इस पृथ्वी पर करोड़ों प्रकार के जीव हैं। उनमें से मनुष्य को छोड़कर सभी जीवों का जीवन केवल दो धुरी के बीच घूमता है। एक है जन्म, दूसरा मृत्यु। इसके बीच उनके जीवन की कोई उपलब्धि नहीं होती है, लेकिन मनुष्य जीवन थोड़ा अलग होता है। मनुष्य के जीवन में जन्म के साथ सिर्फ शरीर का विकास नहीं होता है, बल्कि उनकी बुद्धि और विवेक का भी विकास होता है। मनुष्य के बुद्धि-विवेक के साथ जो उन्हें प्राकृतिक रूप से मिलती है विशिष्ट होने की भूख या इच्छा। दरअसल, जीत-हार को लेकर हमारे मानस का विकास ही इस तरह किया गया है कि कोई भी हारना नहीं चाहता है। हर किसी की यही इच्छा होती है कि उनकी जीत ही तय हो। सभी सफल ही होना चाहते हैं, क्योंकि सफलता का मानदंड जीत को ही तय किया गया है। हार को जीत के रास्ते के तौर पर भी नहीं स्वीकार किया जाता है, बल्कि हारने वाले को कमतर के रूप में आंका जाता है।
यों तो सभी मनुष्यों के जीवन की सफलता की परिभाषा अलग-अलग होती है, लेकिन उनमें से कुछ मनुष्य अपने लक्ष्य को पा लेते हैं और कुछ अपने लक्ष्य से कोसों दूर रह जाते हैं। विकास क्रम में यह सुनिश्चित हुआ कि मनुष्य सृष्टि का इकलौता ऐसा जीव है, जिसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। मनुष्य को अद्भुत रूप से चिंतन करने, भविष्य की संभावनाओं का आकलन करने, स्वप्न देखने और अपनी बुद्धि और विवेक से निर्णय लेने की अद्वितीय क्षमता प्राप्त हुई है। आदिकाल से ही देखा जा रहा है कि जैसे-जैसे मनुष्य की सोच विकसित हुई, उसकी दृष्टि ने व्यापक स्वप्न देखा। मनुष्य ने अपने सपने को साकार करने का प्रयास किया और उसे साकार भी किया। यह मनुष्य की अद्भुत क्षमता को दर्शाता है। मगर ऐसा कर पाना सभी लोगों के लिए संभव नहीं हो सका। कालक्रम में जैसी व्यवस्था निर्मित और विकसित हुई, उसमें यह क्षमता कुछ ही मनुष्य या वर्गों के दायरे में सिमटती गई।
इस क्रम में कुछ ही मनुष्य विशिष्ट बन पाते हैं। अब सवाल है कि क्या ऐसा होने के पीछे भाग्य की बड़ी भूमिका है? क्या यह जन्मजात ही तय होता है कि कौन कितना सफल होगा? क्या इसे लेकर उनकी नियति पहले से ही तय होती है या विशिष्ट मनुष्य के अंदर कोई खास गुण होता है? क्या सफल होने की आदत को सीखा जा सकता है? क्या हार को जीत में बदला जा सकता है? तो इसका जवाब है कि लोगों का दृष्टिकोण ही उनका भाग्य है। यह किसी को जन्मजात नहीं मिलती है। इसे विकसित करना सीखा जा सकता है। असल में प्रकृति सभी को समान अवसर देती है। दायरों का निर्माण, अवसरों की सीमा आदि मनुष्यों के बीच समर्थ और वर्चस्वशाली समूहों ने किया। फिर वंचित लोगों या समूहों को भाग्य का सहारा दिलासे के रूप में सौंप दिया गया।
कोई भी मनुष्य विशिष्ट हो सकता है, लेकिन विशिष्ट मनुष्य के कुछ गुण उन्हें विशिष्ट बनाते हैं। उन विशिष्ट गुणों में एक खास गुण होता है- परिस्थितियों को देखने का दृष्टिकोण। सोचने की बात है कि अगर किसी सामान्य मनुष्य के जीवन में रामकथा में वर्णित भगवान राम की तरह की परिस्थिति हो तो अधिकतम व्यक्ति अपना धैर्य खो देंगे। जीवन को लेकर विश्वास खो देंगे और फिर निराशा से घिर जाएंगे। वे अपने साथ शिकायतों का पुलिंदा लिए घूमेंगे कि ईश्वर ने या प्रकृति ने उसके साथ अन्याय कर दिया… भाग्य ने धोखा दे दिया। अन्यथा वे भी कमाल कर सकते थे। मगर भगवान राम का परिस्थिति को लेकर विशिष्ट दृष्टिकोण रहा, जिसने सामान्य मनुष्य की क्षमताओं के साथ बिना किसी चमत्कार के उनकी जीत सुनिश्चित की। मुश्किल परिस्थितियों में भी उनका सकारात्मक दृष्टिकोण ही उनकी ताकत रही। हालांकि वे भी विचलित हुए और यह मनुष्य का गुण है, लेकिन उनका दृष्टिकोण सदैव दृढ़ और स्पष्ट रहा, जो उनके चेहरे पर खिली दिव्य मुस्कान की तरह सकारात्मक रहा।
स्पष्ट है कि विशिष्ट व्यक्ति भी किसी परिस्थिति में हारा हुआ महसूस करते हैं, लेकिन वे अपने दृष्टिकोण और विश्वास से हार को अपनी जीत में बदल लेते हैं। मनुष्य अपनी किसी भी हार की जिम्मेदारी खुद नहीं लेता है, बल्कि परिस्थिति पर डाल देता है या फिर भाग्य पर खराब होने का दोष मढ़ देता है। वह नहीं समझ पाता है कि उसका दृष्टिकोण ही उसके भाग्य का निर्माण करता है, क्योंकि भाग्य और कुछ नहीं, बल्कि हार न मानने की दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ सही अवसर की तलाश और अवसर मिलने पर सही समय पर लिया गया सही निर्णय होता है।
इस संबंध में महात्मा गांधी ने कहा था कि आपका विश्वास आपके विचार बनते हैं, आपके विचार आपके शब्द बनते हैं, आपके शब्द आपके कर्म बनते हैं, आपके कर्म आपकी आदतें बनते हैं, आपकी आदतें आपके मूल्य बनते हैं, आपके मूल्य आपकी नियति बनते हैं। इस प्रकार जीवन या प्रकृति आपके समक्ष जो भी परिस्थिति लाती है, हम उसका किस दृष्टिकोण और विश्वास के साथ सामना करते हैं, सब कुछ इसी पर निर्भर करता है। सकारात्मक परिस्थिति के बावजूद हमारा नकारात्मक रवैया हमको निराश करने वाला परिणाम ही देगा। जबकि नकारात्मक परिस्थितियों के बावजूद हमारा सकारात्मक रवैया हमारी हार को भी जीत में बदल देगा।