आज वे इंग्लैंड की सरजमीं पर अपना पहला कदम रख रहे हैं। कभी यह उनके ख्वाबों का देश हुआ करता था। अपनी छोटी बेटी के घर कुछ दिन रहने आए हैं। पत्नी की दो साल पहले हृदयाघात से मृत्यु हो चुकी है। उनके पास संपत्ति के नाम पर ले-देकर दो कमरों का एक फ्लैट था जिसकी वसीयत उन्होंने दोनों बेटियों के नाम पहले ही कर दी। दोनों बेटियों ने उन्हें बखूबी संभाला है। इतने दिन से वे बड़ी बेटी के घर रहते-रहते ऊब गए थे। थोड़ा हवा-पानी बदल जाएगा यही सोच कर वह छोटी बेटी के पास चले आए। वैसे भी तान्या उन्हें कई बार इसरार कर बुला चुकी थी।
बचपन में वे इंग्लैंड में पढ़ाई के सपने देखा करते थे। सोचते थे, इंग्लैंड में पढ़ाई करेंगे तो वह बड़े आदमी बन जाएंगे। पिता की असमय मृत्यु और घर की जिम्मेदारियों ने उनका सपना कब हवा कर दिया उन्हें कुछ पता नहीं चला। ऐसा नहीं है कि उन्हें इंग्लैंड जाने का मौका नहीं मिला। लेकिन उनकी मां ने उन्हे अपनी ममता की बेड़ी पहना दी।
विदेशी रंग में रिश्तों की अहमियत
मां कहती रहती, ‘तू वहां जाकर अपने जीवन मूल्यों को दरकिनार करके उस विदेशी रंग में रंग जाएगा जहां पर रिश्तों की कोई अहमियत नहीं रहती।’ उन्होंने कभी इस बात का अफसोस भी नहीं किया। बस वे अपने कर्त्तव्य का पालन बिना शिकायत के करते रहे। उन्हें खुशी थी कि उन्होंने सारी जिम्मेदारियां समय पर पूरी कर दी हैं। अब तो उम्र की शाम हो गई है। यह भी सुख-शांति से निकल जाए तो मुक्ति मिले।
तान्या के घर आने में कुछ झिझक रहे थे। विदेश में रह रही इस बेटी के घर की अलग रवायत होगी। अलग खान-पान होगा, अलग पहनावा होगा। आखिर वे कैसे इस माहौल में खुद को ढाल पाएंगे। उन्होंने सारी जिंदगी सादा जीवन उच्च विचार का फलसफा ही रखा है। ऐसा नहीं है कि वह जमाने के साथ ना चले हों मगर फिर भी विदेशी धरती की बात अलग है।
बेटी और दामाद दोनों ही ऊंची तनख्वाह पर बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करते हैं। बच्चे स्कूल जाते हैं। उनके घर में एक स्त्री आती है जो घरेलू सहायिका के रूप में कार्य करती है। सुबह उठते ही जैसे ही उन्होंने अपने कमरे का दरवाजा खोला उनका मन आनंदित हो गया। सामने तान्या तुलसी पर जल चढ़ाते हुए भजन गुनगुना रही थी। अपने पापा को देखते ही उसने उनके चरण छुए और बोली, ‘पापा आपकी चाय और अखबार दोनों बालकनी में तैयार हैं।’
‘अखबार?’ उन्होंने आश्चर्यचकित होकर पूछा। ‘पापा! यहां हिंदुस्तानी अखबार आता है। मैं जानती हूं आपकी दिनचर्या अखबार के साथ शुरू होती है।’ ‘थैंक्यू तान्या’। उन्होंने बेटी के सिर पर ममता भरा हाथ रख दिया।
नाश्ते की टेबल पर भी सब साथ बैठे नाश्ता कर रहे थे। बच्चों को हिंदी में बात करते देखकर अविनाश जी को अचरज हो रहा था। बेटी दामाद एक-दूसरे का भरपूर ख्याल रख रहे हैं उन्हें देखकर खुशी हुई। रात को खाने पर सब इकठ्ठा हुए। एक-दूसरे के साथ दिनभर की गतिविधियों को साझा करते हुए आपस में हंस बोल रहे थे। वहीं उनसे भी बातें करते वे लोग पराये नहीं लग रहे थे। भोजन में भी वही दाल-चपाती, सब्जी, चावल और सलाद था।
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कोई भी असहज करने वाला खाना नहीं था। यह देखकर अविनाश जी बहुत खुश हुए। बेटी के घर में आकर भी ऐसा नहीं लगा कि वह बाहर विदेश में आए हैं। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वे बरसों से यहीं रह रहे हों। कहां तो वे एक महीने रहने की सोच कर आए थे अब तो उन्होंने यहीं पर रह जाने का फैसला कर लिया।
एक दिन शाम को चाय का कप लेकर बालकनी में बैठे थे तभी तान्या आ गई। ‘पापा इस वीकेंड हम लोग पिकनिक पर जाएंगे आप भी चलना। यहां पास में श्रीकृष्ण भगवान का मंदिर है। वहां से दर्शन करते हुए घर आ जाएंगे।’ ‘ठीक है बेटा।’ कुछ देर ठहर कर फिर बोले, ‘एक सवाल पूछूं तुमसे।’ तान्या उनके पास आ बैठी। ‘पापा, आपको कब से मुझसे कुछ पूछने के लिए इजाजत लेने की जरूरत पड़ गई, आप मेरे पापा हैं, आपको हक है जो भी पूछना हो बेझिझक पूछिए।’
‘जब से मैं यहां आया हूं एक बार भी नहीं लगा मैं दूर कहीं धरती के दूसरे छोर पर हूं। तुमने मुझे बिल्कुल अपने घर जैसा ही एहसास करवाया है। मैं खुश हूं बेटा लेकिन पराये देश में खुद को तटस्थ कैसे रखा?’ कई दिन से चल रही मन की बात उन्होंने आज तान्या के सामने रख दी।
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‘पापा! आपने जो सिखाया मैं वही कर रही हूं। आपने कहा था न कि जमाने के साथ चलते हुए अपनी परंपराओं को साथ निभाना एक कला है। अपने को नहीं खोते हुए जो आगे बढ़ जाए वही सफल है। बस पापा खुद को खोया नहीं। आपको अपने मूल्य और संस्कार कितनी दूर तक लेकर चलना है, यह आप पर निर्भर करता है। कोई भी विदेशी संस्कृति यह कभी नहीं कहती, अपने देश का सब छोड़ दो। इंसान को पानी की तरह होना चाहिए।
कोई भी रंग मिलने के बाद वह अपना मूल स्वभाव नहीं छोड़ता। वैसे ही मैं अपनी बुनियादी पहचान के साथ विदेशी रंग में रंग कर भी अपना अस्तित्व, अपने रिश्ते और अपनी संस्कृति को जी रही हूं। मुझे अपने तरीके से जीने में यहां किसी तरह की अड़चन नहीं है।
शुरू में बड़ी बेटी के घर को पाश्चात्य रंग में रंगे हुए देखकर उन्हें बड़ा अफसोस हुआ था। पर, आज तान्या उन्हें ऐसे समझा रही थी जैसे वे बचपन में उसे समझाते थे। तान्या वैश्विक परिदृश्यों को समझ कर अपना रास्ता चुनने वाली आत्मविश्वासी लड़की है। अपनी मां की चिंताओं को याद कर अविनाश जी मुस्कुरा रहे थे। आज इंग्लैंड में वे रिश्तों की अहमियत समझ रहे थे।