अभ्यास से कुछ भी सीखा जा सकता है और सीखने की कोई उम्र नहीं होती। ऐसी बहुत सी संस्थाएं हैं जो अपने कर्मचारियों को सिखाने के लिए नियमित सत्र आयोजित करती हैं। जिंदगी में आत्मविश्वास बढ़ाने, अपना संदेश, उद्गार या विचार स्पष्ट रूप से प्रेषित करने के लिए सही उच्चारण जरूरी है। उच्चारण और हिज्जे सुधारने के लिए मनपसंद भाषा में बढ़िया लिखा बार-बार पढ़ना और सुनना चाहिए। ऐसे लोगों को सुनने की जरूरत है, जो भाषा के मामले में पहचान रखते हैं। अपनी गलतियां ढूंढ़ने से नहीं हिचकना चाहिए। पढ़ना और सुनना जरूरी है तो साथ-साथ लिखना भी जरूरी है। लिखकर दोबारा जांचना लाजिमी है कि ठीक लिखा या नहीं। लिखने के बाद बोलने का बार-बार अभ्यास करना चाहिए। अपने खास मित्रों से आमने सामने बैठ कर बात करना भी एक अच्छा उपाय है। सुधरने के लिए हर समय उम्दा होता है।

कुछ समय पहले एक नाटक के मंचन के दौरान सभी कलाकार स्थानीय थे। नाटक का पूर्वाभ्यास करवाने के लिए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की एक स्नातक आई हुई थी। सुबह-सुबह कुदरत के बीच, शांत जगह पर इकट्ठा होकर संवाद बोलने और शब्दों को सही उच्चारण और प्रभाव के साथ, जोर से बोलने का अभ्यास कराया जाता था। जब नाटक का मंचन हो चुका तो लगा उच्चारण ठीक और आवाज सधी हुई है। बात करने में अनुशासन और संतुलन आया है। यह भी स्पष्ट हुआ कि बिना अभ्यास के हम सभी कितने ही शब्दों का गलत उच्चारण करते थे। संजीदगी से बताया गया और समझ भी आया कि सही उच्चारण के लिए कंठ, तालु, होंठ और जीभ का प्रयोग, संदर्भ और परिस्थिति के अनुसार किया जाता है।

कई जगहों पर कुछ किलोमीटर पर ही बदल जाती है भाषा

ऐसी खबरें आम हैं, जिनसे पता चलता है कि भाषा के मामले में कई बार अलग-अलग क्षेत्रों और लोगों के बीच एक अनावश्यक दूरी और यहां तक कि नफरत भी उगाई जाती रही है। जबकि जिनकी जो भाषा है, उन्हें वह प्यारी और मीठी ही लगती है। कई इलाके ऐसे हैं, जहां कुछ किलोमीटर के बाद ही बोली बदल जाती है। पहाड़ी इलाकों में ऐसा सामान्य तौर पर होता है। बोली के कुछ शब्द किसी व्यक्ति के व्यवहार और बोलचाल में इतने गहरे लिपट जाते हैं कि अलग ही नहीं होते। परिवारों में परस्पर बातचीत में कई शब्द ऐसे होते हैं जो बचपन से ही नए सदस्य आत्मसात कर लेते हैं।

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सहपाठियों से गपशप में इधर के शब्द उधर चले जाते हैं। वे जैसा सुनते हैं या गलत छपा हुआ पढ़ते हैं, वैसा ही उच्चारण आत्मसात कर लेते हैं।
ऐसा माना जाता है कि अधिकांश बच्चे सभी ध्वनियों का उच्चारण पांच वर्ष की उम्र तक ठीक कर लेते हैं। मगर कई वर्ण ऐसे होते हैं, जिन्हें सुधरने में समय लगता है, जैसे ‘र’ को ‘ड़’ बोलना। अनेक अभिभावक बच्चों के इस तरह बोलने का हंस कर मजा तो लेते हैं, मगर बच्चे को सही बोलने के लिए प्रेरित करते हुए अभ्यास नहीं करवाते। कई लोग वयस्क या बड़े हो जाने पर भी ‘श’ को ‘स’ बोलते हैं।

भाषा को क्लिष्ट बनाने की कोशिश करने वाले लोग काफी हद तक करते हैं नुकसान

तब यही लगता है कि इनका यह गलत उच्चारण उचित समय पर सुधारा नहीं गया। तब अभ्यास करवा दिया गया होता तो सुधारा जा सकता था। अगर ऐसा कोई व्यक्ति कभी ‘बहुत रश’ को ‘बहुत रस’ कहे, तो बात का अर्थ ही बदल जाएगा। ‘श’ का उच्चारण तालु से होता है, जबकि ‘स’ का उच्चारण करते समय जीभ दांतों को छूती है। अनेक बार उच्चारण में एक बिंदी लगकर या हटकर शब्द के अर्थ बदल देती है। खासतौर पर हिंदुस्तानी बोलते समय ज्यादा खयाल रखना पड़ता है, क्योंकि उसमें उर्दू भाषा के भी काफी शब्द होते हैं, जिनमें बिंदी यानी नुक्ते का बहुत महत्त्व रहता है। इसलिए खयाल रखना पड़ता है। किसी भी भाषा को क्लिष्ट बनाने की कोशिश करने वाले लोग भी काफी हद तक नुकसान करते हैं।

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उच्चारण को न सुधरने, न संवरने देने में वैसे लोगों का खासा दखल है, जो अपनी क्षेत्रीय और स्थानीय मानसिकता में फंसे रहते हैं। अनेक को तो छोटी ‘कि’ और बड़ी ‘की’ का अंतर पता नहीं है। लाखों लोग ऐसे हैं जो दिन-रात दुनिया की सबसे बड़ी किताब ‘फेसबुक’ के पृष्ठ बढ़ाने में सहयोग कर रहे हैं, लेकिन उन्हें शब्दों के सही हिज्जों से कोई वास्ता नहीं है। उन्हें तो दुनिया में सबसे पहले कुछ लिख कर सोशल मीडिया पर डालना है। उन्हें यह देखने का समय नहीं है कि उन्होंने जो लिखा, उससे किसी शब्द के अर्थ का अनर्थ तो नहीं हो गया! अंग्रेजी कुछ लोगों की शान है। टीवी चैनलों की क्यारियों में उगे हुए कुछ प्रस्तुतकर्ताओं को शब्दों के उचित चयन, मात्राओं और उच्चारण से बहुत कम वास्ता है। जैसा वे पढ़ और बोल रहे होते हैं, वैसा ही लिख भी रहे होते हैं। उन्होंने सूचनाओं की महत्त्वपूर्ण दुनिया में आने से पहले अभ्यास को बेहोश करके ही रखा। चैनलों को पहले मुनाफा चाहिए, उन्हें खबरों की उचित भाषा से कोई सरोकार नहीं रहा। विज्ञापनों की भाषा का हाल खस्ता है। सवाल यह है कि ऐसे लोग खुद को क्या सिखा रहे हैं और प्रतिस्पर्द्धा की दुनिया में क्या करेंगे।