व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में शिक्षा की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। शिक्षा और विकास एक दूसरे के पूरक हैं। प्रत्येक एक दशक बाद भारत में जनगणना होती है। जनगणना के आंकड़ों से साक्षरता दर का आकलन होता है। आजादी के बाद 1988 में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना के बाद साक्षरता के क्षेत्र में तेज गति से काम होने लगा। 2001 से 2011 के दशक में साक्षरता की दिशा में उल्लेखनीय कार्य हुआ। इस दौरान अनेक प्रदेशों की साक्षरता दर में उछाल आया। इस दशक में साक्षरता के क्षेत्र में उत्तर भारत में उत्साह और उमंग के साथ सराहनीय काम हुआ, जहां साक्षरता प्रतिशत पचास फीसद से भी कम था।

उस दौरान केरल 93.91 फीसद साक्षरता दर के साथ देश में नंबर एक पर था तो मिजोरम 91.58 फीसद साक्षरता दर के साथ तीसरे स्थान पर था। अब आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण यानी पीएफएलएस रपट के मुताबकि, मिजोरम 98.20 फीसद साक्षरता दर हासिल कर देश का पहला पूर्ण साक्षर प्रदेश बन गया। संपूर्ण साक्षरता अभियान के बाद उत्तर साक्षरता अभियान और सतत शिक्षा कार्यक्रम संचालित होने लगे और धीरे-धीरे साक्षरता अभियानों ने कार्यक्रम का स्थान ले लिया। यहीं से साक्षरता कार्यक्रम बन गया और साक्षर होने की गति और उत्साह भी कम होने लगा। मिजोरम में फिर से साक्षर होने की कार्ययोजना तैयार कर उल्लास कार्यक्रम के तहत फिर वही प्रक्रिया अपनाई गई।

साक्षरता का मकसद निरक्षर व्यक्ति को केवल साक्षर बनाना ही नहीं होता

निरक्षर व्यक्ति को केवल साक्षर बनाना ही मकसद नहीं होता, नवसाक्षरों का शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक विकास करना होता है। यह बात मिजोरम ने समझी। प्रदेश के आर्थिक स्तर को सुधारने, भविष्य उन्नयन और नवसाक्षरों को व्यावसायिक कौशल देने के प्रयास भी किए। संपूर्ण साक्षरता अभियान की तरह सरकार ने जनता के सहयोग से निरक्षरता उन्मूलन के लिए स्वयंसेवक तैयार किए, उन्हें प्रशिक्षण दिया, शिक्षण सामग्री उपलब्ध करवाई, स्वयंसेवकों के साथ सरकार के प्रतिनिधि और अफसर नियमित संपर्क में बने रहे।

प्रदेश भर में साक्षरता के पक्ष में वातावरण बनाया गया, वातावरण निर्माण के तहत घर-घर सर्वेक्षण किया गया, लोगों को आमंत्रित किया गया, असाक्षरों का सम्मान किया गया। उनके साथ निरंतर संपर्क रखा गया। इस कार्यक्रम में असाक्षर की पहचान, मूल्यांकन और निरीक्षण का काम प्रतिदिन होता रहा। क्लस्टर बनाकर क्षेत्र आधारित कार्यक्रम तैयार किए गए। छोटे-छोटे समूह बनाए गए, जिसमें स्थानीय जनप्रतिनिधि, शिक्षाविद और समाज के व्यक्ति, जो साथ मिलकर असाक्षर व्यक्ति के घर जाते, उनसे आग्रह करते।

देश का पहला पूर्ण साक्षर राज्य बना ये स्टेट, 98% से ज्यादा है लिटरेसी रेट

समुदाय के सहयोग से संचालित साक्षरता अभियान के अंतर्गत स्थानीय भाषा और गहरी सांस्कृतिक सहायता से लोगों ने सिर्फ पढ़ना ही नहीं सीखा, बल्कि ऐसी संस्कृति का निर्माण किया जो ज्ञान को महत्त्व देने लगे। शिक्षित नागरिक से ही एक समग्र और विकसित राष्ट्र और समाज की परिकल्पना की जा सकती हैं।

यह अच्छी और सुखद खबर है। मिजोरम की साक्षरता यात्रा देश के अन्य प्रदेशों के लिए अत्यंत प्रेरणादायक है। 2011 में 91.58 फीसद लोग साक्षर थे। कहने को यह भी कहा जा सकता है कि केवल आठ फीसद लोगों को ही साक्षर करने का काम था। दिखने में और सुनने में आठ फीसद का लक्ष्य तय करना कोई बड़ी बात न हो, पर यही वह समूह था, जिसको साक्षर करना मुश्किल काम था। शिक्षा से दूर रहे इस समूह की मानसिकता बदलना मुश्किल ही नहीं कठिन काम होता है, जिसे मिजोरम ने अपनी इच्छा शक्ति से कर दिखाया।

भारतीय सेना के उन दो अधिकारियों की कहानी, जिन्हें प्रमोट करके बनाया गया था फील्ड मार्शल

नब्बे के दशक में केरल संपूर्ण साक्षर घोषित किया गया था। केरल से पहले एर्नाकुलम जिले को संपूर्ण साक्षर घोषित किया गया था। वहां भी संपूर्ण साक्षरता अभियान को जन आंदोलन बनाया गया था। केरल सरकार ने भारत ज्ञान विज्ञान समिति के साथ मिलकर यह काम किया। वहां भी उस समय केवल नौ फीसद लोगों को ही साक्षर करना था, लेकिन वे भी ‘हार्डकोर ग्रुप’ यानी शिक्षा से दूर रहे समूह की श्रेणी में थे। केरल की साक्षरता यात्रा घर, गांव और जिला स्तर तक चली। केरल में प्रत्येक सरकारी अधिकारी जन सहयोग से अपनी जिम्मेदारी समझकर निरक्षरता उन्मूलन के पवित्र काम में लगा था। केरल की तर्ज पर पूरे देश में साक्षरता अभियान संचालित हुआ। उसी तकनीक को मिजोरम सरकार ने भी जन सहयोग से अपनाया और संपूर्ण साक्षर प्रदेश बन गया।

दरअसल, घने बांस के जंगलों और पहाड़ियों, गहरी घाटियों के कारण ‘हार्डकोर समूह’ की पहचान करना भी चुनौतीपूर्ण था। मिजोरम सरकार के लिए अब चुनौती इस बात की है कि ये लोग अभ्यास छूटने के बाद फिर से असाक्षर की श्रेणी में न आ जाएं। प्राथमिक शिक्षा में शत-प्रतिशत नामांकन हो और स्कूली पढ़ाई बीच में न छूटे। नवसाक्षरों की साक्षरता सतत बनी रहे, इसलिए व्यावसायिक कौशल के साथ जोड़ना सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिए। उनको रोजगार उपलब्ध कराने की जरूरत होगी, जिससे उनकी साक्षरता कायम रहेगी।

ऐसी इच्छाशक्ति यह बताती है कि जब समुदाय और सरकार मिलकर काम करते हैं तो असाधारण परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। स्वतंत्र रूप से पूर्ण राज्य बनने के बाद इतने कम समय में पूर्ण साक्षर होना राज्य के लिए गर्व की बात है। अब निरंतरता में शिक्षा की मुहिम चलाए जाने की आवश्यकता है, ताकि मौजूदा उपलब्धि की रोशनी मिजो समाज को रोशन करे।