आमतौर पर कोई भी अमूल्य कोष किसी न किसी ताले में संरक्षित रहता है। अब स्पष्ट-सी बात है कि अगर उस अमूल्य कोष को प्राप्त करना है, तो उस ताले को, जो कोष की सुरक्षा कर रहा है, खोलना पड़ेगा। ताला और कुंजी का तो मानो जन्म-जन्मांतर का साथ है। बिना ताले के कुंजी के अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं और बिना कुंजी के ताला भी पूरी तरह अर्थहीन और महत्त्वहीन है। ज्ञान भी एक ऐसा अनमोल खजाना है। उस तक पहुंचने के लिए हमें जिज्ञासा रूपी कुंजी का सहारा लेना पड़ता है।

जिज्ञासा का आशय है- किसी भी विषय को समझने और जानने के प्रति तीव्र इच्छा, उत्कंठा और ललक का होना, बल्कि सच कहा जाए तो यह तीव्र इच्छाशक्ति या ललक ही हमें संबंधित विषय पर पूरी तरह केंद्रित रहने के लिए अभिप्रेरित करती है। ऐसा करने के बाद ही हमें वह मार्ग उपलब्ध हो पाता है, जो विषय की गहराइयों तक उतरने में सहायता करता है।

अंतर्मन में जन्म लेने वाली एक प्रवृत्ति या भाव है जिज्ञासा

कल्पना करें कि हमारे सामने कोई गूढ़ विषय, उपविषय या रहस्य उपस्थित है, तब ऐसी दशा में अगर उसके प्रति हमारा अंतर्मन जिज्ञासा के मापक पर द्रुत गति से क्रियाशील है, तो निस्संदेह हम कभी न कभी उस विषय के महाज्ञानी और महारथी बनने में सफल हो जाएंगे। वहीं अगर हमारा अंतर्मन जिज्ञासा की कसौटी पर निष्क्रियता का परिचय देते हुए संबंधित विषय के प्रति उदासीन रहता है, तो निश्चित रूप से उस विषय और हमारे बीच अज्ञानता और अनभिज्ञता की एक दीवार खड़ी होगी। यह हमारे लिए कहीं न कहीं नुकसानदायक सिद्ध होगा। जिज्ञासा दरअसल, अंतर्मन में जन्म लेने वाली एक प्रवृत्ति या भाव है, जिसे अगर समुचित वैचारिक परिवेश और पोषण प्राप्त हो जाए, तो यह अभिप्रेरणा का महाप्रस्फुटन उत्पन्न करती है। इस घटना के साथ ही हम कठिन परिश्रम की नौका पर सवार होकर ज्ञान की सरिता में उतर जाते हैं और एक ऐसी यात्रा की शुरूआत करते हैं, जो हमें परिणाम के रूप में बहुत कुछ भेंट करती है।

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जिज्ञासा उस द्वार या ताले की कुंजी है, जिसके खुलते ही मूढ़ता और अज्ञानता हमसे कोसों दूर चले जाते हैं। ज्ञान के अद्भुत आलोक में प्रकाशित होने का एकमात्र मूलमंत्र जिज्ञासा है। महान दार्शनिक अरस्तू का कथन है, ‘मनुष्य स्वभाव से ही जिज्ञासु होता है।’ संभवत: यही कारण है कि ज्ञानार्जन को लेकर मनुष्य और अन्य किसी भी जीव में एक बहुत बड़ा अंतर विद्यमान है। जिज्ञासा न केवल नवीन अनुभव प्रदान करती है, बल्कि पूर्व में अर्जित किए गए अनुभवों को नवीनता और मजबूती का आवरण भी देती है। जन्म, मृत्यु, जीवन, शिक्षा, अनुसंधान, चर्चा, परिचर्चा, उद्योग, व्यवसाय आदि प्रत्येक की सफलता का मूल जिज्ञासा में ही निहित है। जीवन का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जो जिज्ञासा के महत्त्व से परे हो। जिज्ञासा मन-मस्तिष्क में रचनात्मकता और सृजनात्मकता के अंकुर को प्रस्फुटित कराती है। नतीजतन, हम नवीनता की ओर उन्मुख होते जाते हैं और आखिरकार एक महान लक्ष्य हमें अमूल्य उपलब्धि के रूप में प्राप्त होता है।

आत्मबोध का सर्वोत्तम साधन जिज्ञासा ही है

तर्कयुक्त विचारशीलता और विश्लेषण क्षमता के विकास के लिए अंतर्मन में जिज्ञासा का होना नितांत आवश्यक है। इतिहास इस बात का प्रमाण है कि विज्ञान के सभी सिद्धांतों के उद्भव के मूल में अनुसंधानकर्ता की जिज्ञासा ही निहित थी। कठिन से कठिन समस्या जिज्ञासा का सहारा लेकर हल की जा सकती है। जिज्ञासा के आधार पर किसी विषय को समझ कर उस पर मंथन करने से हमारे भीतर उस विषय के प्रति एक अटूट आत्मविश्वास जागृत हो जाता है। परिणामस्वरूप वह विषय हमारे लिए किसी भी प्रकार की कठिनाई से रहित हो जाता है।

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आत्मबोध का सर्वोत्तम साधन जिज्ञासा ही है। आत्मज्ञान के लिए हम मनन और मंथन की जिस नौका पर सवार होते हैं, उसकी पतवार जिज्ञासा होती है। यह हमारे जीवन को एक ऐसी दिशा से परिचित कराती है जिस ओर गति करके हम बड़े-बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने में समर्थ हो जाते हैं। एक विशेष बात यह है कि जिज्ञासा का उम्र के साथ कोई रिश्ता नहीं होता। यह एक बच्चे के अंदर भी विद्यमान होती है और एक वृद्ध के अंदर भी। जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक चरण में किसी न किसी प्रश्न के प्रति जिज्ञासा हमारे अंतर्मन रूपी आकाश में द्युति की तरह कौंधती रहती है। मानव सभ्यता अगर विकास के विविध चरणों से गुजरती हुई आज प्रगति के शिखर की ओर उन्मुख है, तो इसके पीछे जिज्ञासा की कुंजी ही उत्तरदायी है।

सकारात्मकता और सक्रियता का ताला भी खोलती है जिज्ञासा की कुंजी

जिज्ञासा की कुंजी सकारात्मकता और सक्रियता का ताला भी खोलती है। यह कहा जा सकता है कि जिज्ञासा एक ऐसा भाव है, जो हमारे मन मस्तिष्क एवं संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास के लिए परम आवश्यक है। प्रश्न यह उठता है कि आखिरकार इस कुंजी को कैसे प्राप्त किया जाए। क्या यह प्रकृति प्रदत्त है या किसी न किसी प्रकार से इसको अपने अंदर जागृत किया जा सकता है।

सफलता के शिखर पर पहुंचने के लिए मेहनत, धैर्य और समर्पण की होती है आवश्यकता

निस्संदेह प्रत्येक गुण या भाव मूल रूप से प्रकृति प्रदत्त ही होता है, लेकिन कतिपय प्रयत्नों के माध्यम से हम अपने अंतस में उस भाव को प्रस्फुटित होने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी भी वस्तु या प्रश्न के प्रति एकाग्रता का भाव जगा लेने पर उसके प्रति जिज्ञासा की मात्रा में स्वत: वृद्धि होती जाती है। विषय को धैर्यपूर्वक आत्मसात करने की प्रवृत्ति भी जिज्ञासा के अंकुर को फूटने में सहायता करती है, और आखिर जिज्ञासा ही हमारे मानसिक स्तर और व्यक्तित्व को श्रेष्ठता के उच्चतम स्तर तक पहुंचाने का कार्य करती है।