गिरमिटिया मजदूर से शुरू हुआ सफर अपने श्रम और कौशल से इंग्लैंड के प्रधानमंत्री निवास से लेकर अमेरिका की उपराष्ट्रपति के दफ्तर तक पहुंच गया है। नेहरू-इंदिरा की श्वेत-श्याम तस्वीरों से आगे बढ़ मनमोहन सिंह व नरेंद्र मोदी के साथ रंग-बिरंगे मंच पर भारत के जयकारे लगाते और भारतीय नेतृत्व के प्रति अपना आभार जताते लोग बता रहे हैं कि दुनिया में भारत की क्या जगह है। जनसंचार के माध्यमों ने विदेश में बसे भारत और भारतीय नेतृत्व को अलग ही भव्यता दी है। नेहरू से लेकर मोदी तक, विदेशों में भारतीयों के बनाए लोकतंत्र के सम्मान की मजबूत होती तस्वीरों की विवेचना करता बेबाक बोल

अमेरिका, मिस्र से लेकर भारत वापसी तक। भारतीय नेतृत्व के साथ एक शब्द सहयात्री था-भारत के 140 करोड़ लोग। किसी भी देश के अगुआ की विदेश यात्रा वैश्विक मानकों पर देश का परीक्षाफल होती है। देश की आजादी के बाद से ही जनता के खड़े किए लोकतंत्र के कारण भारत का परीक्षाफल इस मामले में अव्वल रहा है।

भारत को अपने पाले में करने के लिए अमेरिका और रूस दोनों लगे रहे

बात शुरू होती है भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से जिन्होंने दुनिया को ‘गुटनिरपेक्ष’ शब्द से परिचित करवाया। लालबहादुर शास्त्री ने इसे आगे बढ़ाया। अमेरिका और रूस में चाहे जितने भी विरोधाभास रहे हों, एक मामले में दोनों समान थे, बजरिए नेहरू भारत को अपने पाले में करना। इंदिरा गांधी के साथ तनाव कम करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को भारत की 22 घंटे की यात्रा पर आना पड़ा था। इंदिरा गांधी की विदेश यात्रा की श्वेत-श्याम तस्वीरों में उमड़ती भीड़, उनका स्वागत करते कद्दावर अमेरिकी, रूसी और अन्य देशों के नेता आज भी भारत की शक्ति के रंग बिखेरते हैं।

18 मई 1974 को जब इंदिरा गांधी ने परमाणु परीक्षण कर ‘स्माइलिंग बुद्धा’ नाम दिया तो उसकी ऊर्जा की गूंज विश्व की महाशक्तियों को चौंका गई। आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की हार और गैर कांग्रेस की थोड़ी देर वाली सरकार भी भारत के लोगों का प्रमाणपत्र थी। इसलिए वह भी इतनी मजबूत देखी गई थी कि परमाणु परीक्षण के बाद भारत सरकार के साथ बिगड़े रिश्ते को सुधारने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर को भारत का दौरा करना पड़ा।

भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण 18 मई 1974 को तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में किया। (ट्विटर/कांग्रेस) तथा तत्कालीन डीआरडीओ प्रमुख एपीजे अब्दुल कलाम (बाएं) और एईसी अध्यक्ष और डीएई सचिव आर चिदंबरम के साथ पोखरण परीक्षण स्थल पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी। (एक्सप्रेस आर्काइव)

राजीव गांधी की अंतरराष्ट्रीय हस्ती आज भी तस्वीरों में समय से मुकाबिल है। उन्होंने देश में कंप्यूटर तकनीक की जो बुनियाद रखी, उसकी बदौलत आज कंप्यूटर और इंटरनेट की दुनिया भर की सिरमौर कंपनियों के मुखिया भारत के लोग हैं। पश्चिमी देशों में कंप्यूटर और इंटरनेट की ताकत का मतलब ही भारतीय हो गए हैं।

1998 के परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर आर्थिक प्रतिबंध थोप दिये गये

राष्ट्रवादी भावना से ओत-प्रोत अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो 11 मई 1998 को पोखरण में परमाणु परीक्षण कर पश्चिमी देशों को भारत की परमाणु शक्ति से ऐसा दहला दिया कि अमेरिका की अगुआई में वैश्विक शक्तियों ने भारत को आर्थिक प्रतिबंधों से लाद दिया। वाजपेयी के ‘प्राकृतिक गठबंधन’ के सूत्र को मनमोहन सिंह ने इस तरह आगे बढ़ाया कि पश्चिमी शक्तियों ने भी भारत के परमाणु संपन्न होने को उसका कुदरती अधिकार माना। अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने मनमोहन सिंह की अगुआई में भारत के साथ परमाणु करार किया।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार, 22 जून, 2023 को वाशिंगटन के कैपिटल में कांग्रेस की एक संयुक्त बैठक को संबोधित करते हैं। (एपी/पीटीआई)

अमेरिकी संसद में मनमोहन सिंह के लिए खड़े होकर तालियां बजाते अमेरिकी सांसदों ने बताया कि शक्ति संतुलन में भारत की तस्वीर बदल चुकी है। मनमोहन सिंह के बाद नरेंद्र मोदी जब भारत के प्रधानमंत्री बने तब तक कैमरे और इंटरनेट ने दुनिया पूरी तरह बदल दी थी। आर्थिक संकटों के बीच पूरी दुनिया की तरह राष्ट्रवाद भी भारतीय राजनीति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।

विदेश की धरती पर जिस तरह भारतीय प्रधानमंत्री के स्वागत में अप्रवासी भारतीय एक नई दुनिया रच देते हैं और भारतीय नेताओं के सम्मान में दुनिया के नेता सजदा करते हैं वह भारत की उस 140 करोड़ जनता का सम्मान है जो अपने कैमरों के साथ कहते हैं हमारी ताकत देखो। यह उन भारतीयों का सम्मान है जिनकी वजह से पिछली दिवाली में ब्रिटेन का प्रधानमंत्री निवास जगमगा उठा था और ऋषि सुनक पंजाबी गाने की धुन पर भांगड़ा कर रहे थे। यह उन भारतीयों का सम्मान है जो अंग्रेजों की दो सौ साल की गुलामी झेलने के बाद उठ खड़ा हो ब्रितानी हुकूमत संभाल रहा है। यह उन भारतीयों का सम्मान है जिस मूल की कमला हैरिस अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति बनने की दौड़ में शामिल हैं।

मंगलवार, 20 जून, 2023 को न्यूयॉर्क अमेरिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ऑटोग्राफ लेते भारतीय प्रवासी सदस्य। (पीटीआई फोटो)

भारत के इसी शक्तिशाली रूप की विरासत संभाल रहे हैं नरेंद्र मोदी। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद नरेंद्र मोदी का अमेरिका दौरा कई मायनों में विशिष्ट था। युद्ध की शुरुआत से ही भारत ने इसे रोकने और शांति कायम करने के लिए जो ‘गुटनिरपेक्षता’ की सकारात्मक भूमिका निभाई उसने भारतीय नेतृत्व के प्रति दुनिया के भरोसे को और मजबूत किया है। कोरोना से पहले और बाद तक विकासशील देशों के दुख-सुख के साथ तो भारत हमसफर रहा ही है, लेकिन, एकध्रुवीय महाशक्ति के बारे में अमेरिका के कई भ्रम टूटने के बाद भी अभी तक यह भ्रम बना हुआ था कि भारत जैसे देश की साख को अमेरिका बना और बिगाड़ सकता है। आम तौर पर भारतीय नेतृत्व की यात्राओं को अभी तक इसी पैमाने पर देखा जाता था कि बना या बिगड़ा?

पिछले दशकों से चल रही विदेश नीति ने इस बना और बिगड़े वाले दो खांचों को खत्म ही कर दिया है। इस बार तो ओबामा प्रकरण के बाद कथित सर्वशक्तिमान अमेरिका से यह पूछे जाने वाली स्थिति बनी कि हाल कैसा है जनाब का? किसी भी देश के लोकतंत्र का हाल वहां के मीडिया से तय करने का रिवाज अमेरिका ने ही शुरू किया है। इंटरनेट और कंप्यूटर की शक्ति के साथ नरेंद्र मोदी के साथ नए मीडिया की ताकत भी जुड़ी। नरेंद्र मोदी जनसंचार की शक्ति को अपने पक्ष में करने में कामयाब हुए जिसका असर आस्ट्रेलिया से लेकर कनाडा तक दिखता है। अप्रवासी भारतीय, भारतीय नेता के प्रति जुड़ाव जता कर उस मिट्टी से जुड़ते हैं जहां से उनके पुरखे अपने सपने पूरे करने निकले थे।

बुधवार, 21 जून, 2023 को वाशिंगटन, डीसी में अपने होटल पहुंचने पर भारतीय प्रवासियों से मुलाकात करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (पीटीआई फोटो)

वैश्वीकरण का दौर शुरू होते ही सोवियत संघ के अंत और अमेरिका को दुनिया का दादा घोषित करने के बाद पिछले दशकों में दुनिया ने जो हिचकोले खाए हैं, भारत वैसा देश रहा है जिसने वैश्विक शक्ति-संतुलन में खुद को स्थिर और मजबूत किया है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने रूस से तेल की खरीददारी जारी रख संदेश दे दिया था कि ‘अमेरिका फर्स्ट’ सिर्फ अमेरिका की राजनीति तक महदूद होगा। रूस से तेल की खरीददारी जारी रखने का फैसला भारत की खींची गई वह लकीर है जिसे ‘नासा’ अंतरिक्ष से भी पहचान सकता है।

भारत न तो चीन का और न ही अमेरिका का पिछलग्गू बनेगा

सोवियत रूस के विघटन के बाद जिस तरह चीन और अमेरिका में से दुनिया का अगुआ कौन वाला दो विकल्पीय सवाल खड़ा किया गया था भारत की विदेश नीति ने उसे बहुविकल्पीय बना दिया है। पिछले दिनों में भारतीय नेतृत्व ने चीन से जिस तरह से कूटनीतिक संबंधों को आगे बढ़ाया है, उससे संदेश दे दिया गया है कि भारत न तो चीन का पिछलग्गू बनेगा और न अमेरिका का। भारत ने चीन को अमेरिका के नजरिए से देखना बंद कर अपने आर्थिक-सीमाई संदर्भों में देखना शुरू किया है। भारत किसी ‘अ’ का दोस्त और ‘ब’ का दुश्मन नहीं वैश्विक शक्ति की सभी वर्णमाला के साथ अपनी मजबूत पहचान के साथ देखा जा रहा है। इस पहचान के चेहरे भारत के वे 140 करोड़ लोग हैं, जिनके बारे में प्रधानमंत्री से लेकर विपक्ष के नेता तक बात करते हैं।

हाल के दिनों में पूरी दुनिया की नजर इस खबर पर थी कि भारत, चीन को पछाड़ कर दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बनने जा रहा है। चीन ने ही दुनिया को बताया था कि जनसंख्या को शक्ति-संख्या में कैसे बदला जा सकता है। दुनिया की नजरों में सबसे बड़े बोझ जनसंख्या को ही चीन ने अपनी ताकत बनाया और अब बारी भारत जैसे बड़े भूगोल की है।

भारत ने दुनिया को अपनी जनसंख्या को समृद्ध सभ्यता के रूप में देखना सिखा दिया है। भारत को इतिहास में बहुत छोटे समय के लिए हराया जा सका है, गुलाम रखा जा सका है। छोटे समय के पहले और बाद का जो इतिहास है दोनों के समुच्चय से नेहरू से लेकर मोदी तक बता चुके हैं कि इस पूरब को ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ की नजर से देखना छोड़ो।

अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक शासन-प्रशासन की ऊपरी सीढ़ी पर पहुंचे प्रवासी भारतीयों की शक्ति का जो गर्भनाल संबंध भारत से है उसी की वजह से भारत के प्रधानमंत्री का विदेशी दौरा अब भारत के शक्ति प्रदर्शन सा दिखता है। आजादी के बाद से अब तक का हासिल यह है कि इस जनसंख्या को सिर्फ एक खास भूगोल के जन की संख्या कह कर खारिज नहीं किया जा सकता है। दुनिया के चित्र पर भारत का जो मान बढ़ा है उसकी सबसे मजबूत वजह हैं भारत के 140 करोड़ लोग, जिन्हें विदेश की धरती से भारत का नेतृत्व संबोधित करता है। इसकी वजह विदेश में बसा वह देश है जो गूगल के दफ्तर से लेकर वाइट हाउस तक है।