अमिताभ स.

इस तरह के दृश्यों के पास होना इस लिहाज से खुशकिस्मती है कि आते-जाते तपती लू के थपेड़ों के बीच भी आंखों को सुकून मिलता रहता है। पेड़ों और फूलों का साथ वाकई कई तरह से शानदार और यादगार होता है। घनी आबादी वाली गलियों में घर हो और उसके पास पीपल का एक विशाल पेड़ हो और पड़ोस में नीम। इसका सुख ऐसी जगह पर रह कर ही महसूस किया जा सकता है।

पतझड़ के अलावा आए दिन हवाओं और आंधियों से पत्ते झड़-झड़ के छतों पर गिरना कुदरत का सान्निध्य देता है। ऐसे माहौल में गर्मी के मौसम की रात छत पर सोने का अनुभव जिनके पास हो, उनसे झर-झर हवा के झोंकों का आनंद पूछा जा सकता है। सुबह नीम से ताजा टहनी तोड़ कर दातून करने पर मुंह का तरोताजा होना। सावन के दौरान इनके तनों के सहारे पींगें डाल ली जाती थीं। हर शाम गली के सारे बच्चे पींगें झूलने खिंचे आते। झूले और पींगें पेड़ों की खूबसूरती को चार चांद लगा ही देते।

बचपन में स्कूल के प्राथमिक विभाग की इमारत के बीचोंबीच खासा-बड़ा छतरीनुमा गुलमोहर का पेड़ सजा था। अमूमन अप्रैल, मई, जून और कभी-कभी जुलाई में भी गाढ़े लाल-नारंगी रंग के फूलों की चादर ओढ़ लेता था। फूल झड़ते तो हरी-हरी बारीक पत्तियां जुड़-जुड़ कर बने झालरनुमा पत्ते छा जाते। रोज सुबह इसी की छांव तले प्रार्थना सभा आयोजित होती थी।

झर-झर गिरते हल्के-मुलायम फूल किसी के लिए भी एक दिलकश नजारे से कम नहीं था। किसी का मन ही नहीं करता था कि ऐसे नजारे को छोड़ कर कक्षा में जाए। आधी छुट्टी की घंटी बजती तो बच्चे अपना टिफिन लेकर फिर गुलमोहर तले चले जाते। बहती हवाएं स्वर्ग के झूले-सी प्रतीत होती थीं।

पता नहीं क्यों, लेकिन गुलमोहर को फ्रांसीसियों ने सबसे प्यारा नाम दिया है। उनकी भाषा में यह ‘स्वर्ग का फूल’ कहलाता है। अर्से बाद इस साल फिर आसपास के घरों के आंगन में गुलमोहर के पेड़ पर फूल खिले दिखे। किसी ने सही फरमाया है कि भविष्य सदा हरा होना चाहिए। हरा और हरियाली हैं ही खुशहाली के मिजाज।

रोजमर्रा के तनाव में भी सुकून से लबालब करने के लिए कुदरत ने पेड़ों-फूलों के रूप में आसपास हरे-भरे विविध रंग बिखेरे हैं। कौन नहीं जानता कि इंसान समेत सभी जीवों को पेड़ों से बेशुमार फायदे हैं। वे आबोहवा को साफ-स्वच्छ रखते हैं। आते-जाते छाया और शीतल हवा मुहैया कराते हैं। पशु- पक्षियों और कीट-पतंगों के खानपान के जनक और बसेरे बनते हैं।

भूमि को उपजाऊ बनाए रखते हैं। ध्वनि प्रदूषण घटाते हैं। बारिश के पानी के बहाव को रोकते हैं, जिससे भूजल या कहें भूतल जल सुचारु रूप से नियमन होता है। और सबसे ऊपर सुकून नवाजते हैं। नतीजतन मानसिक तनाव छूमंतर हो जाता है, जिसे रुपए-पैसे में नहीं नापा और खरीदा जा सकता।

इसे ऐसे समझा जा सकता है। किसी डाक्टर ने अस्पताल से छुट्टी देते वक्त अपने मरीज से कहा कि आपको दुरुस्त होने में 1,44,000 लीटर आक्सीजन की खपत हुई है। साथ ही खाने-पीने की हिदायत के साथ जोड़ा, ‘ …इसलिए घर जाकर कम से कम दस पेड़ जरूर उगाइए।’ हालांकि जीवन के लिए सभी किस्म के पेड़ फायदेमंद हैं, लेकिन पीपल के पेड़ की बात ही कुछ और है, क्योंकि विज्ञान बताता है कि पीपल के पेड़ सबसे ज्यादा कार्बन डाइआक्साइड सोखते हैं और बदले में सबसे ज्यादा आक्सीजन छोड़ते हैं।

इससे भी बड़ी खासियत है कि यह सिलसिला लगातार चौबीस घंटे जारी रखते हैं। और फिर पेड़ों से सबसे अधिक लाभ तो आक्सीजन के बड़े कुदरती स्रोत के चलते ही है। पीपल के बाद बरगद और फिर नीम के पेड़ क्रमवार सर्वाधिक कार्बन डाइआक्साइड ग्रहण करते हैं और सबसे ज्यादा आक्सीजन छोड़ते हैं। पीपल, नीम और बरगद एक जगह साथ-साथ हों तो त्रिवेणी कहलाती है। पीपल समेत कई पेड़ों को तीर्थ का दर्जा हासिल है।

चंडीगढ़ हो या श्रीनगर, हर शहर और हर बस्ती में एक से एक मशहूर बाग-बगीचे होते ही हैं। देश के प्रथम नागरिक के राष्ट्रपति भवन में सबसे खूबसूरत बाग ‘मुगल गार्डन’ इस साल से ‘अमृत उद्यान’ कहलाने लगा है, जबकि दिल्ली के सबसे पुराने बाग का नाम सदियों से नहीं बदला। बाग का नाम है- हयात बख्श, मतलब है जीवन देने वाला।

जगजाहिर है कि हरियाली के बीच बाग-बगीचों की सैर लंबी उम्र के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। इसी खयाल से प्रेरित नाम का मुगलिया बाग दिल्ली के लाल किले के अंदर है। इसकी बहार साल लाल किले के निर्माण के वक्त से है। हरे-भरे दरख्त-बूटों से घिरा और मुलायम घास के गलीचे पर झूले और पेड़ों के सहारे लटकती पींगें भारतीय बाग संस्कृति का हिस्सा रहे हैं।