आज के दौर में हर कोई परेशान ही दिखता है। हर व्यक्ति को यही लगता है कि दुनिया भर की समस्याओं ने उसे जकड़ा हुआ है। वही सारी समस्याओं से घिरा हुआ है। दूसरे सभी मस्त हैं, प्रसन्न हैं। मगर सच यह है कि ऐसा नहीं है। हरेक की अपनी समस्याएं हैं, अपनी परेशानियां हैं, कठिनाइयां हैं। इनके स्वरूप भिन्न हो सकते हैं। कोई मानसिक तौर पर तो कोई शारीरिक तौर पर और इन दोनों ही स्थितियों में वह बीमारियों से घिरता चला जाता है। वे बीमारियां शारीरिक हो सकती हैं या फिर मानसिक।

व्यक्ति परेशानियों के मूल कारणों को जानना और समझना नहीं चाहता। बस वह उन परेशानियों के परिणामों के अनुमान लगाकर और ज्यादा परेशान हो उठता है। यह मान लिया जा सकता है कि हर व्यक्ति के जीवन में परेशानियों, कठिनाइयों और समस्याओं का अंबार लगा हुआ है, लेकिन क्या इनसे कोई अछूता रह पाया है! इसका उत्तर ‘नहीं’ है। तब हम क्यों इन बातों को लेकर और ज्यादा परेशान हो जाते हैं!

जीवन की समस्याएं लोगों को करती रहती है परेशान

इस बात पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए कि जो भी संकट हैं, उन पर सोच-विचार करने और चिंतित होने मात्र से ही वे क्या दूर हो जाएंगे या वे और अधिक चिंता बढ़ा देंगे! जहां चिंताएं बढ़ेंगी, वहां समस्याएं और विकराल रूप धारण करती चली जाएंगी। अगर उसी समस्या से घिरे रहेंगे और मन को अशांत कर बैठेंगे तो हो सकता है कि और बड़ी समस्याएं उत्पन्न होकर मुंह बाए खड़ी मिलेंगी। नतीजा दुख, असंतोष, अशांति के रूप में सामने आएगा। अगर उन समस्याओं के बोझ तले हम दबते चले जाएंगे, तो वे और ज्यादा दबाती चली जाएंगी।

अनुमान लगाते रहना हमारी आदतों में शुमार, अंदाजा लगाकर किए गए काम में आ जाती है समस्या

जीवन में समस्याएं बनी रहती हैं, जो व्यक्ति को परेशान करती रहती हैं, लेकिन यह भी उतना ही सही है कि व्यक्ति एक समस्या से निजात पाता है, तो दूसरे ही पल दूसरी समस्या उसके सामने मुंह बाए खड़ी मिलती है। संसार में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जो हर तरह की समस्या से मुक्त हो। कुछ लोग समस्याओं का हंसते-हंसते सामना कर लेते हैं तो कुछ लोग समस्याओं का रोना लेकर बैठ जाते हैं और इसके साथ ही नित नई उत्पन्न समस्याओं के साथ जीवन भर के कष्ट आमंत्रित कर लेते हैं। जीवन को स्वर्ग या नर्क बनाना व्यक्ति के स्वयं के हाथ में रहता है।

आपदा पर मनुष्य का कोई वश नहीं

जीवन में आने वाली परेशानियां दुख का कारण बनती हैं। माना कि जीवन की डगर कठिनाइयों से भरी हुई है, लेकिन इन कठिनाइयों का सामना करने के बजाय हम हार मानकर बैठ जाएं और परेशान हो जाएं और सोच लें कि जीवन समस्याओं का घर है, तब तो जीना ही मुश्किल हो जाएगा। जीवन चक्र में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कभी दुख है तो कभी सुख। कई बार दोनों समांतर चलते हैं, लेकिन हम दुखों से घबरा उठते हैं और इस स्थिति में समांतर रूप से मिल रहे सुख को या तो पहचान नहीं पाते या उसे अनुभूत नहीं कर पाते हैं। ऐसे में सुख कहीं खो जाता है और दुख पूरी तरह से हावी हो जाता है। यही दुख हमें जीवन के कठिन समय को बार-बार दोहराने पर मजबूर करता है। तब लगता है कि हमारा जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ है। सर्वत्र परेशानियां ही परेशानियां हैं, समस्याओं के पहाड़ खड़े हैं, जिनको पार करना मुश्किल है।

पाप और पुण्य कर्म की समझ खुद ही आती है नजर, प्रतिफल की आस रखना मानवीय क्रिया

यह बात सही है कि जब जिंदगी की गाड़ी ठीक-ठाक चल रही होती है, उस समय कोई बड़ा अप्रत्याशित संकट उठ खड़ा होता है, तब व्यक्ति को संभलने में समय लगता है। ऐसे समय लगने वाले घात-प्रतिघात व्यक्ति को संभलने का मौका नहीं देते, लेकिन फिर भी यह मानते हुए कि जीवन संघर्ष का नाम है, पूरे जीवट के साथ साहसपूर्वक मुसीबतों का सामना करना चाहिए, न कि हताशा के भंवर में डूब कर हथियार डाल देना चाहिए। यह भी समझना चाहिए कि कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं, जिन पर इंसान का अपना वश नहीं रहता। मसलन, प्राकृतिक आपदा पर हमारा कोई वश नहीं है। उसका सामना करना और उससे बचने की कोशिश करना ही एकमात्र रास्ता होता है।

अपने प्रयत्नों में कहीं कोई कमी नहीं आने देना चाहिए

यह भी सच है कि ‘आ बैल मुझे मार’ की तर्ज पर कुछ परेशानियों को तो हम स्वयं आमंत्रित करते हैं। इसके बाद जब हम शिकायत करते हैं, तब लगता है कि परेशानियां जैसे स्वयं कह रही हों कि बंदे, मैं तुझे पीले चावल देकर निमंत्रण देने तो नहीं आई थी… तूने खुद मुझे बुलाया है तो भुगत! एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है। चौराहा पार करना है और लाल बत्ती सामने हो, लेकिन फिर भी ‘जेब्रा लाइन’ पार कर निकल गए और जब यातायात पुलिसकर्मी ने पकड़ लिया तो उसके द्वारा परेशान करने का आरोप लगाया जाता है। इस परेशानी को लेकर तनाव उभर जाता है। इसी तरह की अन्य अनेक बातें हैं, जिन्हें हम टाल सकते हैं और अवांछित समस्याओं से दूर रह सकते हैं।

लक्ष्य के प्रति गंभीर रहने के लिए रखनी चाहिए निरंतरता, जीवन के लिए नियमित होना जरूरी

हम अगर जीवन में सुखी रहना चाहते हैं तो जो जिस रूप में मिल रहा है, उसे उस रूप में स्वीकार करना चाहिए। अपने प्रयत्नों में कहीं कोई कमी नहीं आने देना चाहिए। साथ ही जो नकारात्मक घटित हो, उसे समस्या रूप में मानकर परेशान न होते हुए जीवन चक्र का एक भाग मान कर आगे बढ़ जाना चाहिए। हो सकता है जीवन में आने वाली समस्याएं, कठिनाइयां, परेशानियां हमारे लिए सबक हों, एक अच्छे और सफल जीवन की राह पर बढ़ने के लिए! निश्चित रूप से हमें इनसे मिलने वाली असफलताओं से निराश न होते हुए इनके नतीजों से सबक लेते हुए और बेहतर करने का प्रयास करना चाहिए।