शिखर चंद जैन
तमाम तरह की चिंताओं ने लोगों को घेर रखा है। कोई अपनी सेहत को लेकर परेशान रहता है, तो कोई काम-धंधे की मंदी या वेतन में कटौती से दुखी है। किसी को भविष्य की चिंता सता रही है तो कोई अपने मान-सम्मान के बारे में सोच कर मायूस महसूस कर रहा है। जाहिर है, ऐसे में हर कोई खुशी के पीछे भाग रहा है।
कई लोग सोचते हैं कि अमीर उद्योगपति या मोटा वेतन पाने वाले पेशेवर लोग खुश रहते हैं और गरीबी या आर्थिक विपन्नता ही खुशी से वंचित रहने की एकमात्र वजह है। लेकिन अगर धन से खुशी आती तो दुनिया में कई धनी लोग कुंठा और हताशा में जीवन नहीं जीते। खुशी पैसा नहीं, संतुष्टि का भाव है। यह पैसे से नहीं, हमारे प्रयासों से आती है और सबसे बड़ी बात है कि खुशी के पीछे भागने से खुशी नहीं मिलती। खुशी हमारे बिल्कुल आसपास होती है, जिसे हमें पहचानना और ग्रहण करना होता है।
ज्यादातर लोग खुशी हमेशा बाहर खोजते हैं, जबकि यह उसी परिवार में उपलब्ध होती है, जिसका हम अहम हिस्सा होते हैं। मुश्किल यह है कि आजकल परिवार की परिभाषा सिकुड़ गई है। हम सिर्फ पति-पत्नी और अपने बच्चों को ही परिवार मानने लगे हैं। जबकि भाई-बहन, देवर-देवरानी, जेठ-जेठानी, सास-ससुर, चाचा-मामा आदि सभी इस परिवार के सदस्य होते हैं।
जब हम अपने परिवार के सदस्यों की खुशी में सच्चे मन से शरीक होने लगते हैं और उनकी खुशी के लिए सक्रिय रहते हैं, तो खुशी खुद हमारे पास आती है। जब हम इस मानसिकता से व्यवहार करते हैं, तो परिवार के दूसरे सदस्य भी हमारे लिए ऐसा ही करते हैं। फिर खुशी न मिलने की कोई वजह नहीं हो सकती। इसलिए हम भले ही एक चारदीवारी में न रह कर अलग रहते हों, अलग खाना बनाते हैं, लेकिन मन से हम अपने संपूर्ण परिवार से जुड़े रह सकते हैं।
अमेरिका में मिशीगन स्टेट विश्वविद्यालय की ओर से किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि दोस्त हमें रिश्तेदारों से भी ज्यादा खुश कर सकते हैं। मनोविज्ञान के अध्ययनकर्ता विलियम चौपिक का कहना है कि मित्रों का चयन हम अपनी मर्जी से कर सकते हैं, जबकि परिवार के संबंध कई बार नकारात्मक भी हो सकते है। इस शोध में दो अध्ययनों का विश्लेषण किया गया है।
एक अध्ययन नब्बे देशों के पंद्रह से निन्यानबे वर्ष के तीन लाख लोगों पर किया गया। इसमें पाया गया कि दोस्ती को महत्त्व देने वाले लोग स्वस्थ और खुश रहते हैं। दूसरे अध्ययन में एक अमेरिकी सर्वे के आंकड़े थे, जिसमें पचास से ज्यादा उम्र के करीब साढ़े सात हजार लोगों से बातचीत की गई। इसमें निष्कर्ष आया कि लोगों का अच्छे दोस्तों की सोहबत में न सिर्फ मन प्रसन्न रहा, बल्कि तन भी काफी हद तक स्वस्थ रहा।
संबंधों के मामले में सलाह देने वाले पेशेवरों का भी यह मानना रहा है कि कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जिनको आप जरा-सा जतन से रखें और समुचित मान-सम्मान दें तो हमारी खुशी का सबब बन सकते हैं। अपने पास के रिश्तों या इसके तहत समधी, साला, साली-साढू, मामा-मामी, फूफा-बुआ आदि रिश्तों में सहयोग और सम्मान का भाव रिश्तों को न सिर्फ प्रगाढ़ बनाता है, बल्कि दुख सुख में एक बेहतरीन सहयोग का तंत्र भी बन सकता है।
इनका साथ मन को आंतरिक सुकून और शांति भी देता है। इसलिए समय-समय पर किसी त्योहार के बहाने या जन्मदिन के समारोह के बहाने इनसे मेलजोल बनाए रखना चाहिए और आने वाले रिश्तेदारों को समुचित सम्मान देना चाहिए। हां, कई बार कुछ रिश्तेदार ऐसे जरूर होते हैं, जिनसे मिलने के बाद खुशी के बजाय एक अलग तरह का बोझ ही महसूस होने लगता है। ऐसे रिश्तेदारों से दूर रहने की कोशिश की जा सकती है और खुशी को अहमियत देने वालों का साथ चुना जा सकता है।
इसके अलावा, बच्चों को भगवान का स्वरूप कहा गया है और इस धारणा का अपना आधार है। ऐसा शायद ही कोई होगा, जो बच्चों का साथ पाकर खुश न होता हो। अबोध बच्चों के साथ खेलना और खिलखिलाना मन को सुकून देता है। उनके साथ अगर कुछ पल के लिए भी बच्चा बन जाया जाए, तो देख सकते हैं कि थोड़ी देर बाद हमारे भीतर किस तरह का जीवन-प्रवाह ताजा हो जाता है।
ऐसा करके हम अपने बचपन में लौट सकते हैं और उन पलों में अपने आप को बेहद खुश रख सकते हैं। कई वैज्ञानिक शोधों में पता चला है कि बच्चों के साथ खेलना और उन्हें खेलने के लिए उत्साहित करना तनाव को दूर करने का काम करता है। उनके साथ कोई भी व्यक्ति चाहे तो तनाव के पलों में खुद को सुकून दे सकता और घंटों बेफिक्री में बिता सकता है।