दस मार्च, 2022 को आए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों का 2024 तक कई दृष्टिकोण से विश्लेषण होता रहेगा। उत्तर प्रदेश के नतीजों की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव व सपा नेता आजम खां ने अपनी सांसदी से इस्तीफा दे दिया। अखिलेश को यह अंदाजा हो गया है कि योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की राजनीति का पाठ्यक्रम बदल दिया है। योगी जिस तरह जमीनी नेता के रूप में उभरे हैं उनका मुकाबला मौसमी राजनीतिज्ञ बनकर नहीं किया जा सकता है। चुनाव के पहले विपक्ष ने उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था को सबसे कमजोर कड़ी बताया था। लेकिन, इस मुद्दे को लेकर विपक्ष के सत्ता में आने के मंसूबे पर योगी ने वही बुलडोजर चला दिया जिसे विमर्श में विपक्ष लेकर आया। ‘यूपी में का बा’ से लेकर ‘बुलडोजर बा’ तक के चुनावी सफर का संदेश समझने की कोशिश करता बेबाक बोल।
‘वहां देखो बुलडोजर भी खड़े हैं मेरी सभा में’ उत्तर प्रदेश के चुनावी हलचल में योगी आदित्यनाथ का वह वीडियो वायरल हुआ जिसमें विमान की खिड़की से अपने चुनावी सभास्थल पर बुलडोजर देख कर उनके चेहरे पर खुशी आ जाती है। वे बड़े सहज तरीके से अपने सहयोगी को बुलडोजर के बारे में बताते हैं। उत्तर प्रदेश के चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और योगी आदित्यनाथ दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले चुके हैं। लेकिन देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का चुनावी विश्लेषण अभी भी जारी है और तयशुदा तौर पर यह 2024 तक जारी रहेगा।
उत्तर प्रदेश के संदर्भ में हम राशन, जनकल्याणकारी योजनाओं की जनता तक आपूर्ति और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की भूमिका का जिक्र कर चुके हैं। इस बार विश्लेषण बुलडोजर (जेसीबी मशीन) यानी चुनावी नतीजों में कानून-प्रशासन के मुद्दे की भूमिका का।
विधानसभा चुनाव परिणाम आते ही ऐसा लगने लगा कि उत्तर प्रदेश में जीतने वाली भाजपा का चुनाव निशान कमल न होकर बुलडोजर हो। असल बुलडोजर से लेकर खिलौना बुलडोजर को लेकर आम जनता व भाजपा कार्यकर्ता जश्न मनाने लगे। एक संगठन के लोगों ने तो योगी आदित्यनाथ को चांदी का बुलडोजर भेंट किया।
उत्तर प्रदेश में चुनाव की घंटी बजने के साथ ही विपक्ष का पहला हमला सूबे के कानून-प्रशासन पर था। विपक्ष का मुख्य चेहरा व समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश सरकार के कामकाज पर सवाल उठाते हुए योगी आदित्यनाथ को ‘बुलडोजर बाबा’ कह दिया। बुलडोजर का यह खेल शुरू तो किया अखिलेश यादव ने लेकिन खेल के सारे नियम तय किए योगी आदित्यनाथ ने।
अभी तक बुलडोजर जैसे नकारात्मक शब्द को उन्होंने अपने लिए सबसे सकारात्मक बना लिया। जनता को संदेश दिया कि उन्हें बुलडोजर बाबा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि वे इसे माफिया की अवैध संपत्ति पर चलवा रहे हैं। अखिलेश यादव को अंदाजा नहीं था कि उनके किए तंज से ही योगी उनकी समाजवादी पार्टी को सबसे ज्यादा तंग करेंगे। ‘यूपी की मजबूरी है, बुलडोजर जरूरी है’ जैसे गीत पूर्व सपा सरकार की कथित गुंडागर्दी को याद करने के लिए सार्वजनिक परिवहन से लेकर सामूहिक समारोहों तक में बजने लगे।
जिस बुलडोजर को विपक्ष ने सत्ता की हिंसा का प्रतीक बताया योगी आदित्यनाथ ने उसे माफिया से मुक्ति के औजार के रूप में दिखाया। चुनावी जंग में बुलडोजर योगी सरकार के लिए युद्धक टैंक में बदल गया जो दुश्मनों से जनता की रक्षा करेगा। हाथरस, उन्नाव, लखीमपुर को याद दिलाने वाले विपक्ष के शोर पर योगी ने माफी मांगते माफिया को हावी कर दिया। योगी बुलडोजर की खूबियां गिना रहे थे कि उत्तर प्रदेश की शान बने राजमार्ग इन्हीं की देन हैं।
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी आंदोलन के दौरान उत्तर प्रदेश के काम-काज को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठे थे। खासकर कानून की जद में आए लोगों की संपत्ति कुर्की के तरीके पर सवाल थे। लक्षित मुठभेड़ों को लेकर भी सूबा सवालों के घेरे में था। यहां अपराध का भी विश्लेषण जाति के चौखटे में हो रहा था। विकास दुबे की आपराधिक पृष्ठभूमि, उसकी मौत के तरीके को छोड़ कर उसकी जाति पर ही बहस केंद्रित हो गई। जैसे, अपराधी को किसी खास जाति की रहनुमाई का ठेका मिला हो।
जब विपक्ष जमीन से दूर होकर दिल्ली व अन्य जगहों पर उत्तर प्रदेश को जीतने के लिए मंथन कर रहा था तब योगी जमीनी यथार्थ समझ रहे थे। वे सूबे के लोगों के बीच थे। जनता को बता रहे थे कि हम अपराधियों को सजा दे रहे हैं तो विपक्ष को दर्द हो रहा है। जब अखिलेश यादव टीवी चैनलों पर कह रहे थे कि मैं नोएडा इसलिए नहीं गया क्योंकि वहां जाने वाला मुख्यमंत्री नहीं रह पाता है तब योगी नोएडा में अफसरों को डांटते हुए कानून-प्रशासन को ठीक करने का हुक्म दे रहे थे।
यह एक बड़ा जमीनी सच है कि भाजपा की सांगठनिक इकाइयों ने जनता के बीच कानून व प्रशासन की लोकलुभावन छवि बनाने में मदद की। यह बहुत कुछ हिंदी पट्टी के सिनेमा जैसी है। कानून की नजर में जनता अब वो पसंद करने लगी है जिसे सख्त और तुरंत कहते हैं।
जब राज्य का मुखिया अपराधियों के लिए गर्मी निकाल देने की बात करता है तो जनता उसे अपने बीच का नायक मानने लगती है। योगी ने पूर्व सपा सरकार के शासन की छवि वैसे अभिभावक सी बना दी जो अपनी संतानों की गलत तरीके से परवरिश करते हैं, उनके बच्चे अपराध की राह पर चलने का रास्ता चुन लेते हैं। योगी तो बस अपराधियों से उनका अभिभावक छीनने का दावा कर रहे थे।
कानून-प्रशासन के मसले पर अब जनता सख्त छवि वाली सरकार के साथ थी, जो ढुलमुल रवैया नहीं अपनाती है। जनता को लगा कि यह वैसी मजबूत सरकार है जो अपने फैसले पर किसी दबाव में नहीं आती है। उसे लागू करवा कर ही रहती है।
विपक्ष का सबसे ज्यादा भरोसा लंबे समय से चली प्रवृत्ति पर भी था कि पांच साल के बाद उत्तर प्रदेश की जनता सरकार बदल देती है। लेकिन योगी इन विधि के विधानों से परे होकर पूरे आत्मविश्वास के साथ विधान-व्यवस्था को अपनी तरह साधते रहे। जनता को अपनी तरह की राजनीति कर अपनी तरह की सख्ती वाली भाषा का मुरीद बना दिया। अभिभावकों को ऐसा भरोसा दिलाया गया कि अब उनकी बेटियां सड़कों पर ज्यादा सुरक्षित हैं।
महिलाओं ने कहा कि सोने के गहने पहन कर बाहर निकलने में अब उतना डर नहीं लगता। गाड़ीवानों ने कहा कि उत्तर प्रदेश में पड़ने वाले राजमार्ग से परिवार के साथ रात का सफर करने में डर नहीं लगता है। व्यावसायिक वाहन चालकों ने दावा किया कि नाकों पर अवैध वसूली बंद हो गई है। इसके पहले तो बिना पुलिस को रिश्वत दिए उत्तर प्रदेश का इलाका पार ही नहीं किया जा सकता था।
उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा सवाल यही है कि किसान आंदोलन का असर योगी सरकार पर क्यों नहीं पड़ा? लखीमपुर की सभी सीटों पर भाजपा की जीत के क्या मायने हैं? वह योगी ही थे जो लखीमपुर की घटना के बाद टिकैत को बातचीत की मेज पर लेकर आए।
सरकार की कानून वापसी से लेकर अन्य तर्कों के सहारे किसानों को अपने पक्ष में किया। उन्होंने जनता को लखीमपुर से लेकर उन्नाव तक को एकल घटनाओं की तरह देखने को कहा। साथ ही माफिया पर अंकुश, सड़कों पर दुरुस्त की गई सुरक्षा व्यवस्था, अपराधियों के साथ सख्ती को वृहद तरीके से देखने का नजरिया दिया।
कहा जाता है कि जनता की सामूहिक स्मृति छोटी होती है। लेकिन इस सिद्धांत को वही नेता अपने साथ स्वयंसिद्ध कर सकता है जो खुद सामूहिकता की उपज हो। योगी चुनावी सभा में जिस तरह से माताओं और बहनों की सुरक्षा का वादा करते थे वह उस जनता को भरोसेमंद लगा जिसके बीच वे अपने तरीके से उठते-बैठते थे।
चुनाव के शुरू में कानून-व्यवस्था योगी आदित्यनाथ की सबसे कमजोर कड़ी लग रही थी। लेकिन उन्होंने बेहिचक होकर प्रति आख्यान रच दिया। इस मुद्दे से बचने के बजाए इस पर अपनी ऊर्जा झोंक दी। उन्होंने जनता से ही जवाब तैयार करवाना शुरू किया।
वो लोगों से पूछते कि पहले सूबे में अपराधियों को लेकर आप क्या सोचते थे, क्या थाने में आपकी प्राथमिकी दर्ज हो रही है, पुलिसवाला आपसे इज्जत से बात कर रहा है? जाहिर सी बात है कि योगी ने कानून-व्यवस्था में कोई आधारभूत बदलाव नहीं किया बल्कि व्यवस्था को कसा।
योगी ने संदेश दिया कि पूर्ववर्ती सरकारों में भी यही पुलिस थी और गुंडागर्दी सरकार संरक्षित थी, हमने गुंडों पर से सरकार का संरक्षण हटा दिया और अपराधियों को जेल पहुंचा दिया। अपराधियों को लेकर विपक्ष आरोप लगा रहा था कि क्या यह मुख्यमंत्री की भाषा है? लेकिन यह आरोप हवा में रहे क्योंकि योगी जमीन पर विधान का अपना आख्यान रच चुके थे। अपनी कमजोर कड़ी से वो सत्ता की दोहरी लड़ी तक पहुंचने में कामयाब हुए।