इसमें कोई दोराय नहीं कि एक सामाजिक प्राणी के रूप में मनुष्य ने अपनी भिन्न भाव-स्थितियों के बीच खुश होने और हंसने के मौके भी खोजे हैं। यह बिल्कुल स्वाभाविक और सहज है। मगर आजकल हास्य की खोज के क्रम में जिस तरह के तौर-तरीके आजमाए जा रहे हैं, कई बार उनका अंजाम या असर इस तरह होता है कि वह सवालों के घेरे में आता या फिर उस पर विचार करना जरूरी हो जाता है। खुश होना या हंसना-खेलना किसे अच्छा नहीं लगेगा, लेकिन सोचने की बात यह है कि हास्य की यह कैसी चाहत है जो दूसरों को आहत करके पैदा किया जाए। लोकप्रियता की वह कौन-सी मंजिल है जो दूसरों को नीचा दिखा कर प्राप्त की जाए।

दरअसल, हाल के वर्षों में इंटरनेट की दुनिया में एक शब्द काफी प्रचलित हुआ है ‘प्रैंक’। यह शब्द पहली नजर में मासूम और मनोरंजनपूर्ण लगता है। इसका मतलब माना जाता है खेल-खेल में किया गया मजाक। इसमें ऐसा करने वाले को ही पता होता है कि यह मजाक है, जबकि जिसके साथ किया जाता है, उसे पहले कुछ नहीं पता होता। आजकल इससे संबंधित एक से बढ़ कर एक मनोरंजक वीडियो देखे जा सकते हैं। इनमें आमतौर पर हल्के-फुल्के मजाक और इसी स्तर की शरारतें होती हैं, जिन्हें देखने वाले लोग अपनी हंसी नहीं रोक पाते। मगर सच यह है कि ‘प्रैंक’ की खूबसूरती तभी तक बनी रहती है, जब तक यह शालीनता और नैतिकता की सीमाओं के भीतर हो और इसमें आमतौर पर सभी पक्षों की सहमति शामिल हो। समस्या तब शुरू होती है, जब इस निर्दोष से लगने वाले शब्द का दुरुपयोग होने लगता है।

‘प्रैंक’ के नाम पर महिलाओं को बेवजह दिखा जाता है डराया

आज के समय में सोशल मीडिया और डिजिटल मंचों पर इस तरह के वीडियो का अंबार है, जिनका मुख्य उद्देश्य सिर्फ दर्शकों को हंसाना नहीं, बल्कि सनसनीखेज सामग्री के माध्यम से लोकप्रियता और ज्यादा से ज्यादा दर्शकों की संख्या हासिल करना है। अफसोस की बात है कि अब ‘प्रैंक’ के नाम पर कई वीडियो में ऐसी हरकतों को शामिल किया जाने लगा है जो अश्लीलता और यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आती हैं। खासतौर पर महिलाओं को लक्षित करने वाले ऐसे वीडियो न केवल उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाते हैं, बल्कि समाज में महिलाओं की स्थिति को भी कमजोर करते हैं। सीधे-सरल हास्य और महिला-अस्मिता पर कीचड़ उछालने वाले इस वाहियात उपहास के बीच जो अंतर है, उसे समझा और रेखांकित किया जाना जरूरी है।

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यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया मंचों पर ऐसे अनेक वीडियो मिलते हैं, जिनमें ‘प्रैंक’ के नाम पर महिलाओं को बेवजह डराया जाता है, उनका पीछा किया जाता है, उन्हें अपमानित किया जाता है या उनकी सहमति के बिना उन्हें छुआ जाता है। ये वीडियो आमतौर पर इस तरह के रूप लेते हैं, जिनमें अभद्र स्पर्श या राह चलती महिलाओं को अचानक छूने या चपत मारने जैसी हरकत की जाती है। इसी क्रम में महिलाओं के शरीर पर अश्लील टिप्पणियां की जाती है या फिर महिलाओं को केवल पैसों के लिए लालची दिखाने की कोशिश की जाती है। इसके अलावा, सबसे दुखद यह है कि महिलाओं से अनुचित शारीरिक संपर्क करते हुए उसे ‘प्रैंक’ बताकर सामान्य दिखाया जाता है, जबकि यह यौन उत्पीड़न के समांतर है।

मजाक का उद्देश्य होना चाहिए मनोरंजन

किसी भी रूप में हास्य का उद्देश्य विशुद्ध रूप से स्वस्थ मनोरंजन करना, हंसी बांटना और सही संदेश देना होना चाहिए। ऐसे कुछ ‘प्रैंक’ वीडियो में देखने को मिलता है कि जिस महिला के साथ मजाक किया गया, अंत में वह मुस्कराती हुई दिखाई देती है। इसे ऐसे वीडियो बनाने वाले सकारात्मकता के रूप में लेते हैं। वे यह दिखाते हैं कि पीड़ित कोई नहीं है। पर सच यह है कि इस तरह का ‘प्रैंक’ जिस महिला के साथ बनाया जाता है, उसकी मुस्कान अक्सर खिसियानी होती है या सोशल मीडिया पर अपनी पहचान उजागर होने के डर से मजबूरी में होती है। हालांकि कुछ मामलों में ऐसा भी देखने में आता है कि महिलाएं ऐसे वीडियो में सहमति से भाग लेती हैं। शायद ऐसा खेल-खेल में या ज्यादा दर्शकों की तलाश में किया जाता है, लेकिन यह अनुचित है।

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जागरूक महिलाओं ने इस तरह के सस्ते मखौल-खेल के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है। वे अब अपने साथ छल से बनाए गए वीडियो की शिकायत लेकर महिला आयोग और पुलिस के पास पहुंचने लगी हैं। उनकी शिकायतों पर कार्रवाई कर दोषियों को दंड भी दिया गया है, ताकि दूसरों को सबक मिले। भारतीय कानून में महिलाओं की सुरक्षा के लिए स्पष्ट प्रावधान हैं। अगर कोई महिला आपत्तिजनक ‘प्रैंक’ की शिकार होती है, तो वह कई कानूनी धाराओं का सहारा ले सकती है। मसलन, अश्लीलता से निपटने, इंटरनेट पर आपत्तिजनक सामग्री प्रसारित करने, महिलाओं के खिलाफ अभद्रता के मामले, पीड़िता की पहचान छिपाने आदि से संबंधित कानूनी प्रावधान हैं। वीडियो में किसी भी महिला की पहचान उजागर करना कानूनन अपराध है।

मनोरंजन के नाम पर महिलाओं के अधिकारों और सम्मान से नहीं होना चाहिए खिलवाड़

यह जरूरी है कि हास्य से संबंधित सामग्री तैयार करने वाले स्वस्थ और सम्मानजनक मनोरंजन की ओर लौटें। मनोरंजन के नाम पर महिलाओं के अधिकारों और सम्मान से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। ‘प्रैंक्स’ की अनुचित चेष्टाओं की तरफ ध्यान दिया जाना जरूरी है। यह भी आवश्यक है कि महिलाएं इन घटनाओं की अनदेखी न करें। उन्हें उचित कार्रवाई के लिए कदम उठाने चाहिए। साथ ही, हास्य या मनोरंजन के लिए वीडियो तैयार करने वालों को यह समझना चाहिए कि उनका काम केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज पर प्रभाव डालना भी है। यही वह रास्ता है, जिससे मनोरंजन के जरिए खुशी की तलाश अपने असली अर्थ और उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है।