्यान नहीं देते, उसी तरह लोगों ने इस पर भी ध्यान देना बंद कर दिया है।

लेकिन, आम धारणा के बरक्स राजनीतिक धारणाओं की बात करें तो 2014 के पहले आम आदमी पार्टी की लाई आरोप क्रांति की प्रतिक्रांति हो गई है। जब किसी राजनीतिक दल का जन्म होता है तो उसकी कुछ घोषणाएं होती हैं, पार्टी का कार्यक्रम होता है, जनता को लेकर वादे और इरादे होते हैं। नए राजनीतिक दल तो अपनी विधि में शुद्धता का मसाला भी ज्यादा डालते हैं। आम आदमी पार्टी का शुद्धतावाद शुरू हुआ आरोपवाद से। इसकी ह्यनई राजनीति की संहिता आरोप से शुरू होकर आरोप पर खत्म हो रही थी। कांग्रेस और भाजपा के नेताओं पर आरोप लगा कर उनके खिलाफ सोशल मीडिया मुहिम छेड़ दी गई।

आम आदमी पार्टी ने वह दौर शुरू किया जहां आरोप ही दोषसिद्धि थी। न कोई अदालत, न कोई वकील और न दलील। बस भ्रष्टाचार का आरोप लगाओ और इस्तीफा देने की मांग करो। इनकी राजनीति नई थी तो शुचिता भी ज्यादा थी कि आरोप के बाद ही इस्तीफा दे देना चाहिए। लंबे समय से भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता को भी आम आदमी पार्टी मार्का तुरंता अदालत में मजा आने लगा।

जनता को लगा, भ्रष्टाचार के इतने दोषियों (आरोपियों) को हम सजा दे देंगे तो देश की सूरत बदल जाएगी। भ्रष्टाचार को लेकर देश का माहौल इतना ध्रुवीकृत हो चुका था कि अगर कोई आरोपी और दोषी, मुलजिम व मुजरिम में फर्क बताने लगता तो उसे भ्रष्ट करार दिया जाता। सत्ता के खिलाफ विपक्ष में रहने के बाद भी आम आदमी पार्टी का रुतबा ऐसा बना दिया गया था कि जो इनके साथ नहीं था वो भ्रष्टाचार के साथ था।

आज जो पत्रकार सांस्थानिक पत्रकारिता से हट कर यूट्यूबर होने पर मजबूर हुए हैं उन दिनों वे भी बड़ी आसानी से मुलजिम और मुजरिम का फर्क भूल गए। पत्रकारों का एक बड़ा तबका आम आदमी पार्टी का प्रवक्ता सा बन गया और बहुत सारे लोगों ने तो विभिन्न पदों पर शपथ लेने की तैयारी भी शुरू कर दी। आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेसी नेताओं को चट आरोपी पट दोषी बताने वाले पत्रकार जब आम आदमी पार्टी के हमाम में पहुंचे तब जाकर उन्हें पता चला कि यहां तो सबने ऐसी बरसाती पहन ली है कि आरोपों की बारिश से भीगते भी नहीं।

मानवाधिकारों के लिए आधी रात को सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खुलवाने का माद्दा रखने वाले मकबूल वकील भी आगे चलकर यहां कबूल नहीं हुए। उन्होंने भी इंसाफ की बुनियाद को दरकिनार कर मुलजिम को ही मुजरिम मानने वालों की अगुआई की थी। पिता-पुत्र की वह मकबूल जोड़ी जब बेआबरू होकर आम आदमी पार्टी के कूचे से निकली थी, तब शायद उन्हें भी मुलजिम बनाम मुजरिम के फलसफे का ध्यान आया होगा।

दिल्ली की शराब नीति थी ही ऐसी कि अच्छे-खासे शराबी भी तौबा बोल पड़े। लगने लगा कि इतनी न सस्ती करो शराब कि लोग बहुत ज्यादा पिया करें। किसी भी राज्य के लिए शराब राजस्व का सबसे आसान तरीका होता है। आम आदमी पार्टी को अब जल्दी से आम दलों जैसा अमीर भी होना था। 2014 के लिए पहनी गई सादगी की ह्यफैंसी ड्रेस उतार फेंकी गई। आरोप है कि पंजाब चुनाव के प्रचार में पानी की तरह पैसा इसी वजह से बहाया जा सका क्योंकि लोगों को पानी की तरह शराब पिलाई गई। आम आदमी पार्टी की शराब नीति में उसी तरह खुली आंखों से भ्रष्टाचार दिख रहा था, जिस तरह से 2014 के पहले भ्रष्टाचार दिखता था। इसकी आंच तो दक्षिण भारत तक फैली है।

जहां तक पैसों की बात है तो नवजात आम आदमी पार्टी ने अपने पुरखों को मात देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब इसके लिए शराब का सहारा लेना पड़े तो क्या? फिर चाहे मुख्यमंत्री के घर का सौंदर्यीकरण हो या कोई और अवसर, हर तरफ सादगी दस्तक देकर चुपचाप लौट जाती है। सादगी को भी पता चल गया है कि वह तो राजनीतिक सौंदर्य प्रसाधन का हिस्सा थी। अब आम आदमी पार्टी में किसी को भी सादगी के ह्यमेकअपह्ण की जरूरत नहीं है। सरकारी गाड़ी, बंगले को घृणा से देखने वाले पूर्व आंदोलनकारी आज आबंटित बंगले में कायम रहने की कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।

भारतीय राजनीति में महज आरोपों से किसी की साख की हत्या का उदाहरण देखना है तो 2014 के पहले विपक्ष के शब्दों में कांग्रेस के जमाई को देख लीजिए। उस वक्त ऐसा लगा था जैसे देश की पूरी संपत्ति उन्होंने हड़प ली है, पूरे देश के भ्रष्टाचार के सरगना वही हैं। उन्हें जेल भेजने का दावा करने वाले आज क्या हुआ तेरा वादा के सवाल पर मुंह फेर लेते हैं।

आम आदमी पार्टी के आरोपों की बौछार के कारण उस वक्त देश के बच्चे-बच्चे को उस नाम से नफरत हो गई थी। आज एक दशक में वे बच्चे बड़े हो गए हैं जिन्हें राजनीति के नए नेताओं ने आरोप और दोष में फर्क करना भुला दिया था। अब अगर वे बच्चे बड़े होकर आम आदमी पार्टी से पूछें कि आपने कितने आरोपियों को पार्टी से निकाला तो क्या जवाब होगा?

2014 के पहले रोपा गया मुलजिम ही मुजरिम का बीज आज विषवृक्ष बन गया है। आरोप लगा नहीं कि आपका फोन से लेकर कंप्यूटर तक जांच एजंसियों के हवाले। जी हां, वही फोन जिसे भ्रष्टाचार के खिलाफ हथियार बनाया गया था कि बस रिकार्ड करो और भ्रष्टाचार खत्म। वही फोन, रिकार्डिंग अब आप के दुश्मन बन गए हैं। हथियार तो हथियार है, उसे इस्तेमाल करने वाले हाथ बदल जाएंगे उसकी धार तो वही रहेगी।

आम आदमी पार्टी की आरोप वाली शुद्धता के बाद अदालत ने राजनीति को और बेहतर बनाते हुए टिप्पणी की कि राजनीतिक दलों को भ्रष्टाचार के दायरे में लाना चाहिए। अरविंद केजरीवाल को तो इसका स्वागत करना चाहिए।पहले भी कई नेता, मुख्यमंत्री अपनी पेशी दे चुके हैं तो उन्हें क्या दिक्कत है? अदालतों में सदियों से मुकदमा पेश होता रहा है, लेकिन मुलजिम ही मुजरिम हो, यह कहीं भी नियम नहीं बन पाया। इसके फर्क के लिए ही अदालतें बनी हैं। आप का आरोप जब आप के खिलाफ भस्मासुर हो रहा है तो क्या आप आज भी कहेंगे-मुलजिम ही मुजरिम है, इस्तीफा दो?