मानव मस्तिष्क में एक ओर संवेदनाओं की विभिन्न धाराएं प्रवाहित होती रहती हैं, जबकि उसके मन में व्यवहार की भी अलग तरंगें सदा सृजित होती हैं। व्यवहार के ये प्रवाह चेतन और अचेतन मन की ग्रंथियों की संवाहक होकर हम सभी के दैनिक जीवन के विविध आयामों में उतर कर व्यक्तित्व की छटा से संलग्न हो जाती हैं। तंत्रिका विज्ञान की भी मान्यता है कि हर प्राणी के मानस मंडल में कल्पनाओं के असीम भंडार छिपे हुए हैं। कल्पनाएं कभी गहरे चिंतन के अध्याय निर्मित करती हैं तो कभी वे हमारी दिनचर्या के विभिन्न पड़ावों पर अपनी छाप छोड़ती हैं। सुख-दुख के वातावरण में हम सभी सामान्य रूप में अपने स्वजनों से मिलकर अपनी संवेदना ज्ञापित करते हैं, जबकि ऐसी स्थिति नहीं रहने पर पत्र, दूरभाष, ईमेल आदि का सहारा भी लेने की प्रथा अब प्रचलित हो गई है।

चिंतकों ने व्यक्ति के व्यक्तित्व के गहन अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि प्राणियों में दृष्टि भाव, स्मृति भाव के साथ-साथ स्पर्श भाव के विपुल पुंज विद्यमान हैं। परिस्थिति के अनुसार व्यक्ति इन तीनों भावात्मक अनुभूतियों के माध्यम से अपने परिवार, मित्र और स्वजनों के प्रति व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं। स्मृति भाव के दृष्टांत में कहा गया है कि सागर तट के रेत में मादा कछुआ अपने अंडे को छिपाकर अपने आहार के लिए अन्यत्र चली जाती है और देर संध्या वापसी के बाद छिपाए अंडे जब नहीं खोज पाती, तो वह कारुणिक चीत्कार करती लगातार उन्हें खोजती जाती है और आखिर उसे उस स्थान की पहचान हो जाती है, जहां उसने अपने अंडे को छिपाया था।

जीवन की यात्रा में कई तरह से महसूस करते हैं स्पर्श की अनुभूति

जीवन की यात्रा में हम स्पर्श की अनुभूति को कई तरह से महसूस करते हैं। धरती पर किसी भी शिशु के आगमन के बाद उसे सबसे पहले अपनी मां का स्पर्श प्राप्त होता है। इस स्पर्श सुख का कमाल है कि जिस शिशु के जन्म के समय मां भीषण दर्द सहते हुए बच्चे को जन्म देती है और जैसे ही शिशु को मां की बांहों में रखा जाता है, रोते हुए बच्चे एकदम शांत हो जाते हैं और प्रसूति की वेदना भी गायब हो जाती है। इस चरण के बाद भी बच्चा किसी भी कारण से अगर रो रहा हो और घर के अन्य सदस्य उसे चुप कराने में विफल हों, उस समय मां की गोद में आते ही शिशु बिल्कुल शांत और खुश हो जाता है। यह शिशु का मां के वात्सल्य के साथ-साथ स्पर्श स्पंदन की शक्ति है, जो सृष्टि के सृजन काल से महसूस की जा रही है। जीवन के अन्य चरणों में भी व्यक्ति को अपनी मां से लिपट कर स्पर्श सुख की जो सबसे अधिक अनुभूति होती है, वह अन्यत्र दुर्लभ ही है।

महज चारदिवारी में बने स्थान को घर नहीं कह सकते, उसके लिए छत यानी मान-मर्यादा का होना जरूरी

जब हम अपने मित्र या स्वजन से बहुत दिनों बाद मिलते हैं, तो उनसे गले लगते हैं या हाथ मिलाते हैं, तब हाथ का हाथ से गले का गले से स्पर्श तरंग एक दूसरे को आनंदित कर देती है और प्रसन्नता के हार्मोन सक्रिय हो जाते हैं। इसी कड़ी में बीमारी या शोक की घड़ी में किसी साथी द्वारा पीड़ित साथी के कंधे पर हाथ रखते ही उसके शोक के घनत्व में कमी आ जाती है। जब दोनों दोस्तों की पलकें भावुकतावश गीली होती हैं तो दुखी मन कुछ देर के लिए हल्का हो जाता है। किसी अनजान व्यक्ति से किसी मोड़ पर मुलाकात में जब हम औपचारिकता में हाथ मिलाते हैं, तो वह क्षण परिचय परिधि की नींव रखते हुए आत्मीयता का द्वार खोलता है। यह विधा हमें शालीनता और विनम्रता का पाठ तो पढ़ाती ही है, शिष्टाचार के सागर में छिपे कई मोतियों को चुनने का अवसर भी प्रदान करती है।

मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी समझते हैं स्पर्श की भाषा

प्रकृति में व्याप्त असंख्य पशु-पक्षी भी इस सुख में अपने को सन्निहित पाते हैं। बचपन में दादी जब घर की गाय को कुछ खिलाने जाती थीं तो सबसे पहले उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उसे सहजता से पुचकारती थीं और गाय उनके हाथ में रखे खाने के अंश को ले लेती थी। पक्षी भी स्पर्श भाषा और भाव में गहरी डुबकी लगाते देखे जाते हैं। घोंसले में नन्हे चूजे अपनी मां, जो उनके लिए मुंह में दाना-पानी लेकर आती है, उसकी दूर से ही आहट पहचान लेते हैं और घोंसले से बाहर निकलकर चूं-चूं करते हुए आहार ग्रहण कर लेते हैं, जबकि कोई अन्य पक्षी पास में बैठ गया हो तो वे उसकी आहट के अहसास को प्रतिकूल भांपकर घोंसले के अंदर ही दुबके रहते हैं।

गृहिणी का जीवन संघर्ष से लबरेज, बहुआयामी होता है संघर्ष, केवल एक ही नजर से देखते हैं लोग

जीवन के कुछ मुख्य क्षेत्रों में हम स्पर्श की महत्ता को अक्सर देखते तो हैं, लेकिन उसके गहरे मर्म को समझने में चूक जाते हैं। कृषि कार्यों की शुरूआत में किसान पहली बार अपने खेत में कदम रखने के पहले उसकी मिट्टी को माथे से तिलक लगा कर और नमन कर शेष कृषि कार्य शुरू करते हैं। इसी प्रकार हमारे सैनिक किसी भी क्षेत्र में अपने दायित्व पालन के लिए प्रस्थान करते हैं तो वे अपने अस्त्र-शस्त्र को माथे से स्पर्श करते हैं और युद्ध में तो वे अपनी मातृभूमि का सबसे पहले स्पर्श वंदन करना नहीं भूलते। खेल में कई खिलाड़ी मैदान पर आते ही धरती मां का हाथ से स्पर्श कर अपने मस्तक को झुकाते हैं। किसी फुलवारी के माली भी अपने कोमल पौधों को स्पर्श सुख प्रदान कर उसमें गति, खुशबू और ऊर्जा भरते रहते हैं।

स्पर्श का सीधा अर्थ इंद्रियों के संवेदी अंश के संपर्क से है

इस सुख की भाषा के अनेक आयाम हैं, जिससे हमारा तंत्रिका तंत्र मजबूत होता है। स्पर्श का सीधा अर्थ है कि इंद्रियां संवेदी अंश के संपर्क में हैं। जब उचित संवेदी परिस्थितियां एकत्रित होती हैं, यानी एक दूसरे के संपर्क में आती हैं तो संवेदनाएं जागृत हो नेह छोह की शीतलता से अभिभूत हो जाती हैं। मोटे तौर पर कहें तो किसी वस्तु, इंद्रिय, अंग और चेतना के एक क्षण का एक साथ आना स्पर्श भाव का सृजन है। जरूरत है कि भौतिक व्यामोह की कृत्रिम छांव से कुछ पल के लिए हम स्वतंत्र हो पुराने सहपाठी, सगे-संबंधी, किसी वृद्धाश्रम या अनाथालय में जाकर संवेदना और सहानुभूति के लिए तरस रहे लोगों को इस सुख से राहत दें।