दुनिया में लगभग सभी लोग अपनी आजीविका के लिए या नाम कमाने के लिए कुछ न कुछ काम करते हैं। मगर कुछ लोग ज्यादातर लोगों से बहुत आगे निकलकर अपने क्षेत्र में, कुछ अपने जिले या राज्य में और कुछ लोग इससे भी आगे बढ़कर देश और दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना लेते हैं। उनके पास नाम, शोहरत, पैसा, सुकून, सफलता- सब कुछ होता है। यह इसलिए कि ऐसे कुछ लोग उन ज्यादातर लोगों में से नहीं होते जो बेमन या मजबूरी से अपने काम करते हैं। ये उन चंद लोगों में से होते हैं जो अपने काम में पूरी तरह पूरी तन्मयता से डूबे रहते हैं, दिन-रात उल्लास और उमंग से मेहनत करते हैं और धैर्यपूर्वक अच्छे नतीजे का इंतजार करते हैं। ऐसे लोगों का जीवन मंत्र है- कर्म ही पूजा है।
आज के समय में ऐसे दर्जनों लोग दुनिया में हैं जो विश्वविख्यात हैं और सफलता के चरम पर हैं।

काम से किया प्यार और धैर्य बनाए रखा

हर कोई जानता है कि उनकी जिंदगी, काम और राह आसान कभी नहीं थे। उन्होंने अपने जीवन में अभूतपूर्व कठिन और जटिल परिस्थितियों का सामना किया है। हार-जीत और आशा-निराशा के भंवर से न जाने कितनी बार जूझे हैं। उनका जीवन भी किसी उड़नझूले जैसा रहा है। कई बार उन्होंने खुद को उल्लास, उमंग, प्रशंसा और सफलता के शिखर पर महसूस किया और कई बार ऐसा भी महसूस किया कि मानो सब कुछ समाप्त हो चुका है और आगे कुछ भी नहीं बचा। लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता या काम में मेरा मन नहीं लगता। ऐसा इसलिए कि उन्हें पता है कि सफलता कोई पेड़ पर लटका पका हुआ आम नहीं है, जो इनकी झोली में आ टपकेगा। उन्होंने अपने काम से जी भर कर प्यार किया, उसे ही अपना सब कुछ समझा और हमेशा धैर्य बनाए रखा।

आप वह करें, जिसे आप महान मानते हैं।

हाल ही अंतरिक्ष में करीब नौ महीने तक विषम परिस्थितियों में अटक कर लौटी सुनीता विलियम्स ने कहा कि अगर आप मन लगाएं, दृढ़ संकल्प रखें और कोई रास्ता खोजें तो आप जो करना चाहें कर सकते हैं। आप कभी खुद को किसी चीज में जकड़ा हुआ महसूस न करें। कुछ ऐसा खोजें जो आपको पसंद है। जैसे ही वह मिल जाए, आप उसे पूरे मन से अच्छी तरह करें, बस यही महत्त्वपूर्ण है। वास्तव में संतुष्ट होने का एकमात्र तरीका यही है कि आप वह करें, जिसे आप महान मानते हैं। महान काम करने का एकमात्र तरीका यही है कि आप जो करते हैं उसे प्यार करें।

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सफलता और सुकून सकारात्मकता से ही मिलते हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण वाले व्यक्ति अगर सफलता के शिखर पर हैं और समस्याओं का बेहतर तरीके से समाधान कर पाते हैं तो यह कोई जादू नहीं है, बल्कि सीधा सरल विज्ञान है। इसका संबंध हमारे मस्तिष्क की क्षमताओं और भावनात्मक बुद्धिमत्ता से है। अध्ययन बताते हैं कि सकारात्मक लोगों के मस्तिष्क का ‘वेंट्रल टैगमैंटल’ क्षेत्र अधिक सक्रिय होता है जो उन्हें आशावादी बनाता है। सकारात्मक लोगों के मस्तिष्क की तंत्रिकाएं उन्हें नए विचारों के लिए खुला बनाती हैं। हमारा सामाजिक व्यवहार कैसा होगा, इससे लेकर हम समस्याओं को कैसे सुलझाते हैं, यह सब ‘ब्रेन सर्किट’ से ही तय होता है।

अपने मस्तिष्क को सकारात्मकता के लिए अधिक सक्षम बनाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? इसके लिए निरंतर सकारात्मक दृष्टिकोण वाली भाषा का इस्तेमाल करना, चीजों के उजले पहलुओं को देखना और ऐसे सवाल पूछना जरूरी है जो किसी भी परिस्थिति में सर्वश्रेष्ठ हल खोज कर उन्हें बेहतर बनाने पर केंद्रित हों। किसी ने बिल्कुल सही कहा है, परिस्थिति से सोच नहीं बनती, बल्कि सोच से परिस्थिति बनती है। हमारा काम अक्सर चुनौतियों और समस्याओं से भरा होता है, लेकिन अंतत यही काम हमें खुशी देता है। लाखों लोगों के लिए उनका काम दुख का कारण है। कई लोगों के लिए काम पैसे कमाने का जरिया मात्र है। जरूरी नहीं कि हमारा काम अनोखा या असाधारण हो, लेकिन कोई भी काम जो जीवन में मूल्य जोड़ता है, वह महत्त्वपूर्ण है।

अपने काम को खुशी-खुशी करने के लिए इस जगत में उत्साह ही एक बेहतरीन प्रेरक, उमंग और तरंग को रखता है बरकरार

हावर्ड विश्वविद्यालय का एक अध्ययन बताता है कि सफलता में पंद्रह फीसद भूमिका तथ्यों की और पचासी फीसद भूमिका हमारी सोच और नजरिए की होती है। मगर हमारा पूरा ध्यान सिर्फ तथ्यों पर ही रहता है। ज्यादातर लोग अपने कार्य के प्रति नहीं, बल्कि अपने प्रति केंद्रित रहते हैं। नतीजतन, वे एक औसत जीवन जीते हैं। जिन लोगों ने इस दुनिया में शोहरत पाई है, उन्होंने अपने काम को जी जान से चाहा है। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान हो या अल्बर्ट आइंस्टीन, रतन टाटा हों या स्टीव जाब्स, हर कोई अपने काम को दीवानगी की हद तक चाहता रहा। यह मान कर चलना चाहिए कि हमारी प्रतिभा और हमारा जीवन कुदरत का अनमोल उपहार है। संपूर्णता और अच्छा नतीजा निरंतर कार्य, सक्रियता और समर्पण से आता है।

जब हम अपने काम से संतुष्ट या खुश नहीं होते तो चिड़चिड़ापन, उदासी और संशय हम पर हावी हो जाते हैं। हम अंतर्मुखी हो जाते हैं और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से डरने लगते हैं। हमें अपने डर का सामना करना चाहिए, तभी हम एक व्यक्ति के रूप में सफल हो पाते हैं। हमें अपनी प्राथमिकताओं की परख जरूर होनी चाहिए। अपने काम को मजेदार बनाने के लिए आप छोटे-छोटे बदलाव कर सकते हैं और काम में मनोरंजन खोज सकते हैं। सफलता का रास्ता असफलताओं से होकर ही जाता है, इसलिए असफल होने पर खुद को कोसना नहीं चाहिए। निराश होकर प्रयास कभी नहीं छोड़ना चाहिए। पूर्ण संकल्प, साहस और आत्मविश्वास से निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए।