अमेरिका में सत्ता परिवर्तन पूरी दुनिया के लिए बहसतलब होता रहा है। पिछले साल दिसंबर में हुए सत्ता परिवर्तन व जनवरी में डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद से यह बहस हर दिन तेज होती जा रही है। अमेरिका में इस बार सत्ता परिवर्तन के साथ एक और बड़ा परिवर्तन हुआ। अमेरिकी सत्ता में एलन मस्क की भागीदारी हुई। डोनाल्ड ट्रंप और एलन मस्क की जोड़ी ने कई तरह के अनुदान बंद कर दुनिया भर में हलचल मचा दी है। इन सबके बीच अमेरिकी राष्ट्रपति के दफ्तर से एक तस्वीर आती है जिसमें एलन मस्क अपने बच्चे के साथ हैं। भारत के प्रधानमंत्री के साथ बैठक में भी एलन मस्क अपने बच्चों के साथ पहुंचे थे। जानकारों का दावा है कि मस्क खास रणनीति के तहत अहम बैठकों में अपने बच्चों के साथ जाते हैं। वे संदेश देते हैं कि जो अपने बच्चों की इतनी परवाह करता है, वह पूरी दुनिया के लिए परवाहबरदार हो सकता है। इस संदर्भ में भारत को देखें तो यहां राजनीतिक जीवन में परिवार को भ्रष्टाचार का बड़ा कारण माना जाता है। परिवार की परंपरा पर मस्क ने सात समंदर पार से जो संदेश दिया उस पर बेबाक बोल

मौजूदा दुनिया के सबसे शक्तिशाली से दिखते डोनाल्ड ट्रंप का दफ्तर। इस दफ्तर में एक छोटा बच्चा शैतानी कर रहा है। वह अपनी नाक साफ कर ट्रंप की मेज के आगे पोछ देता है। यह बच्चा दुनिया के सबसे प्रभावशाली कारोबारी एलन मस्क का बेटा है। एलन मस्क और उनके परिवार का मामला सिर्फ डोनाल्ड ट्रंप के दफ्तर तक सीमित नहीं रहता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीते दिनों अमेरिका यात्रा की जो तस्वीरें सबसे ज्यादा चर्चित हुईं वह एलन मस्क के परिवार के साथ की थी और यह कोई पारिवारिक घरेलू मामला नहीं था। ‘ब्लेयर हाउस’ में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, अमेरिका में राजदूत विनय क्वात्रा और विदेश सचिव विक्रम मिसरी शामिल थे। दूसरी तरफ ‘स्पेसएक्स’ कंपनी के प्रमुख एलन मस्क और उनका परिवार। भारतीय प्रधानमंत्री के साथ बैठक में एलन मस्क के बच्चे वैसा ही व्यवहार कर रहे थे जैसा आम घरों में बच्चे करते हैं। अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद हुई इतनी अहम बैठक के इस घरेलू से दिखते रूप पर काफी चर्चा भी हुई।

अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद से मस्क की अहम भूमिका

विभिन्न अंतरराष्ट्रीय अखबारों व सोशल मीडिया की रपटें बताती हैं कि अपनी साथियों के साथ एलन मस्क बारह बच्चों के पिता हैं। अमेरिका में सत्ता परिवर्तन और वहां के शासन में मस्क की अहम भूमिका के बाद ये तस्वीरें ज्यादा चर्चा में आईं। इंटरनेट पर मौजूद रपटें दावा करती हैं कि अपनी मुकम्मल पहचान बनाने के दौरान ही मस्क अपने बच्चों को लेकर अहम बैठकों में जाने लगे थे। अहम बैठकों में मस्क और उनके बच्चों की मौजूदगी की तस्वीरों के बाद राजनीति व परिवार के इस संबंध पर विशेषज्ञों ने चर्चा की। जनसंपर्क के जानकारों का कहना है कि अमेरिका में पारिवारिक छवि किसी भी शक्तिशाली व्यक्ति के लिए रामबाण नुस्खा जैसा है। मस्क की इन तस्वीरों को उनके प्रचार का औजार ही कहा जा रहा है।

मस्क एक कारोबारी हैं और जाहिर सी बात है कि जनसंपर्क उनके लिए अहम होगा। उनके जुनूनी व्यक्तित्व को देखते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें अपनी सत्ता में सशक्त जगह दी है। सत्ता और कारोबारी का अप्रत्यक्ष संबंध तो हमेशा से रहा है लेकिन अमेरिका जैसे देश में किसी महत्त्वाकांक्षी कारोबारी का इस तरह सत्ता में शामिल होना अपने आप में अनोखी घटना थी। मस्क अपने कारोबार में जिस ऊंचाई पर पहुंच गए हैं उसके बाद उनका कदम सत्ता में सहभागी होना ही हो सकता था। ट्रंप-मस्क की अगुआई में अमेरिका अपने असाधारण फैसलों को लेकर पूरी दुनिया में सवालों के घेरे में है। मजेदार यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति भी उनके साथ एक जुनूनी व्यक्ति की तरह ही काम कर रहे हैं। कभी कोई फैसला ले लेना और बाद में फिर उस से पलट जाना। अमेरिकी राष्ट्रपति पूरे गाजा शहर को किरायेदारों की तरह कहीं और स्थानांतरित करने की बात कर रहे हैं।

अमेरिका में नौकरियों में छंटनियों का दौर शुरू हो चुका है

अमेरिका में नौकरियों में छंटनियों का दौर शुरू हो चुका है। दुनिया भर में अनुसंधान व अन्य सेवाओं को लेकर अमेरिकी मदद में कटौती के संदर्भ में आरोप लग रहे हैं कि ऐसे फैसले पूरी दुनिया पर बुरा असर डालेंगे। ऐसे कड़े व अलोकप्रिय फैसलों के बीच मस्क अपनी बेपरवाही वाली लोकप्रिय छवि को भी बरकरार रखना चाहते हैं। इसके लिए लिए एक अच्छे पिता वाली तस्वीर से बेहतर क्या होगा? उन्हें पता है कि डोनाल्ड ट्रंप से लेकर भारत के प्रधानमंत्री तक के साथ बैठक में बच्चे के साथ जाने से उनकी अलग तरह की छवि की चर्चा होगी। ऐसी छवि वाला पिता जो अपने बच्चों का ख्याल रखता है, उन्हें सहज रखता है।

अमेरिका जैसे देश में परिवार, जनसंपर्क का सबसे अहम हिस्सा हो चुका है। अमेरिकी राष्ट्रपतियों को इस आधार पर भी आंका जाता है कि वे परिवार को लेकर कितने परवाहबरदार हैं। इससे पहले बराक ओबामा को चुनावों में बढ़त उनकी अच्छी पारिवारिक छवि के कारण भी मिली थी। सार्वजनिक जगहों पर ओबामा पत्नी मिशेल और अपने बच्चों के संग अक्सर दिखा करते थे। उनके पारिवारिक जीवन की कहानियां मीडिया में छाई रहती थीं। यही बात कारोबारियों को लेकर भी है। आपकी पारिवारिक छवि अच्छी है तो लोग आपके उत्पादों पर भरोसा करेंगे। यानी पारिवारिक गुण राजनीति से लेकर कारोबार तक के लिए गुणफलक का काम करते हैं।

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इसी परिवार बनाम जनसंपर्क के संबंध में भारत की बात करते हैं। कक्षा एक से लेकर वैश्विक मंच तक ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का नारा देनेवाले भारतीयों की राजनीति परिवार निरपेक्ष दिखना पसंद करती है। कई मामलों में परिवार नहीं होना सबसे बड़ी योग्यता बन जाती है। कुछ चुनिंदा नेताओं को छोड़ दें तो ज्यादातर अपने सार्वजनिक जीवन में पारिवारिक छवियों को सामने लाने से परहेज करते आए हैं। परिवार के प्रति निरपेक्ष दिखने की यह परंपरा आधुनिक भारतीय राजनीति की शुुरुआत यानी स्वतंत्रता आंदोलन से है। सार्वजनिक मंचों पर महात्मा गांधी के बारे में बहुत से उद्धरण हैं जब वे देश की खातिर अपनी पत्नी कस्तूरबा एवं बच्चों के प्रति कठोर दिखते हैं। आज के आधुनिक विमर्श में इस पर कई तरह के सवाल भी उठे हैं।

भारत में राजनीतिक ‘पुरुषों’ का परिवार को लेकर निर्मोही होने से लेकर भारत की राजनीति पारिवारिक होने तक भी सिमटी। राजनीति में पारिवारिक स्थिति इस चरम पर पहुंची कि पिछले लंबे समय से भारतीय राजनीति में परिवार और वंश को खलनायक की तरह पेश किया जाने लगा। एक दशक पहले अरविंद केजरीवाल को विकल्प की राजनीति के रूप में इसलिए पेश किया गया क्योंकि राजनीति के मैदान में उनकी कोई पारिवारिक जड़ नहीं थी। अरविंद केजरीवाल के आगे और पीछे कोई राजनीतिक पहचान नहीं थी। यह पहचान विहीन होना ही उनकी राजनीतिक पहचान का बड़ा आयाम बना। आम आदमी पार्टी की पहली पीढ़ी के नेता के रूप में केजरीवाल को ऐसे पेश किया गया कि देश की सबसे पुरानी पार्टी को परिवारवाद तक ही सीमित कर दिया गया। एक छवि बनी कि जितना पुराना परिवार उतना ज्यादा भ्रष्टाचार।

भारतीय राजनीति में पूरी क्षेत्रीय राजनीति को इसी पारिवारिक छवि के कारण खारिज किया जा रहा है। चाहे करुणानिधि का कुटुंब हो, लालू यादव का, मुलायम सिंह यादव का या बादल परिवार। अखिलेश यादव से लेकर तेजस्वी यादव तक वंशवादी चेहरे भी घोषित किए जा चुके हैं। राहुल गांधी की सारी राजनीतिक काबिलियत एक तरफ और उनका नेहरू-गांधी के परिवार से ताल्लुक रखने का ‘दोष’ दूसरी तरफ।

भारतीय राजनीति में इंदिरा गांधी के समय से ही परिवारवाद का आरोप लगा और उनके समांतर राजनीतिक शक्ति तैयार हुई। इक्कीसवीं सदी के डेढ़ दशक खत्म होने तक परिवार और भ्रष्टाचार के नाम पर कांग्रेस का राजनीतिक अस्तित्व ही संकट में आ गया। कांग्रेस को उखाड़ने में जिस नई-नवेली आम आदमी पार्टी का सबसे बड़ा योगदान रहा, महज दस साल के अंदर उसके मुख्यमंत्री से लेकर सभी बड़े नेता भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेजे गए। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने जेल के अंदर से दिल्ली पर शासन करने में भी कोई परहेज नहीं किया।

स्थिति यह रही कि पारिवारिक राजनीति के खिलाफ खड़े होकर अपनी पहचान बनाने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जेल से जनता को संदेश भेजने के लिए अपनी पत्नी सुनीता केजरीवाल को ही चुना। वहीं झारखंड में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए हेमंत सोरेन के विकल्प में उनकी पत्नी कल्पना सोरेन जनता के बीच मौजूद थीं। हेमंत सोरेन की जीत में कल्पना सोरेन की भूमिका को अहम माना गया।
परिवार बनाम भ्रष्टाचार पर भारत की जनता जहां चली थी वहीं लौट आई है। भारतीय राजनीति व समाज में अभी परिवार के पाठ पर बहुत गिरहें खुलनी बाकी हैं।