सातत्य का आशय किसी भी गतिविधि की निरंतरता से होता है। अगर हम अपने चहुंओर के परिवेश या खुद अपने शरीर की किसी भी गतिविधि या क्रियाकलाप का गहन सूक्ष्मता के साथ अवलोकन करें तो हम निश्चित रूप से इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि प्रत्येक गतिविधि दो सीमांत बिंदुओं ‘आरंभ’ और ‘अंत’ के बीच संचालित होती है। आरंभ और अंत के बीच का अंतराल कितना लंबा होगा, यह पूरी तरह से उस गतिविधि की निरंतरता या सातत्य पर निर्भर करता है। हम कल्पना कर सकते हैं कि हमने किसी नूतन लक्ष्य को केंद्रित करते हुए कोई क्रिया आरंभ की और बहुत कम समय के बाद ही किसी न किसी कारण से हमें उससे खत्म भी करना पड़ा।

तब ऐसी दशा में हम अपने लक्ष्य को कभी प्राप्त नहीं कर पाएंगे, क्योंकि हमारे द्वारा क्रियान्वित की गई गतिविधि निरंतरता को प्राप्त नहीं कर पाई। दूसरे शब्दों में कहें तो निरंतरता किसी भी मंजिल या लक्ष्य तक पहुंचने के लिए एक अनिवार्य शर्त है। जब कभी और जहां कहीं निरंतरता खंडित होती है, संबंधित गतिविधि परिणाम के बजाय दुष्परिणाम का वरण कर लेती है। सातत्य या निरंतरता और सफलता के बीच एक नितांत गहरा संबंध है, बल्कि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।

ठहराव से निरंतरता का कोई संबंध नहीं होता

इसका सर्वोत्तम उदाहरण प्रकृति है। प्रकृति के सभी मूलभूत घटक, उदाहरणार्थ- जल, वायु आदि सभी सातत्य के सिद्धांत का अनुसरण करते हैं। जल और हवा के बहाव में अगर सातत्य या निरंतरता न हो, तो निश्चित ही वे महत्त्वहीन हो जाएंगे। कलकल करती सरिता और शांत तड़ाग में निस्संदेह सततवाहिनी सरिता कहीं अधिक महत्त्व रखती है। इसका कारण केवल इतना है कि बहती हुई सरिता सदैव सातत्य के अंक में रहती है। ठहराव से उसका कोई संबंध नहीं होता। ऐसा नहीं है कि ठहराव आवश्यक नहीं है, लेकिन वह ठहराव लक्ष्य के पड़ाव तक पहुंचने के बाद ही होना चाहिए। नदी जब महासागर में विलीन हो जाती है, तभी उसका अस्तित्व अपनी यात्रा को पूरा करके ठहराव की दशा को प्राप्त कर पाता है।

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जीवन की निरंतरता के बने रहने के लिए सांस में सातत्य का होना अनिवार्य है। सांस के असतत होने का सीधा-सा अर्थ है- जीवन की मृत्यु में परिणति। जन्म और मृत्यु आत्मा की अनंत यात्रा के दो पड़ाव होते हैं। इन पड़ावों के बीच यानी जन्म से लेकर मृत्यु के बीच की सीमित यात्रा का नाम ही जीवन है। अब इस यात्रा की अवधि सातत्य के स्तर पर निर्भर करती है। यात्रा सातत्य से सिंचित होगी, तो निस्संदेह हम लंबे समय तक जीवन का आनंद भोगने में सफल रहेंगे। वहीं अगर यात्रा का सातत्य किसी भी कारण से खंडित हुआ तो मृत्यु के निकट आने में कोई भी विलंब नहीं होगा।

सातत्य ही जीवन को सफल बनाने का एक मूल मंत्र

भौतिक और सांसारिक जीवन से परे इन विषयों से थोड़ा-सा संकुचित होकर केवल दैनिक जीवन, क्रियाकलापों और गतिविधियों पर ही केंद्रित रहा जाए तो भी सातत्य की महिमा कहीं न कहीं स्वयंसिद्ध है। सातत्य ही जीवन को सफल बनाने का एक मूल मंत्र है। परिस्थितियों से बिना प्रभावित हुए अपने कार्य को निरंतरता के साथ करते रहना ही सातत्य है। जीवन का कोई भी ऐसा पहलू नहीं है जहां पर सातत्य के बिना सफलता का अर्जन किया जा सके, क्योंकि सफलता का कोई भी लघु मार्ग या सूत्र अभी तक उपलब्ध नहीं है। सफलता के लिए अथक परिश्रम की आवश्यकता होती ही है, जो केवल और केवल सातत्य के माध्यम से ही संभव है।

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जीवन में सातत्य का अनुसरण करने से व्यक्ति को लाभों का एक ऐसा पिटारा प्राप्त हो जाता है, जिसकी कल्पना संभवत: उसके द्वारा नहीं की गई होती है। सातत्य की प्रवृत्ति व्यक्ति को द्रुत गति से उसके लक्ष्य तक पहुंचाने में सहायक होती है। यह व्यक्तित्व को अद्भुत तरीके से निखार देता है। व्यक्तित्व के अंदर अनेक दुर्लभ विशिष्टताओं का समावेश सातत्य का अनुसरण करके ही संभव हो पाता है। इनमें सबसे मूल्यवान उपलब्धि होती है- आत्मविश्वास। किसी भी कार्य के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव अपनाते हुए उसके क्रियान्वयन में सातत्य को समाविष्ट करने से विभिन्न चरणों में आने वाली बाधाएं व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास के स्तर को उच्चीकृत करने में सहायता करती हैं। मगर सातत्य को विकसित करने के लिए हमें प्रकृति की कुछ शर्तों को स्वीकार करना होगा।

धैर्य की नौका पर सवार होकर ही पार करने की करनी चाहिए चेष्टा

इनमें से पहला और सबसे अहम शर्त यह है कि हमें किसी भी कार्य या गतिविधि के रूप वाली वैतरणी को धैर्य की नौका पर सवार होकर ही पार करने की चेष्टा करनी चाहिए, क्योंकि धैर्य वह ब्रह्मास्त्र है जो बड़ी से बड़ी चुनौतियां एवं बाधाओं को अपनी अमोघ शक्ति से चकनाचूर कर देने में सक्षम है। सातत्य के प्रादुर्भाव के लिए धैर्य परम आवश्यक है। इसके अतिरिक्त आत्मानुशासन, सकारात्मकता से परिपूर्ण मनोबल, समय का उचित प्रबंधन और ध्यान का लक्ष्य पर केंद्रित होना। ये कुछ ऐसी शर्ते हैं जो प्रकृति के द्वारा मूक रूप से हमारे समक्ष सातत्य का उपहार प्राप्त करने के बदले में रखी जाती हैं। इनका व्यवस्थित अनुपालन करने के बाद ही हम जीवन में सातत्य की अपेक्षा कर सकते हैं।

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हमें अपने शरीर और मन-मस्तिष्क, दोनों की गतिविधियां सातत्य से युक्त रखनी चाहिए, क्योंकि सातत्य हमारे अंदर विजय प्राप्त करने जैसी भावना को जागृत करता है। सातत्य का खंडित होना हमारे अंदर कहीं न कहीं कुंठा और निराशा को जन्म देता है और ये भाव हमारे व्यक्तित्व में विकृति उत्पन्न करते हैं। सातत्य एक ऐसा अमूल्य रत्न है जो अगर किसी ने एक बार प्राप्त कर लिया तो फिर वह आजीवन उसका लाभ सूद समेत प्राप्त करता रहेगा। साधारण से असाधारण में परिणत होने के लिए सफलता एक आवश्यक तत्त्व है, लेकिन उस सफलता की प्राप्ति के लिए सातत्य एक अपरिहार्य शर्त है।