
दलित-विमर्श, स्त्री-विमर्श, आदिवासी विमर्श, थर्ड जेंडर या किन्नर विमर्श जैसे अस्मितावादी विमर्शों ने साहित्य-जगत में ऐसा परिदृश्य उपस्थित कर दिया…
दलित-विमर्श, स्त्री-विमर्श, आदिवासी विमर्श, थर्ड जेंडर या किन्नर विमर्श जैसे अस्मितावादी विमर्शों ने साहित्य-जगत में ऐसा परिदृश्य उपस्थित कर दिया…
हिंदी साहित्य में दलित-विमर्श, स्त्री-विमर्श, आदिवासी-विमर्श, किन्नर-विमर्श (थर्ड जेंडर विमर्श) के बाद अब वृद्ध-विमर्श की भी धमक सुनाई देने लगी…
भारत में रचित साहित्य की एक खास विशिष्टता रही कि उसमें ‘अन्य’ को भी उतना ही महत्त्व दिया गया है,…
हिंदी आलोचना में गांधी प्रभाव से किनाराकशी की शुरुआत आचार्य रामचंद्र शुक्ल से ही हो गई थी, जिन्हें हिंदी आलोचना…
गांधी की सविनय अवज्ञा के दो स्तर या दो आयाम थे। प्रथम आयाम का संबंध व्यक्ति द्वारा अपनी आंतरिक बुराइयों…
जब उनके चहेते दिल्ली के संसद भवन से लेकर लाल किले तक आजादी का जश्न मना रहे थे, तब यह…
महावीर प्रसाद द्विवेदी को महज नैतिकतावादी, स्थूलता का पोषक बता कर उपहास उड़ाया जाने लगा, तो राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को…
मशीनीकरण के खतरनाक स्वरूप से ‘हिंद स्वराज’ में गांधी ने आगाह किया था- ‘‘यंत्रों से यूरोप उजड़ रहा है और…
हिंदी भारत की राष्ट्रीय पहचान की भाषा बन चुकी है और सूरीनाम, मॉरिशस, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में बसे भारतवंशी…
जिस ग्राम-स्वराज्य के रास्ते गांधी हिंद स्वराज्य का सपना साकार होते देखना चाहते थे उससे हमारे गांव कोसों दूर होते…
ऐसा नहीं कि हमें यंत्र वगैरह की खोज करना नहीं आता था। लेकिन हमारे पूर्वजों ने देखा कि लोग अगर…