हमारे दिखावापसंद समाज में आजकल सरल होना सबसे कठिन काम हो गया है। लोग दिखावे के लिए अनाप-शनाप खर्च करते हैं, अनावश्यक फैशन करते और फिर उसका सोशल मीडिया पर प्रदर्शन करते हैं। खुद को सुर्खियों में रखने के लिए लोग ऊटपटांग हरकतों से भी बाज नहीं आते। हमारी आत्मुमग्धता सिर चढ़ कर बोलने लगी है। कुछ समय पहले तक कोई भी व्यक्ति अपनी छोटी-मोटी उपलब्धियों का बखान खुद नहीं करता था।

कोई बड़ा सम्मान या उपलब्धि हासिल होती और लोग प्रशंसा करते तो भी सम्मानित व्यक्ति बड़े संकोच से लोगों का धन्यवाद करता था। आजकल हम अपनी जिंदगी की छोटी से छोटी बात या उपलब्धियों को इतराकर और बढ़ा-चढ़ाकर सोशल मीडिया पर तुरंत प्रचारित करते चले जाते हैं। हमने अपनी निजी जिंदगी में शायद ही कुछ ऐसा छोड़ा हो, जो हमारा निजी रह गया हो।

कमियां छिपाने के बजाय उन्हें दुरुस्त करने पर होना चाहिए जोर

इस मामले में जापानी सिद्धांत किंत्सुगी अपनी सहजता या कमियां छिपाने के बजाय, उन्हें दुरुस्त करने पर जोर देता है। इसमें बताया गया है कि हमारी खामियां ही हमें सुंदर और मूल्यवान बनाती हैं। सच्चाई ही ज्यादा प्रामाणिक और वास्तविक होती है। सरल होने का मतलब असफल या पिछड़ा हुआ होना बिल्कुल नहीं होता। बल्कि बिना मकसद के दिखावा करना, निरर्थक खर्च करना, अपनी बेहतरी के बजाय दूसरों को प्रभावित करने के लिए श्रम, संसाधन और समय की बर्बादी करना बेवकूफी या नासमझी अवश्य है। सामान्य होना नहीं, बल्कि असामान्य होना समस्यामूलक या गलत हो सकता है।

लक्ष्य के प्रति गंभीर रहने के लिए रखनी चाहिए निरंतरता, जीवन के लिए नियमित होना जरूरी

दुनिया के कई महान राजनेता, खिलाड़ी, कलाकार, समाजसेवी और वैज्ञानिक सामान्य जीवन शैली का पालन करते हुए भी असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी और दुनिया में करोड़ों लोगों के चहेते बने हैं। इसकी वजह यह है कि उनके जीवन का मकसद दूसरों को प्रभावित करना नहीं, बल्कि उन्हें उनके लिए कुछ प्रभावशाली करना और लाभ पहुंचाना था। वे अपने सिद्धांतों और लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहे। उनका मकसद अपने सिद्धांत और लक्ष्य प्राप्त करना रहा। जीवन के जापानी फलसफे वाबी साबी में कहा गया है कि आप जो करते हैं, उसमें खूबसूरती ढूंढ़ें, भले ही इनमें कुछ कमियां हों। आपको कुदरत से सीखना चाहिए, जिसमें कमियों के बावजूद ढेर सारी खूबसूरती मौजूद है।

महंगे कपड़े, गाड़ी और मकान से करते हैं लोगों की पहचान

कई बार सोशल मीडिया पर लोगों को अत्यधिक सक्रिय, सफल और प्रशंसित होता देख हमें ईर्ष्या का अनुभव होता है और हम बेवजह एक ऐसी प्रतियोगिता में उलझ जाते हैं, जिसकी न कोई जरूरत होती है और न ही कोई मकसद। हम महंगे कपड़े पहनकर, धनी इलाके में मकान खरीद कर या करोड़ों की संपत्ति के स्वामी बनाकर असाधारण नहीं बन सकते, बल्कि किसी भूखे को रोटी खिलाकर, गरीब बच्चों की शिक्षा का प्रबंध करके, अकाल या बाढ़ से पीड़ित लोगों को राहत पहुंचा कर असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी अवश्य बन सकते हैं।

जब जीवन का सच्चा सुख हमारे भीतर है, तो हम क्यों भटक रहे हैं मन की गलियों में?

हमारी सफलता सोशल मीडिया मंच पर सुर्खियों में रहने में नहीं, बल्कि अपने माता-पिता को सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने का मौका देने, अपनी संतान को पथभ्रष्ट होने से बचाने और समाज-परिवार के प्रति अपने दायित्व पूरे करने में है। इस संबंध में इकीगाई नामक जापानी विचार कहता है कि हमें एक अर्थपूर्ण और तृप्ति देने वाला जीवन जीना चाहिए। हम वही करें जो हमें अच्छा लगता है और जिसकी इस दुनिया को वास्तव में जरूरत है। साथ ही, जो हमारे लिए अर्थपूर्ण, उपयोगी और फायदेमंद भी हो।

सोशल मीडिया पर हमें कितने लोग पसंद करते हैं ये नहीं रखता मायने

हमारी पहचान जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर निर्भर करती है। हर व्यक्ति की अपनी कई तरह की पहचान और विभिन्न व्यक्तित्व होते हैं। उन्हें धार देना, गढ़ना और प्रभावशाली बनाना जरूरी है। हमारी पहचान सामाजिक, पेशेवर, बौद्धिक, भावनात्मक और शारीरिक पहलुओं की एक कड़ी होती है। यह एक पेशेवर, कारोबारी, मित्र, रिश्तेदार या संबंधी आदि के रूप में होती है। अपनी हर पहचान को प्रभावशाली बनाना ही सफलता का द्योतक है। हमें अपने सामाजिक, पेशेवर, पारिवारिक दायरे के लोग महत्त्वपूर्ण, सहायक, उपयोगी, मिलनसार और विश्वसनीय मानते हों तो यह किसी भव्य भवन में रहने, महंगी कार में घूमने और ब्रांडेड कपड़े पहनने से ज्यादा अच्छा माना जाएगा। सोशल मीडिया पर हमें कितने लोग पसंद करते हैं, यह मायने नहीं रखता। मायने यह रखता है कि विकट परिस्थिति में हमारी बीमारी में या हमारे निमंत्रण पर हमारे घर कितने लोग आते हैं और हमारी मदद के लिए तत्पर रहते हैं। सामाजिक समूह हों या व्यक्तिगत रिश्ते या फिर हमारा कुदरती माहौल हो, हमारी सार्थकता और सफलता इनके साथ मेलजोल रखने में ही है।

जीवन की डगर कठिनाइयों से भरी, कोई मानसिक तो कोई शारीरिक तौर पर परेशान

हम सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा प्रशंसा पाने के लिए अपनी झूठी छवि गढ़ रहे हैं। इसके लिए हम अपनी असली जिंदगी और जरूरी कामों से समझौता करने लगे हैं। आंकड़े बताते हैं कि इस वक्त दुनिया में अस्सी करोड़ लोग सोशल मंचों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसकी वजह से नई पीढ़ी की कार्य क्षमता और कार्य कुशलता पर विपरीत असर पड़ रहा है। हम आभासी दुनिया के फरेब में फंस जाते हैं और अपने वास्तविक लक्ष्य और जीवन के मकसद को भूल जाते हैं। हम सतही चमक दमक में व्यस्त और मस्त होकर अपने आप को ही भूलने लगते हैं। इसका अंत अक्सर अवसाद, तनाव, उदासी और चिड़चिड़ापन के रूप में और हर मोर्चे पर असफलता और कभी-कभी आत्महत्या में होता है।

लोगों पर प्रभाव जमाना है तो समानुभूति का गुण सीखना चाहिए। इसमें हम खुद को दूसरों के स्थान पर रखकर सोचते हैं कि मैं इस व्यक्ति के लिए अब क्या कर सकता हूं… यह व्यक्ति क्या महसूस कर रहा है… इस व्यक्ति को अब किस प्रकार की परेशानी या समस्या हो रही है..!